आधुनिक नारी सौन्दर्य बोध:एक विचार

डाक्टर इन्द्रा देवी
किसी भी सामाजिक परिवेश से जब हम मानव जीवन की व्याख्या करने बैठते है तो नारी-जीवन की व्याख्या सबसे पहले हो जाती है। भोला मानव मॉ की गोद में ही अपने विवेक की आँखें खोलता है,तत्पश्चात् वह सामाजिक सम्बन्घों से आवश्यकता अनुसार परिचित होने लगता है। सामाजिक जीवन में पूर्णत: प्रविष्ट हो जाने के प्श्चात् भी पुरूषों के सम्बन्ध नारियों से अपेक्षाकृत अधिक आत्मीय होते हैं। मानवता का जितना इतिहास आज उपलब्ध होता है, वह चाहे इतिहास ग्रंथ के रूप में हो या काव्य ग्रंथ के रूप में उसके नियामक अथवा सृष्टा प्राय: पुरूष ही रहे है पर उन्होंनें चर्चा के लिए मुख्यत: नारी को ही चुना है। यदि नारी इतिहास का निर्माण करती है तो सामाजिक परिस्थितियों में नारी का स्वयं निर्माण भी होता है। परिणाम स्वरूप नारी के समाजगत मूल्यों में परिवर्तन होता रहा है। आदिकालीन नारी को सामने रखकर यदि हम बीसवीं शताब्दी के नारी मूल्यों की तुलना करने बैठ जाएगें तो हमें निराश ही होना पड़ेगा। काल चाहे ऋग्वेद, महाकाव्य, बौद्ध, पूर्व मध्य अथवा आधुनिक ही हो इन सभी में सौन्दर्य बोद्य सम्पन्न नारी हुई है यथा-आम्रपाली चित्र लेखा एवं दिव्या से सुष्मिता सेन तक सभी ग्लैमर की दुनिया तें भी मातृत्व बोध से मुक्त नहीं हो पायी है। यह लिखते अुए अटपटा सा अवश्य लगता है कि अति सौन्दर्य बोध हमारी मातृत्व क्षमता को ही न निगल जाये यह विचारणीय प्रश्न है।
साहित्य समाज का दर्जण है। आज के मीडिया आर्क्रांत समय में अखबार भी हमारे समाज और उसकी प्राथमिकता के दर्पण ही है। दिसम्बर 2000 में खबर आई कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिहं ने प्रदेश के अन्दर किसी भी तरह की सौन्दर्य प्रतियोगितो के न होने का दृढ संकल्प लिया। राजनाथ सिहं का मत था कि भारतीय सौन्दर्य कोई नुमाइस की वस्तु नहीं, क्योंकि भारतीय सभ्यता और संस्कृति लज्जाशीलता और शालीनता को भी नारी का आभूषण मानती है।दो राउन्ड में स्विमिंग कोस्टयूम में गुजर कर शारीरिक सौष्ठव की परीक्षा देनी
होती है। यह उस समय की घटना है जब प्रियंका चोपड़ा विश्व सुन्दरी चुनी गई तो बरेली ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में हर्ष की लहर थी। यहां के कई संगठनों ने यह घोषणा की कि प्रियंका के वापस आने पर उन्हें अपने प्रदेश में रैड कार्पेट वैल्कम दिया जाये। बरेली की छात्राओं ने प्रियंका की जीत को अपनी जीत माना और टी0 वी0 पर साक्षात्कार भी दिए कि जब प्रियंका चौपड़ा, जो कल उन्हीं के बीच थी, इतनी ऊँचाइयां छू सकती है तो यह निश्चित समझो कि सौन्दर्य केवर्ल मेट्रोज तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि यह निर्बन्ध हो गया है। यह स्त्री सौन्दर्य भारतीय आंकड़ों पर आधारित नहीं है। यह चेहरा लम्बा नहीं, गोल है। अंडाकार है। ऑखें बड़ी किन्तु मंगोल लुक देने वाली है।काजल भी तीखा नहीं है। रदपट यद्यपि बड़े और मोटे हैं। टांगं पतली और लम्बी हैं। यह कुछ मेडोना की-सी मैटीरियल गर्ल की छबि है।