इतिहास पर गांधीवाद की छाया, अध्याय 18 – ( 2 ) कांग्रेस इस्लाम को मानती रही है शांति का धर्म

 

इस्लाम को मानती है कांग्रेस शांति का धर्म

कांग्रेस ने भारतवर्ष में करोड़ों लोगों के विरुद्ध अमानवीय अत्याचार करने वाले इस्लाम को प्रारम्भ से ही प्रगतिशील , उदार और ‘भाईचारे’ का प्रतीक मानकर शांति का ध्वजवाहक माना है , जबकि हिन्दू धर्म या वैदिक धर्म को इसने रूढ़िवादी माना है । ‘शांति का संदेश देने वाले’ मजहब को प्रगतिशील मानने के कारण ही कांग्रेस ने अपनी हिन्दू विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए भारतवर्ष में ‘मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड’ की स्थापना की। जबकि देश का संविधान देश के लोगों के मध्य किसी भी प्रकार जाति ,धर्म और लिंग के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव की मनाही करता है। इतना ही नहीं , देश का संविधान समान नागरिक संहिता लागू कर लोगों के बीच समरसता पैदा करने की बात भी करता है , परन्तु संविधान के प्रावधानों की अवहेलना करते हुए संविधान विरोधी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ की स्थापना कर कांग्रेस ने देश के सामाजिक परिवेश को विद्रूपित करने में सहयोग किया।
कांग्रेस ने देश के संविधान में ‘सेकुलर’ शब्द डालकर उसकी व्याख्या इस प्रकार की कि जैसे यहाँ पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण कर उनको विशेष अधिकार देने का संविधान आदेश देता है। जबकि संविधान किसी भी समुदाय या मजहब के लोगों को कानून के समक्ष समानता की बात कहकर अपना यह आदेश ,संदेश व निर्देश जारी करता है कि किसी भी स्थिति में किसी वर्ग विशेष का पक्ष पोषण या तुष्टीकरण नहीं किया जाएगा।

कांग्रेस की इस प्रकार की संविधान विरोधी , हिन्दू विरोधी और राष्ट्रविरोधी नीतियों के चलते देश के 8 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया । इसके साथ -साथ कांग्रेस की गलत शिक्षा नीति के कारण संविधान की भावनाओं के विपरीत जाकर हमने संस्कृत को मृत भाषा घोषित कर दिया और हिन्दी को उसका सम्मान आज तक नहीं दे पाए हैं ।

राष्ट्रद्रोही लोगों का करती रही है समर्थन

पूर्वोत्तर भारत में ईसाईकरण की प्रक्रिया कांग्रेस के शासनकाल में जिस प्रकार तेजी से बढ़ी, उससे देश की एकता और अखण्डता को खतरा पैदा हो गया, परन्तु इसके उपरान्त भी कांग्रेस उस ओर से आंखें मूंदे बैठी रही। मुस्लिमों की तुष्टिकरण की नीति के कारण कांग्रेस ने संविधान में अल्पसंख्यकों को उनकी धार्मिक शिक्षा को लागू कराने या विद्यालयों में पढ़ाए जाने की संवैधानिक गारंटी दी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे कई शैक्षणिक संस्थानों या विश्वविद्यालयों में राष्ट्रविरोधी मानसिकता के नागरिकों को पैदा करने की खुली छूट प्रदान की।


इस पार्टी को ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ में ‘मुस्लिम’ शब्द से कभी कोई आपत्ति नहीं रही, जबकि ‘बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी’ में आए ‘हिन्दू’ शब्द को लेकर इसे प्रारम्भ से ही आपत्ति रही है। यही कारण रहा कि कांग्रेस के ‘सोनिया काल’ में हिन्दू को इस देश का सबसे बड़ा हिंसक प्राणी सिद्ध करने के लिए विधिवत एक कानून को लाए जाने पर भी गम्भीरता से प्रयास किया गया। उसी समय देश के प्रधानमंत्री रहे सरदार मनमोहन सिंह ने अपनी नेता अथवा ‘सुपर पीएम’ सोनिया गांधी के आदेश पर यह भी कह दिया कि ‘इस देश के आर्थिक संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार मुस्लिमों का है।’

संविधान की मूल भावना का किया है अपमान

कश्मीर की समस्या को जटिल बनाने और इस मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने का पाप भी कांग्रेस नहीं किया है । इतना ही नहीं देश के संविधान में धारा 370 को अस्थाई धारा के रूप में डालकर भी उसे स्थायी धाराओं से भी अधिक कठोर बनाने में भी कांग्रेस ने ही सहयोग प्रदान किया ।अति उस समय हो गई जब इसी पार्टी के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने संसद की बिना अनुमति लिए संविधान में एक अनुच्छेद 35a डाल दिया। जिसके कारण जम्मू कश्मीर में हिन्दुओं पर अत्याचार करने का खुला प्रमाण पत्र मुस्लिम मुख्यमंत्रियों को प्राप्त हो गया।


