क्रांतिकारी लाहिड़ी के बलिदान दिवस पर आर्य समाज गोंडा ने किया शांति यज्ञ का आयोजन

 

गोंडा। (विशेष संवाददाता) विगत 17 दिसंबर को आर्य समाज बड़गांव गोंडा के तत्वावधान में क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का 94 वां बलिदान दिवस पर जेल फांसी स्थल पर आर्य समाज के पंडित विमल कुमार आर्य हरदोई के ब्रह्मत्व में मनाया गया । इस अवसर पर मुख्य यजमान जनपद न्यायाधीश रहे। साथ ही कई अन्य न्यायाधीश, जिलाधिकारी नितिन बंसल, पुलिस अधीक्षक ,जेल अधीक्षक शशिकांत सिंह,अधिशासी अभियन्ता एस० के० साहु, सीओ सदर लक्ष्मीकांत गौतम, सिटी मजिस्ट्रेट बंदना त्रिवेदी, एस०डी ०ओ ०ई० प्रज्ञा आर्या,सेनानी रामअचल अयोध्या प्रसाद एवं धर्मवीर आर्य और सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के एवं जिला आर्य प्रतिनिधिसभा प्रधान शास्त्री विनोद आर्य ,स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के आदित्य भानसिंह गोविंद सिंह रमेश मिश्र ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव अर्जुन प्रसाद मिश्र अमर दीक्षित पृथ्वीराज सिंह डॉक्टर लक्ष्मण जी, अंशुमान सिंह, रक्षाराम विद्यार्थी, जयप्रकाश आर्य, बीए ए इंद्रजीत प्रजापति, अरुण कुमार शुक्ला अरुण सिंह, श्री हरिनाम सीजेएम पंकज चौधरी, एसपी यादव एसडीएम सदर कुलदीप सिंह, कामिनी सक्सेना, अरविंद सक्सैना आर्य वीर दल के अशोक कुमार तिवारी, मीरा गुप्ता, लालता प्रसाद आर्य ,यज्ञमित्र, कुलदीप आर्य, ऋतंभरा आर्य, रामाधार सिंह, डा० दिलीप शुकला एवं विभिन् विधालय के सैकड़ों बच्चे अन्य संगठनों के लोगों ने आहुति के माध्यम से शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को अपने – अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए ।
कार्यक्रम प्रातः 8:00 लहिडी प्रेरणा स्थल राधा कुंड से होता हुआ पीपल चौराहा होते हुए जेल फांसी स्थल गोंडा में पहुंच कर प्रातः 9:00 श्रद्धांजलि सभा यज्ञ माध्यम से संपन्न हुआ। इस अवसर पर जनपद न्यायाधीश महोदय ने लाहिडीजी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसे क्रांतिकारियों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह युवा पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत सदैव रहेंगे । 26 साल की उम्र में उन्हें राष्ट्र के लिए जो प्रेरणा आर्य समाज से मिली वह क्रांतिकारी विचारधाराओं की ही देन थी।
इस अवसर पर सभा प्रधान शास्त्री विनोद आर्य ने जनपद न्यायाधीश जिलाधिकारी एवं जिले के सभी वरिष्ठ सम्मानित पदाधिकारियों को क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत पुस्तक भेंट की। यह पुस्तक 1857 के स्वतन्त्रता आंदोलन के अग्रदूत महर्षि दयानन्द द्वारा रचित है। इन्हीं की प्रेरणा से देश की आजादी में लगभग 85% आर्य लोगों ने राष्ट्र के लिए अपने प्राणो की आहुति दी । ऐसी क्रांतिकारी विचारधाराएं राष्ट्र को मजबूत बनाती हैं और स्वस्थ राष्ट का निर्माण करती हैं।
हम आशा करते हैं कि लाहिडी जी को सच्ची श्रद्धांजलि भी यही होगी किनई पीढ़ी प्रेरणा लेकर राष्ट को मजबूत करे और जब कभी देश पर संकट आए तो अपनी जान की परवाह ना करते हुए राष्ट्र के लिए सदैव तत्पर रहें। अंत में आज पूर्व सांसद सत्यदेव सिंह के आकस्मिक निधन से पूरा समाज स्तंभ है । उनके लिए 2 मिनट का मौन रहकर ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई।

स्वयं गले में डाल लिया था फांसी का फंदा : विमल आर्य

इस कार्यक्रम के संयोजक श्री विमल आर्य ने ‘उगता भारत’ को बताया कि वह इस कार्यक्रम को पिछले 21 वर्ष से निरंतर करते चले आ रहे हैं । उन्होंने कहा कि लाहिड़ी जी को जिस समय फांसी दी जानी निश्चित हुई थी उस समय उनसे अंग्रेज अधिकारी ने पूछा था कि तुम्हारी अंतिम इच्छा जो हो उसे बता सकते हो। इस पर जोरदार ठहाका लगाते हुए हमारे क्रांतिकारी ने कहा था कि आप लोग जब ऐसा कहते हो तो मुझे बड़ी हंसी आती है। आप हमारी क्या इच्छा पूर्ण करेंगे ?


इस पर अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि आजादी को छोड़कर आप कुछ भी मांग सकते हैं। तब क्रांतिकारी लाहिड़ी ने कहा था कि यदि आप मेरी अंतिम इच्छा ही पूछना चाहते हैं तो मुझे हथकड़ी बेड़ियों से मुक्त कर दीजिए । मैं स्वयं अपनी फांसी का फंदा अपने गले में डालूंगा। तब उन्होंने स्नान आदि करने के पश्चात वैदिक संध्या के 19 मंत्र उच्चारित किए और फांसी का फंदा अपने गले में अपने आप डाल लिया। श्री आर्य ने कहा कि इससे पहले उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि यह जो जल्लाद यहां पर खड़ा है यह हमारा भाई है परंतु फिर भी यह मां भारती का गद्दार है जिसके हाथों से फांसी का फंदा पहनना व है अपना अपमान समझते हैं।
श्री आर्य ने कहा कि क्रांतिकारी लाहिड़ी और उनके अन्य कई क्रांतिकारी साथी रामप्रसाद बिस्मिल जी के सानिध्य में रहकर क्रांतिकारी बने थे। उनका मुकदमा लड़ने से उस समय कांग्रेस के बड़े नेता जवाहरलाल नेहरू और गांधी तक ने मना कर दिया था। क्योंकि यह लोग अंग्रेजों के पिट्ठू थे। अंग्रेज न्यायाधीश ने उन्हें फांसी की सजा 19 दिसंबर को देना तय किया था लेकिन अंग्रेजों ने अपने ही आदेश के साथ छल करते हुए उन्हें दो दिन पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया था इस प्रकार उन्हें फांसी न देकर ( यदि न्यायिक दृष्टिकोण से देखें तो) उनके जीवन को 2 दिन पहले समाप्त कर एक प्रकार से उनकी हत्या अंग्रेजों ने की थी।

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