पाकिस्तान में हिंदू कृष्ण मंदिर के खिलाफ फतवा जानिए क्या है पूरा मामला ?

शुमाइला जाफ़रीबीबीसी न्यूज़, इस्लामाबाद

02 जुलाई 2020

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में पहले हिंदू मंदिर के निर्माण की पहल हुई ही थी कि इसे लेकर विवाद भी खड़ा हो गया है.

कुछ दिनों पहले इस्लामाबाद कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी ने मंदिर के लिए ज़मीन दी थी लेकिन मज़हबी शिक्षा देने वाली संस्था जामिया अशर्फ़िया मदरसा के एक मुफ़्ती ने इसके ख़िलाफ़ फ़तवा जारी कर दिया है. इतना ही नहीं, मंदिर का निर्माण रोकने के लिए एक वकील हाईकोर्ट तक पहुंच गए हैं.

23 जून को एक साधारण कार्यक्रम में सांसद और मानवाधिक मामलों के संसदीय सचिव लाल चंद माल्ही को मंदिर निर्माण के ऐतिहासिक काम की निगरानी के लिए नियुक्त किया गया था.

20 हज़ार स्क्वायर फ़ीट की ये ज़मीन वैसे तो साल 2017 में ही एक स्थानीय हिंदू समिति को सौंपी गई थी लेकिन प्रशासनिक वजहों से मंदिर निर्माण का काम अटका हुआ था.

अब पाकिस्तान सरकार ने यह ज़मीन इस्लामाबाद की हिंदू पंचायत को सौंप दी है और प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मंदिर निर्माण के प्रथम चरण में 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा भी की है।

इसके बाद लाल चंद माल्ही ने ट्वीट करके कहा था, “यह इस्लामाबाद में पहला हिंदू मंदिर होगा. सरकार ने मंदिर के निर्माण के लिए ज़मीन दी है. पाकिस्तान ज़िंदाबाद.”

मंदिर और सामुदायिक केंद्र बनाना चाहते हैं हिंदू

इस ऐलान के बाद हिंदू समुदाय के दिए चंदे से कृष्ण मंदिर की चारदीवारी बनाई जाने लगी थी क्योंकि सरकार द्वारा ऐलान की गई राशि अभी मिलनी बाकी है.

लाल चंद माल्ही ने बीबीसी को बताया कि हिंदू पंचायत इस ज़मीन पर विशाल परिसर बनाना चाहती है जिसमें मंदिर, श्मशान, लंगरखाना, सामुदायिक हॉल और रहने के लिए धर्मशाला होगी. शुरुआती अनुमान के मुताबिक़ इस मंदिर को बनाने में कम से कम 50 करोड़ रुपये का ख़र्च आएगा.

उन्होंने बताया, “इस्लामाबाद हिंदू पंचायत ने अपने पैसों से चारदीवारी बनवानी शुरू कर दी है क्योंकि सरकारी फ़ंड जारी होने में अभी कुछ वक़्त लगेगा. पाकिस्तान में सभी धर्मों के लोग रहते हैं और पाकिस्तान के हर नागरिक का इस्लामाबाद पर बराबर अधिकार है. इसलिए मंदिर बनाए जाने का यह फ़ैसला प्रतीकात्मक है. इससे पूरे पाकिस्तान के लोगों में धार्मिक सद्भाव का संदेश जाएगा.”

लाल चंद माल्ही के अनुसार इस्लामाबाद की डेवलपमेंट अथॉरिटी ने हिंदू मंदिर के अलावा ईसाइयों और पारसियों के धर्मस्थल के लिए भी 20 हज़ार स्क्वायर फ़ीट की ज़मीन दी थी.

उन्होंने कहा, “इसके पीछे हमारा मक़सद अंतरधार्मिक सद्भाव बढ़ाना और क़ायदे आज़म मुहम्मद अली जिन्ना के सपनों का समावेशी पाकिस्तान बनाना है.”

‘इस्लाम में नए मंदिर बनाने की इजाज़त नहीं’

मंदिर निर्माण के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी करने वाली संस्था जामिया अशर्फ़िया लाहौर की देवबंदी इस्लामिक संस्था है. ये साल 1947 में पाकिस्तान के जन्म के साथ ही अस्तित्व में आई थी और तब से इस संस्था से हज़ारों देवबंदी छात्र इस संस्थान से पढ़कर निकले हैं.

