देश में इस्लामिक आतंकवाद को फैलाने में कांग्रेस का रहा है महत्वपूर्ण योगदान

3 जून 1947 की वह घटना जब कांग्रेस ने किये थे देश के बंटवारे पर हस्ताक्षर । आज उस घटना को घटित हुए 73 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । दुर्भाग्य का विषय है कि आज भी कांग्रेस और देश तोड़ने वाली शक्तियों में वैसा ही समन्वय है जैसा 1947 में था। लगता है हमने अतीत से कोई शिक्षा नहीं ली । आज इसी परिप्रेक्ष्य में यह लेख लिखा जा रहा है।

इस्लामिक आतंकवाद को फैलाने में कांग्रेस ने सक्रिय भूमिका निभाई है । जब से कांग्रेस का जन्म हुआ तब से ही इस पार्टी ने देश में दोहरे मानदंडों को अपनाने का राष्ट्रघाती खेल खेलना आरंभ किया । एक शताब्दी से भी अधिक के कालखंड में बिखरे पड़े इतिहास के खंडहरों पर यदि विचार किया जाए तो पता चलता है कि इस देश को बांटने , तोड़ने , बर्बाद करने और यहां के जनसांख्यिकीय आंकड़ों को गड़बड़ा कर चारों ओर विनाश की आग लगाने में कांग्रेस की भूमिका सबसे अधिक रही है । कांग्रेस ने तथ्य और सत्य दोनों से हमेशा मुंह फेरा जो तथ्य गला फाड़ – फाड़ कर चीखते चिल्लाते कब रहे थे कि – “यहां पर सावधान हो जाओ , आगे गड्ढा है ।” कांग्रेस ने साफ दीवार पर लिखे हुए इस तथ्य और सत्य को भी समझा नहीं और गाड़ी को वहां पर जाकर न केवल फंसा दिया बल्कि अनेकों यात्रियों को ( 1947 में देश के बंटवारे के समय के मरे उन लाखों लोगों को जरा याद कीजिए जो ना तो अपना वतन देख सके और ना ही आजादी की खुली हवा में सांस ले सके ) मरवा दिया। अहिंसा की बात करने वाली इस कांग्रेस के दामन पर लाखों लोगों के नहीं बल्कि करोड़ों लोगों ( पाकिस्तान में रहे ढाई करोड़ हिंदू जो आज बढ़कर कम से कम 5 करोड़ तो हो ही जाने थे , वह आज घटकर मात्र 20 लाख रहे हैं , इस प्रकार उक्त करोड़ों हिंदू या तो मारे गए या धर्मान्तरित हो गए या पिछले 70 वर्ष से पाकिस्तान रूपी जेल में बंद रहकर अनेकों यातनाएं झेलते रहे ) के खून के दाग है।
कुरान शरीफ में लिखी उन आज्ञाओं को कांग्रेस ने कभी नहीं पढ़ा जो मनुष्य – मनुष्य के बीच न केवल भेद पैदा करती हैं बल्कि मुसलमानों को काफिरों के साथ हिंसक बर्ताव करने की प्रेरणा भी देती हैं । उन्हें जब 1924 में लाला लाजपतराय ने पढ़ा तो सी.आर. दास के लिए उन्होंने लिखा था-‘मैंने गत छह माह मुस्लिम इतिहास और कानून (शरीय:) का अध्ययन करने में लगाये। मैं ईमानदारी से हिंदू मुस्लिम एकता की आवश्यकता और वांछनीयता में भी विश्वास करता हूं। मैं मुस्लिम नेताओं पर पूरी तरह विश्वास करने को भी तैयार हूं। परंतु कुरान और हदीस के उन आदेशों का क्या होगा ? (जो मानवता को खुदा की पार्टी और शैतान की पार्टी में विभाजित करते हैं।) उनका उल्लंघन तो मुस्लिम नेता भी नही कर सकते।’