यह पतली और उन्नत व आछबि पूूरी तरह पश्चिमी है। भारत में नारी के इस रूप का एक माध्यम ‘फेमिनाÓ है। फेमिना अब एक ग्लैमर पत्रिका के रूप में पढ़ी जाती है। फेमिना के अनेक अंक इस का प्रमाण है नारी की इस छवि को बदलने में सेलिब्रिटी, कॉस्मेटिक्स, फैशन, फोटोग्राफर मॉडल एवं डिजायनर की मुख्य भूमिका है । इसका परिणाम यह हुआ कि आज अधिकांश नारिया अपने शरीर को लेकर अति जगरुक है । काले होने का दुख: और चर्बी से ज्यादा परेशानी है विशेष रुप से युवतिया सब कुछ कर गुजरने को तैयार है। ये पतला होने के लिए खाना पिना भी छोड देती है यंहा प्रश्न उठता है कि सुन्दरता के जिस पैमाने को यह कसोटी मान रही है वह पश्चिमी है । इसका जवाब ढूंढने के लिए इस मानसिकता को भी समझाना जरुरी है कि नारी अस्तित्व सिर्फ उसके शरीर पर ही आधारित है उसकी यह सोच ही नारी के बौद्धिक विकास मे सबसे बडी बाधा है।हमारे शिक्षण सस्थान जो कि मानसीक परिष्कार के केद्र है , देह साधना के सस्थान दिखाई देने लगे है।
आकर्षक दिखने की चाह स्वाभाविक होनी चाहिए लेकिन जब यह नशे का रुप धारण कर ले तो नारी का शरीर उसके दिमाग पर हावी हो जाता है । हमारी इस सोच को बाजार भुना रहा है गौरा रंग करने वाले और दुबला करने वाले उत्पादो से बाजार पटा है । उत्पादक प्राय: विदेशी है और उपभोंकता देशी । हमारी त्वचा के रंग के लिए मेलनिन नामक पद्धार्थ जिम्मेदार होता है यह गर्मी एवं सूरज की अल्ट्रावायल्ट किरणो से हमारी त्वचा को सुरक्षित रखता है । भारत मे सूरज की तपिस ज्यादा है । यहॉ लोगो की त्वचा मे मेलनिन की मात्रा डेनमार्क वासीयो से ज्यादा ही होगी अत: कोई भी क्रीम भारत और डेनमार्क वासियो की त्वचा के रंग को समान नही बना सकते अब हमे इस सोच को बदलना होगा कि गौरी त्वचा ऊँचे खानदान या कुल -सील की परिचायक है । भारत को श्रमजीवि सभ्यता पर गर्व करने का समय आ गया है अगर हम घंटो धुप मे काम करते है , तो त्वचा की सुरक्षा के लिए आपका मेलनिन उभरेगा ही । त्वचा के सावलेंपन पर हमे गर्व करना चाहिए यदि हम किसी क्रीम या ब्लीच के द्वारा त्व्चा का रंग बदलने का दर्पणीय प्रयास करते है तो त्वचा विषयक बिमारियो अलर्जी को निमत्रण दे रहे है । प्रकृति के विरुद्ध न जाकर हमे अपने स्वभविक रंग के प्रति हीन भावना को छोड देना चाहिए ताम्रवर्ण ही भारत का स्वभाविक रंग है ।
आज की नारी पर ‘छरछरापनÓ ‘दुबलापनÓ स्लिम बॉडी जनून की तरह सवार है । किशोरी के शरीर पर मॉसलता देख उसे खाने की सीख देने लगती है। पराठा दुध दही मक्खन के स्थान पर वह सलाद जूस बेटी को देती है जबकि मासिक धर्म एवम् आगे प्रजनन के समय अतिरिक्त वसा की आवश्यकता शरीर को होती है । गर्भावस्था मे इन नारियो मे ऐनेरेकिल सया और वुलिमिया जैसे खतरनाक इॅटिग डिशऑडर आम है मॉडलिग की इस दुनिया मे आर्दश फिगर और वनज कहा जाता है वह असल मै एक रुग्ण और अस्वभाविक फिगर है प्लेवॉय मैग्जिन का सर्वेक्षण बताता है कि लगभग 72 प्रतिशत मॉडल अपनी लम्बाई और आयु के हिसाब से 18 प्रतिशत कम वजन वाली है । इसे किसी भी दृष्टि से सुन्दर नही कहा जा सकता अपितु यह कुपोषण है । समाज नेता और अभिनेता से सदैव प्रेरित रहा है आज किसी नेता को जीवन आर्दश नही बनया जा सकता । इसलिए आधुनिक समाज का बडा वर्ग परदे पर नाचती छरहरी हीरोइनो से प्रेरित है किन्तू स्वय को मोटी करार देने से पहले यह देखना चाहिए कि आपकी लंम्बाई उम्र और शारीरिक बनावट के अनुसार आपमे कितनी चर्बी होनी आवश्यक है । इसकी सही सलाह अच्छी डॉक्टर से मिल सकती है । कभी कभी ऐसा लगता है कि दो भारत है एक न खाकर सूख रहा है दूसरे को मिल नही रहा है इसलिए वह आत्महत्या कर रहा है । हमारा मिडिया भी अपनी जवाब देही से बच नही सकता है । उसने बुंदेलखण्ड आन्ध्रप्रदेश एवं विदर्भ मे आत्महत्या करते