1971 में हमारी सेना के पराक्रम ने जब पाकिस्तान की सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए विवश किया तो तत्कालीन कांग्रेसी नेतृत्व ने पाकिस्तानी सेना के 93000 सैनिकों को बिना शर्त रिहा कर दिया ।इसके अतिरिक्त पाक अधिकृत कश्मीर के प्रति भी यह पार्टी प्रारम्भ से ही आंखें बंद किए बैठी रही । जबकि पाक अधिकृत कश्मीर से चुनकर आने वाले विधायकों के लिए जम्मू कश्मीर की विधानसभा में आज तक भी सीटें खाली पड़ी रहती हैं।
कॉंग्रेस ने 90,000 वर्ग किलोमीटर के साथ कैलाश मानसरोवर चीन को प्रदान किया। जम्मू कश्मीर में भविष्य की एक और आपदा को आमन्त्रित करते हुए कांग्रेस ने रोहिंग्याओं को बसाया। बांगलादेशियों को देश में घुसपैठियों के रूप में आने दिया और अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए उन्हें देश का स्थायी नागरिक बनाते हुए वोट का अधिकार भी प्रदान किया। आज यही घुसपैठिए देश में लूट, हत्या ,डकैती और बलात्कार के अनेकों अपराध कर रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी ने ही इंदिरा गांधी के शासनकाल में देश में पहली बार आपातकाल लागू कर देश के लोगों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया , प्रेस का गला घोंटा और जनसाधारण पर अनेकों प्रकार के अत्याचार किये । 1966 में गोरक्षा आंदोलन कर रहे अनेकों साधुओं पर गोली चलवाकर उनकी निर्मम हत्या करने का पाप भी कांग्रेस ने ही किया।

रचनात्मक विपक्ष की भूमिका नहीं निभा रही है

अपनी देश विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए कांग्रेस ने एनआरसी का विरोध किया। ‘टुकड़े -टुकडे गैंग’ और नकसलियों का समर्थन किया। ‘जिन्ना वाली आजादी’ मांगने वाले लोगों का समर्थन किया और इसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता कहकर सम्मानित किया। आतंकियों के भी मानव अधिकार होने की वकालत की । इतना ही नहीं, उन्हें सूली से बचाने के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय को भी रात के 2:00 बजे खुलवाया। वर्तमान सरकार के प्रत्येक कार्य में अड़ंगा डालना कांग्रेस की नीति का एक अंग है । किसी भी स्थिति में सरकार को अस्थिर करते रहना और विदेशों में भारत विरोधी लोगों से संपर्क साधकर सरकार को गिरवाने की योजनाओं में सम्मिलित होना कांग्रेस के चरित्र का एक आवश्यक अंग बन गया लगता है।

देश में ‘भगवा आतंकवाद’ होने का भ्रम फैलाया

1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के समय इस पार्टी के युवा प्रधानमंत्री की राजनीतिक अनुभवशून्यता के कारण कांग्रेस समर्थक लोगों ने 2700 सिखों का हत्याकांड किया। साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को झुटे आरोप में जेल में डाला।”भगवा आतंकवाद” कहकर हिन्दुओं को अपमानित किया और हिन्दुत्व के मानवतावाद को भी इस प्रकार परिभाषित और स्थापित किया कि जैसे देश में इसी धर्म के लोगों के द्वारा अशांति और उपद्रव किए जाते हैं। कांग्रेस ने दूरदर्शन का “सत्यम शिवम सुन्दरम” लोगो हटाया।
केन्द्रीय नवोदय विद्यालय के लोगो में से “असतो मा सत गमय” श्लोक हटाया।”वन्देमातरम्” को राष्ट्रगान बनाने का प्रारम्भ से ही विरोध किया ।इतना ही नहीं अपने पार्टी कार्यक्रमों में कभी भी ‘वन्देमातरम’ को गाने की अनुमति नहीं दी।
पार्टी ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के पात्रों को कल्पनिक बताया और वेदों एवं उपनिषदों की शिक्षाओं को सांप8 शिक्षा कहकर विद्यालयों के पाठ्यक्रम में उनको स्थान देने से इनकार किया।तीन तलाक की तुलना श्रीराम द्वारा सीताजी को छोड़ने से की। सेना को धर्म के आधार पर गिनती कर बांटने की चेष्टा की। कांग्रेस की अधिवक्ता टीम ने आतंकी ‘टुकडे टुकड़े गैंग’और नक्सलियों के केस लड़े।
संविधान की आत्मा के अनुसार कार्य न करते हुए कांग्रेस ने हज को सबसिडी दी और अमरनाथ यात्रा पर टैक्स लगाया। सोमनाथ मन्दिर बनाने के लिये सरदार पटेल का विरोध किया। सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन करने जाने वाले राष्ट्रपति डाँ. राजेंद्र प्रसाद का विरोध किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को “मुस्लिम ब्रदरहुड” जैसा आतंकी संगठन कहकर कांग्रेस ने राष्ट्रवादी संगठनों को भी अपमानित करने का कार्य किया। करोडों दोगले हिन्दुओं के साथ होते हुये भी कांग्रेस में स्वयं को “मुसलमानों की पार्टी” कहा।
इतना ही नहीं हिन्दुत्व को इस देश की आम सहमति स्वीकार न करते हुए एक ऐसी कल्पना की जिसके आधार पर भारत ‘मुस्लिम राष्ट्र’ बनने की दिशा में अग्रसर हो सके।

चीन के प्रति दिखायी नरमी

आज विश्व के लिए भस्मासुर बने चीन को वर्तमान सम्मानजनक स्थान दिलाने में भी कांग्रेस ने ही महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब इस पार्टी ने संयुक्त राष्ट्र में ‘वीटो पावर’ का अधिकार चीन को लेने दिया और उसे स्थाई सदस्य बनने दिया तो इसने देश के लिए विनाशकारी निर्णय लेकर अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता और कूटनीतिक सूझबूझ न होने का परिचय दिया।
अब इस पार्टी को देश के लोगों ने सत्ता से दूर कर दिया है तो इसके नेतृत्व से अपेक्षा की जाती थी कि यह अपनी गलतियों पर प्रायश्चित करेगा और ‘अपराध बोध’ करते हुए जनता के सामने जाने का साहस करेगा, परन्तु दुर्भाग्य है कि पार्टी के नेतृत्व ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है। जबकि देश का जनमानस और कॉन्ग्रेस के साधारण कार्यकर्ता भी यही चाहते हैं कि पार्टी अपने आपको नए स्वरुप में प्रस्तुत करे।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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