जामिया अशर्फ़िया को पाकिस्तान में देवबंदी शिक्षा के सबसे अहम संस्थानों में से एक माना जाता है और दुनिया भर के लोग यहां इस्लामी शिक्षा लेने आते हैं. जामिया अशर्फ़िया के प्रवक्ता के अनुसार मंदिर निर्माण के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी करने वाले मुफ़्ती मुहम्मद ज़कारिया पिछले दो दशकों से संस्थान से जुड़े हैं.

उनके फ़तवे को एक अन्य वरिष्ठ मुफ़्ती ने अपना समर्थन दिया है. इस फ़तवे में मुहम्मद ज़कारिया ने कहा है कि इस्लाम में अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों की देखभाल करना और उन्हें चलाना तो ठीक है लेकिन नए मंदिरों और नए धर्मस्थलों के निर्माण की इजाज़त इस्लाम में नहीं है.

उन्होंने अपने फ़तवे में कुछ ऐतिहासिक संदर्भों और लेखों का उदाहरण भी दिया है. बीबीसी से बातचीत में मुफ़्ती मुहम्मद ज़कारिया ने कहा कि उन्होंने लोगों के सवालों के बाद ये फ़तवा जारी किया है.

उन्होंने कहा, “हम कुरान और सुन्ना के ज़रिए लोगों का मार्गदर्शन करने की कोशिश करते हैं. हम अपने मन से कुछ भी नहीं बोलते. मेरी समझ है कि एक इस्लामी मुल्क में नए मंदिर और या कोई अन्य धर्मस्थल बनाना ग़ैर-इस्लामी है.”

अगर सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी तो वो क्या करेंगे? इसके जवाब में उन्होंने कहा, “हमारे पास सरकार से अपनी बात मनवाने की ताकत नहीं है. हम सिर्फ़ धर्म के आधार पर उसे समझाने की कोशिश कर सकते हैं और हमने अपना काम कर दिया है.”

जामिया अशर्फ़िया के प्रवक्ता मौलाना मुजीबुर्रहमान इंक़लाबी ने बीबीसी से कहा कि फ़तवा जारी करने का मक़सद किसी का विरोध करना नहीं बल्कि कुछ लोगों के सवालों का जवाब देना था. उन्होंने कहा कि मुफ़्तियों ने इस्लाम की जानकारी के अनुसार लोगों की शंकाओं का समाधान करने की पूरी कोशिश की है.

अदालत का मंदिर निर्माण पर रोक से इनकार

इस्लामाबाद के वकील तन्वीर अख़्तर ने क़ानूनी आधार पर इस कृष्ण मंदिर का निर्माण रुकवाने के लिए हाईकोर्ट का रुख़ किया है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “इस मसले पर मेरी सिर्फ़ एक आपत्ति है. मैं जानना चाहता हूं कि सरकार ने जब सेक्टर एच-9 में ज़मीन का अधिग्रहण किया था तो क्या उस योजना में मंदिर के लिए ज़मीन आरक्षित रखे जाने का कोई ज़िक्र था? अगर नहीं तो कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी अब हिंदू मंदिर बनाने के लिए ज़मीन कैसे दे सकती है? इसे तुरंत रोका जाना चाहिए क्योंकि यह नियमों का उल्लंघन है.”

हालांकि इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने तन्वीर अख़्तर की याचिका पर मंदिर निर्माण पर स्टे ऑर्डर से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को भी धार्मिक आज़ादी का उतना ही अधिकार है जितना कि बहुसंख्यकों को.

इसके साथ ही अदालत ने कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी के अध्यक्ष और अन्य सम्बन्धित अधिकारियों को नोटिस भी भेजा है और कहा है कि याचिकाकर्ता वकील के सवालों का जवाब देकर यह स्पष्ट किया जाए कि मंदिर बनाने में नियमों का उल्लंघन नहीं हो रहा है.

मानवाधिकार मामलों के संसदीय सचिव लाल चंद माल्ही ने इस पूरे घटनाक्रम पर निराशा व्यक्त की है.