किसानो की पत्नियो की अभावग्रस्त किसमिस सी सुखी त्वचा और जर्जर तस्वीरो को कलैडर का रुप कभी नही दिया । उसने हमे यह नही बताया कि जिस वक्त अन्न से देश के सरकारी गोदाम पटे जा रहें है उस देश के विभन्न भागो मे भूख से बिलखती इन नारियो के क्या नाम पहचान है ? उनकी मौत भूख से हो रही है या बूढापे से इसकी गम्भीर पडताल करनें को जोखिम मीडिया ने नही उठाया । उसने हमे यह नही बताया कि पतला ;दुबला करने वाली उत्पादो वाली कम्पनियो ने सौन्दर्य सामग्रियो का यह अभूत पूर्व दौर शुरु होने से लेकर अब तक कितना मुनाफा कमाया । मबेलीन जैसी प्रसाधन निर्माता कम्पनियो जिनका बाजार पश्चिम में बैठ रहा था फिर से नया जीवनदान पा गई है । दुध-मलाई कैमी साबुन से विटामिन शैम्पू से युवती को प्रेरित किया ।
आज यह सर्वमान्य है कि ‘सौन्दर्य मिथÓ यूरोपीय है । हम जाने अनजानेे यूरोपीय प्रेरित है इससे इंकार नही किया जा सकता है फ्रांस की संसद मे इस सन्दर्भ मे एक पहल हुई है । यह पेश एकबिल मे पतलेपन को उकसावा या बढावा देने को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिए जाने का प्रस्ताव है। यह बिल मॉडलिंग की दुनिया के लिए अब तक का सबसे बडा सख्त फैसला होगा । इसका स्पष्ट अभिप्राय है कि दुबली काया वाली मॉडल से उत्पाद का प्रचार नही करा सकेगे और न ही ऐसी मॉडल रैप पर कैटवाक कर सकेगी । बिल तैयार करने वाली बलेरी वायर कहती है कि उन्होने बिल मे मुख्य रुप से एनोरे क्सिक वेबसाइट को निसाना बनाया है वर्ष 2006 मे ब्राजीलियाई मॉडल की मौत का कारण एनोरेक्सिया से जुडा हुआ था । यहॉ बिल के पेश के होने से जहॉ एक ओर नागरिक सेहत को लेंकर फ्रांस सरकार की चिंता जाहिर हुई है वही दुसरी ओर फैसन उधोग एंव सौन्दर्य प्रतियोगिताओ मे इस बिल को सख्त माना जा रहा है। जिस तरह संगम मे सांस थामकर एक डूबकी से हम मान लेते है कि हमारे जन्म-जन्मान्तर के पाप धुल गए । उसी तरह अर्न्तराष्ट्रीय सौन्दर्य प्रगतियोगिताओ मे अपनी विजयी सुन्दरियो और दर्पणीय भारत मे नारी शिक्षा एव प्रगती के उज्जवल आकडे देखकर हम खुश हो जाते है । यथा स्थिती इसके विपरीत है । अकेले उत्तर प्रदेश मे नारी खिलाफ समस्त देश मे घटने वाली योन शोषण की घटनाओ मे से 50 प्रतिशत घटनाए घटती है । पुलिस हिरासत मे बलात्कार के हर चार मामलो मे से एक यंहा घटता है । घरेल हिंसा मे भी यंहा कोई कमी नही है । चुडैल डायन रखैल दुसरी औरत उप पत्नी का पुर्लिग आज भी नही मिलता । जिस देश मे नारी की देह इतनी असुरक्षित है वही उसकी छरहरी देह आत्मरक्षा मे कही सहायक नही होती । मॉडलिंग या रैंप के प्रति हिन्दुत्वादी इस्लामिक या सिख शान्तियो मात्र सांमन्ती नियन्त्रण या सोच कहने से अब बात नही बनने वाली है । वे यदि सौन्दर्य प्रतियोगिताओ के बहाने क्षीणकाय और मंहगे फैशनो की नुमाइश को यदि गलत कहे तो उसका अदतन विरोध करने के बजाय तनिक रुक कर पहले उसके फलादेशी पर सोचना बेहतर होगा । जिस देश मे भ्रण हत्या जैैसे कुकृत्य से नारी संख्या मे लगातार गिरावट आ रही है । उस देश के ऐनोरेक्स्यिा और वुलमिया जैसे दुष्परिणामाओ पर गौर करके फ्रांस की भांति इन्हे बढावा देने या उकसावा देने वालो की दंडनिय अपराध के अर्न्तगत लाने का प्रयास होना चाहिए । न प्रत्येक नारी जननी भी है यही इसका चिरंजन शाश्वत रुप है । देश स्वस्थ मजबूत संतति पर ही टिका हुआ है ।

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