संसार भरा पड़ा है

दुःख देने वाले नालायकों से

– डॉ. दीपक आचार्य

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संसार में चित्त और जीवन को प्रभावित करने वाले दो ही कारक मुख्य हैं – सुख और दुःख। सुख प्राप्त होने पर मनुष्य खुश होता है जबकि दुःख प्राप्त हो जाने की स्थिति में वह खिन्न हो उठता है।

हर मनुष्य की इच्छा सुख ही सुख प्राप्त करने की होती है मगर दुःखों का आना और जाना स्वाभाविक नियम है । यह क्रम हमेशा बना रहता है। कभी सुख तो कभी दुःख। इसी प्रकार इनका घनत्व भी न्यूनाधिक अवस्था पाता रहता है।

यही सुख और दुःख हमारे चित्त की अवस्था का परिणाम भी होते हैं और चित्त को व्यथित या प्रसन्न करने के कारक भी। दोनों ही स्थितियों में चित्त की स्थिति पेण्डुलम हो जाया करती है। सुख और दुःख के शाश्वत संबंधों की ही तरह इनसे जुड़े लोग भी होते हैं।

संसार भर में कई सारे लोग दुःख ही दुःख देते हैं जबकि कई सारे लोग ऎसे होते हैं जिनसे सुख ही सुख प्राप्त होता रहता है। कोई एक घटना या परिवर्तन किसी के लिए सुखद हो सकता है तो किसी के लिए दुखद। यह स्थिति वैयक्तिक मानदण्डों पर खरी उतर सdownloadकती है लेकिन सामुदायिक  दृष्टि से सार्वजनीन सुख या दुःख जैसी स्थितियां बहुधा कम ही दृष्टिगोचर होती हैं।

तीसरे प्रकार के लोग वे हैं जो पूरी तरह उदासीन या स्थितप्रज्ञ हैं उनसे न किसी को दुःख मिल सकता है, न सुख। ये लोग सुख-दुःख की प्राप्ति अथवा अवदान दोनों ही दृष्टि से उदासीन होते हैं और इस कारण इनका प्रभाव किसी और से चित्त को प्रभावित या उत्प्रेरित कभी नहीं कर सकता।

बात उन लोगों की है जो सुख और दुःख की अनुभूति कराते हैं। कुछ लोग दुःख ही दुःख देने के लिए पैदा हुआ करते हैं। इनके लिए जमाने भर में वे ही ऎसे एकमात्र पात्र होते हैं जिन्हें जिन्दा रहने और ऎश्वर्य का उपभोग करने का अधिकार प्राप्त है। ऎसे लोग अपने सुखों के लिए दूसरों को दुःख देने में जरा भी पीछे नहीं रहते। यही कारण है कि हम ऎसे अधिकांश लोगों के बारे में प्रायः सुनते हैं कि ऎसे लोगकेे पास टिकना भी बड़ा ही कठिन है।

इस किस्म के आदमी के प्रति आम लोगों में यही धारणा हुआ करती है कि ये लोग न किसी को न प्रसन्न रख सकते हैं न सुकून दे सकते हैं बल्कि ये जहां होते हैं वहाँ लोगों को दुःखी ही करते हैं। इनकी वाणी और आचरण ही ऎसे होते हैं कि ये लोग हमेशा दुःखों का ही सृजन और संचार करते हैं।

ऎसे लोग जहां कहीं होते हैं वहाँ पूरे माहौल में दुःख और शोक-विषाद अपने आप पसर जाता है और ऎसे में इनके इर्द-गिर्द हमेशा नकारात्मक माहौल रहने लगता है।  हालांकि दुःख देने वाले लोगों को अपने अहंकार, भ्रम और निर्मम होने की वजह से इसका अहसास तनिक भी नहीं हो पाता है मगर सामने वालों को इस प्रदूषण का पता चल जाता है और वे विवशता में ही इनके पास रहा करते हैं।

विवशता या स्वार्थ न हो तो ऎसे नालायकों को कुत्ते भी सूंघना पसंद न करें। इस मामले में ये लोग कुत्तों से भी गए-बीते होते हैं।  इन हालातों में अक्सर हम लोग इनसे घृणा पाल लेते हैं जबकि ऎसे लोग दया के पात्र हुआ करते हैं।

इस प्रकार की स्थितियां सामने आने पर ईश्वर से कातर स्वर में यही प्रार्थना करें कि इस किस्म के लोगों को  मनुष्य का शरीर देने के साथ ही मनुष्य जैसे विचार, संवेदनशीलता और सदभाव जैसे गुणों को भी इनमें नवाजे ताकि इनकी वजह से जगत के अच्छे लोगों को दुःखी और पीड़ित न होना पड़े।

जो लोग दूसरों को सुखी देखकर खुद सुख का अनुभव करने वाले हैं, जो हमें प्यार-मोहब्बत भरा सुकूनदायी सान्निध्य देते हैं, हमारे प्रति संवेदनशील हैं उन सभी लोगों को यथोचित सम्मान और आदर मिलना चाहिए क्योंकि ये ही लोग हैं जिनकी वजह से मानवता टिकी हुई है वरना दुःखी करने वाले तो दुनिया में बहुत हैं। अपने आस-पास भी ऎसे मोबाइल दुख भण्डारों की कोई कमी नहीं है। जहाँ कोई ऎसे लोग मिलें जो दुःख देते हैं उन सभी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें और इन नासमझों को दया व करुणा भाव से देखें। इसी में जगत का और अपन सभी का कल्याण है।

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