पाकिस्तान बन चुका है एक ऐसी यूनिवर्सिटी जहां से निकले ग्रेजुएट बनते हैं दुनिया के सबसे बड़े खूंखार आतंकवादी

 

                                                        दारुल उलूम हक्कानिया (साभार: द डॉन)
पाकिस्तान का नाम आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए विश्व भर में कुख्यात है। पाकिस्तान लगातार ऐसे इस्लामी आतंक को पनाह देता आया है जिनके निशाने पर भारत, अफगानिस्तान और संयुक्त राष्ट्र जैसे पश्चिमी देश हैं। 

वहाँ अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा, तालिबान जैसे आतंकी संगठन बिलकुल आजाद होकर घूमते हैं। इतना ही नहीं राजनीतिक और सेना का संरक्षण भी इन संगठनों को दिया जाता है और इन्हीं को सुरक्षित रख कर या सबकी नजरों से छिपाकर पाकिस्तान अपने गुप्त प्रोपगेंडे को पूरा करता है।

पाक की ऐसी हरकतों के कारण FATF ने उसे साल 2018 से ग्रे लिस्ट में रखा हुआ है। उस पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि वह अपनी सरजमीं पर आतंकियों को ऐसा माहौल देते हैं कि उनके संगठन ऑपरेट किए जा सकें।

सोचने वाली बात यह है कि आखिर एक इस्लामिक राष्ट्र इतनी तेजी से आतंकवाद की फैक्ट्री कैसे बन रहा है? क्यों हर आतंकी इस जगह को अपने लिए जन्नत मानता है? क्यों यहाँ 9/11 का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन पकड़ा जाता है? कहाँ से यह आतंकी संगठन नए लोगों को भर्ती करते हैं?

दारुल उलूम हक्कानिया- ‘यूनिवर्सिटी ऑफ जिहाद’

एएफपी की हालिया रिपोर्ट ने इन सभी प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। इस रिपोर्ट में दारुल उलूम हक्कानिया का जिक्र किया गया है। इसे जिहाद यूनिवर्सिटी बताते हुए कहा गया है कि यही संगठन लोगों में इस्लामी जिहाद के बीज बोता है और बाद में उन्हें आतंकी संगठनों को मुहैया करवाकर उनकी मैनपावर बढ़ाता है।

यहाँ तालिबान से जुड़े आतंकियों का नाम शान से लिया जाता है और बताया जाता है कि इस मदरसे से तालीम लेकर निकले आतंकी कैसे तालिबान में बड़े ओहदों पर पहुँचे है। इसमें इस्लाम के ‘दुश्मनों’ के ख़िलाफ नए जिहादियों को मजहबी लड़ाई जारी रखने के लिए प्रेरणा भी दी जाती है।

मौजूदा जानकारी के अनुसार, पेशावर से लगभग 60 किलोमीटर (35 मील) पूर्व में अकोरा खट्टक में दारुल उलूम हक्कानिया मदरसे का कैंपस बना हुआ है। यहाँ 4000 जिहादियों को पनाह दी जाती है। इन्हें मुफ्त में खाना, आश्रय और पहनने को कपड़े मिलते हैं। इनके भीतर तालीम के नाम पर उग्रवाद और कट्टरपंथ भरा जाता है।

कई तालिबानियों ने ली है दारुल उलूम हक्कानिया से तालीम

इस मदरसे की शुरुआत मौलाना अब्दुल हक ने 1947 में की थी। उनके बाद 81 साल के कट्टरपंथी उलेमा समीउल हक को इसकी देख-रेख की जिम्मेदारी मिली मगर आतंकियों ने साल 2018 में उसे उसके घर पर ही मार डाला।

उसने 1980 के दशक में सोवियत के ख़िलाफ़ अफगान मुजाहिद्दिनों का साथ दिया था और बाद में उस तालिबान का भी समर्थन किया था, जिसने यूएस-नाटो के ख़िलाफ़ अफगान में हमले शुरू किए। कहा जाता है कि पाकिस्तान की पूर्व पीएम बेनेजीर भुट्टो को मारने वाला आतंकी भी इसी यूनिवर्सिटी का ग्रैजुएट था।

इस यूनिवर्सिटी का प्रभाव साल 2014-15 में देखने को मिला था, जब पूर्व पीएम नवाज शरीफ को देश में चल रहे संघर्ष को खत्म करने के लिए समीउल हक से अनुरोध करना पड़ा था कि वह आतंकी संगठनों पर अपनी आड़ का इस्तेमाल करें। दिलचस्प बात यह है कि यह वो समय था, जब पाकिस्तान के तालिबानियों ने देश के भीतर हमले करने शुरू कर दिए थे। पेशावर आर्मी स्कूल में साल 2014 में हमला हुआ था, जिसे पाकिस्तानी तालिबानियों ने करवाया था।

आज हक्कानिया को इमरान सरकार की ओर से आर्थिक संरक्षण दिया जाता है। साल 2018 में खैबर पख्तूनख्वा सरकार ने दारुल उलूम के लिए 277 मिलियन रुपए अनुदान किए थे। इससे पहले साल 2016-2017 में 300 मिलियन रुपयों की सहायता दारुल उलूम को मिली थी।

इतना ही नहीं, साल 2018 में पीएम इमरान खान ने भविष्य के आतंकी नेताओं को पोषित करने के लिए आर्थिक सहायता का समर्थन किया था। खान ने दावा किया था कि ऐसी मदद से मदरसों के छात्रों को मुख्यधारा में लाने में और कट्टरता से दूर रखने में मदद होगी।

भारत की तरह अफगानिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा ऐसे कट्टरपंथी संगठनों को बढ़ावा देने के लिए उन पर निशाना साधता रहता है। हाल में अफगान के नेताओं ने पाकिस्तान द्वारा मदरसे को आर्थिक समर्थन देने पर सवाल उठाए थे और दावा किया था कि इससे पता चलता है कि पाक तालिबान को समर्थन देता है।

अभी हाल में दारुल उलूम हक्कानिया के नेताओं ने अफगानिस्तान में तालिबान विद्रोह का समर्थन करते हुए गर्व से एक ऑनलाइन वीडियो साझा किया था, जिस पर काबुल की सरकार ने नाराजगी जताई थी। इस पर अफगानिस्‍तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रवक्ता सादिक सिद्दीकी ने कहा था, “ये संस्थाएँ कट्टरपंथी जिहाद को जन्म देती हैं, तालिबानी पैदा करती हैं और हमारे देश को धमकी दे रही हैं।”

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