इसीलिए भारत में समस्या के मूल पर प्रहार करने से बचकर झूठी ऊपरी एकता की बातें करने वाली कांग्रेस और उस जैसी सेकुलर पार्टियों सहित इन पार्टियों की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों ने देश में राष्ट्रवाद की भावना को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई है। इन्होंने देश में यह भ्रांति फैलाने का काम किया कि अब देश में कोई भी ‘जयचंद’ नहीं है और ‘जयचंद की परंपरा’ भी नहीं है । जबकि देश में 1947 के बाद बड़ी तेजी से ‘जयचंद और जयचंद की परंपरा’ फलने फूलने लगी । जो नाग बिलों में रहने चाहिए थे , वह बाहर फुंफकारते घूमने लगे और सज्जनों को भयभीत करने लगे । इसके उपरांत भी कांग्रेस उन्हें राष्ट्र के सुसभ्य , सुशिक्षित नागरिक कहकर सम्मानित करती रही । उनके वीजा बनवा कर उन्हें विदेश घूमने की छूट देती रही ।
होना यह चाहिए था कि नागों को नाग कहा जाता और उनसे बचने के लिए या उन्हें पहचान देने के लिए लोगों को भी ऐसा कहा जाता कि नागों को नाग ही कहो और जयचंद को जयचंद कहकर जयचंदी परंपरा में विश्वास रखने वाले लोगों का विनाश करना अपना राष्ट्रधर्म बनाओ । आज जब शासन की ओर से कहीं कुछ ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं कि ‘जयचंद’ को जयचंद कहा जाए और उसकी परंपरा का विनाश करना राष्ट्रीय संकल्प बनाया जाए तो बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो इस बात को कहते पाए जाते हैं कि हमें किसी से देशभक्ति नहीं सीखनी । वास्तव में ऐसा कहने करने वाले लोगों को आज जयचंद और जयचंद की परंपरा में विश्वास रखने की पहचान मिलनी चाहिए । देश की रक्षा के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक है ।
हिंदू मुस्लिम के मध्य सांस्कृतिक रूप से स्थापित गंभीर मतभेदों को उपेक्षित करते हुए कई लोग जिस प्रकार अगंभीर और अतार्किक प्रयास करते हैं, उन्हें टोकते हुए ए.ए.ए. फैजी लिखते हैं-‘इस दिखावटी एकता के धोखे से हमें बचना चाहिए। परस्पर विरोधों के प्रति आंखें नही मूँद लेनी चाहिए। पुराने धर्मग्रंथों के उद्वरण दे देकर प्रतिदिन भारत वासियों की सांस्कृतिक एकता और सहिष्णुता का बखान नही करना चाहिए। यह तो अपने आपको नितांत धोखा देना है। इसका राष्ट्रीय स्तर पर त्याग किया जाना चाहिए।’
बात साफ है कि फैजी साहब हर उस मुसलमान को जो दुनिया को दो पार्टियों में बांटता है और शरीय: में विश्वास करता है, किसी भारत जैसे देश के लिए देशद्रोही मानते हैं, और शासन को उनके प्रति किसी प्रकार के धोखे में न आने की शिक्षा देते हैं। जो मुसलमान शरीय: में विश्वास नही करते उनकी देश भक्ति असंदिग्ध हो सकती है। पर उनकी संख्या कितनी है? चाहे जितनी हो वो अभिनंदनीय हैं। उनके दिल को चोट पहुंचाना इस लेख का उद्देश्य नही है।
परंतु एम.आर.ए. बेग क्या लिखते हैं ? तनिक उस पर भी विचार कर लेना चाहिए। वह लिखते हैं-‘न तो कुरान और न मुहम्मद ने ही मानवतावाद (भारत के वास्तविक धर्म का) का अथवा मुसलमान गैर मुसलमान के बीच सह अस्तित्व का उपदेश दिया है। वास्तव में इस्लाम का…धर्म के रूप में गठन ही दूसरे सभी धर्मों को समाप्त करने के लिए किया गया है। इससे यह भी समझा जा सकता है कि किसी भी देश का संविधान जिसमें मुसलमान बहुसंख्यक हों, धर्मनिरपेक्ष क्यों नही हो सकता? और धर्मनिष्ठ मुसलमान मानवतावादी क्यों नही हो सकता ?’