उन्होंने रहा, “पाकिस्तान एक बहु-सांस्कृतिक देश है जहां अलग-अलग समुदाय एकसाथ रहते हैं. देश के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने यह सुनिश्चित किया था कि यहां अल्पसंख्यकों को बराबर अधिकार मिलें और इमरान ख़ान की सरकार इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. मैं उम्मीद करता हूं कि हाईकोर्ट अगली सुनवाई में इस याचिका को ख़ारिज कर देगा.”

लंबे वक़्त से हो रही है मंदिर की मांग

पाकिस्तान में लगभग 80 लाख हिंदू रहते हैं. दक्षिणी सिंध प्रांत के उमरकोट, मीरपुर ख़ास और थारपाकर में अच्छी-खासी संख्या में हिंदू रहते हैं. वहीं, इस्लामाबाद में लगभग 3,000 हिंदू रहते हैं.

इस्लामाबाद हिंदू पंचायत के पूर्व अध्यक्ष प्रीतम दास उन चंद लोगों में से हैं जो साल 1973 थारपाकर से इस्लामाबाद आए थे.

वो बताते हैं, “मैं उन चंद शुरुआती लोगों में से था जो नई राजधानी इस्लामाबाद में आए थे. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां हिंदू लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है.”

इस्लामाबाद के गांव सैदपुर में एक छोटी से मूर्ति थी जिसे उस वक्त संरक्षित किया गया जब गांव को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया. लेकिन प्रीतम दास के मुताबिक़ ये सिर्फ़ एक सांकेतिक मूर्ति है जो इस्लामाबाद में बढ़ती हिंदू आबादी की पूजा-अर्चना के लिए नाकाफ़ी है.

उहोंने कहा, “इस्लामाबाद में हिंदुओं के लिए पूजा-पाठ करना और रीति-रिवाज निभाना बेहद मुश्किल होता है. जैसे, पहले यहां श्मशान नहीं था जिसकी वजह से हमें शवों के अंतिम संस्कार के लिए उन्हें दूसरे शहरों में ले जाना पड़ता था. यहां कोई सामुदायिक केंद्र भी नहीं था जिसकी वजह से हमें होली-दिवाली जैसे त्योहार मनाने में भी मुश्किल होती थी. इस मंदिर का बनना हमारी पुरानी मांग थी और मुझे ख़ुशी है कि आख़िरकार सरकार ने हमारी आवाज़ सुन ली है.”

‘मंदिर बनना पवित्र मदीना का अपमान’

मंदिर और इसके ख़िलाफ़ जारी हुए फ़तवे को लेकर पाकिस्तान से अलग-अलग तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. पंजाब विधान सभा के स्पीकर और पाकिस्तान मुस्लिम लीग वरिष्ठ नेता परवेज़ इलाही ने मुफ़्ती मुहम्मद ज़कारिया के फ़तवे का समर्थन किया है.

अपने मीडिया सेल के ज़रिए जारी किए गए एक वीडियो में परवेज़ इलाही ने कहा है कि पाकिस्तान को इस्लाम के नाम पर बनाया गया था और राजधानी इस्लामाबाद में नए मंदिर का निर्माण न सिर्फ़ इस्लामी भावना के ख़िलाफ़ है बल्कि पैगंबर मोहम्मद के बनाए मदीना शहर का भी अपमान है.

उन्होंने ये भी कहा कि मक्का पर फ़तह पाने के बाद पैगंबर मोहम्मद ने काबा की 300 मूर्तियों को नष्ट कर दिया था. परवेज़ इलाही ने कहा कि वो और उनकी पार्टी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का समर्थन करते हैं लेकिन साथ ही ये भी मानते हैं कि नए मंदिर बनाए जाने के बजाय पहले से मौजूद मंदिरों की देखभाल की जानी चाहिए.

परवेज़ इलाही वही नेता हैं जिन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर कटासराज मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू करवाया था.

वहीं, प्रधानमंत्री इमरान ख़ान लगातार कहते रहे हैं कि पाकिस्तान में उनकी सरकार अल्पसंख्यकों को बराबर के अधिकार दिलाएगी.

कुछ महीने पहले उन्होंने अपने ट्वीट में कहा था, “मैं लोगों को चेताना चाहता हूं कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों या उनके धर्मस्थलों को निशाना बनाने वालों से सख़्ती से निबटा जाएगा. हमारे अल्पसंख्यक इस देश में बराबरी के नागरिक हैं.”

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