इसका अर्थ है कि एक मुसलमान को उसकी कट्टर धर्मनिष्ठा ही देशद्रोही और मानवता विरोधी बनाती है। इसीलिए बेग साहब अपनी पुस्तक ‘मुस्लिम डिलेमा इन इंडिया’ में आगे पृष्ठ 112 पर कहते हैं-‘वास्तव में कभी कभी ऐसा लगता है कि मुस्लिम आशा करते हैं, कि सभी हिंदू तो मानवतावादी हों पर वह स्वयं साम्प्रदायिक बने रहें।’
पृष्ठ 77 पर उसी पुस्तक में बेग साहब ने लिखा है-‘इस्लाम को निष्ठा से पालन करते हुए भारत का उत्तम नागरिक होना असंभव है।’
एम.जे. अकबर ने भारत के धर्मनिरपेक्ष बने रहने पर अच्छा विचार दिया है कि आखिर भारत धर्मनिरपेक्ष क्यों बना रहा है ? इस पर वह लिखते हैं:-‘भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य इसलिए बना हुआ है कि दस हिंदुओं में से नौ अल्पसंख्यकों के विरूद्घ हिंसा में विश्वास नही करते।’भारत के बहुसंख्यकों का ऐसा विचार प्रशंसनीय है। राष्ट्र के नागरिकों के मध्य ऐसा ही भाव होना भी चाहिए। परंतु बात बहुसंख्यकों की नही है-बात अल्पसंख्यकों की है कि उन्हें कैसा होना चाहिए ? उन्हें निश्चित ही बहुसंख्यकों के आम स्वभाव का अनुकरण करना चाहिए।
इस संदर्भ में हमें अभी हाल ही में प्रकाशित हुई उस खबर का संज्ञान लेना चाहिए जिससे पता चला है कि हरियाणा के मेवात में पिछले 25 वर्ष में 50 गांव मुसलमानों द्वारा हिंदू विहीन कर दिए गए हैं । इस प्रकार की घटनाओं से पता चलता है कि इन लोगों के इरादे क्या हैं ? 1924 में जो कुछ लाला लाजपत राय जी ने सीआर दास जी के लिए लिखा था उसमें कुछ भी अंतर नहीं आया है ।
एक उदाहरण और लेते हैं । बात डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी के समय की है , जब वह देश के राष्ट्रपति थे। देश के राष्ट्रपति के रूप में वह पूर्वोत्तर के किसी स्थान पर गए हुए थे । जहां पर ईसाइयों ने अपनी मिशनरीज के माध्यम से किए गए सेवा कार्य का अवलोकन करवाया । तब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि आपने मानवता की सेवा की यह तो बहुत अच्छी बात है , परंतु मेरा आपसे एक अनुरोध है कि यहां के नागरिकों का धर्म परिवर्तित ना कराकर अर्थात उन्हें ईसाई न बनाकर उनकी सेवा कीजिए । तब अपने भाषण में मिशनरी के बड़े नेता ने कहा था कि हम इतनी दूर से यहां आकर इतना पैसा खर्च कर रहे हैं , यह सब वैसे ही नहीं किया जा रहा है । इसका उद्देश्य यही है कि हम अपनी विचारधारा का प्रचार प्रसार करें । देश के राष्ट्रपति के सामने मिशनरी के धार्मिक नेता के द्वारा ऐसा कहा जाना तभी संभव हुआ था जब देश का तत्कालीन नेतृत्व उन्हें यहां पर ऐसा कुछ करने की खुली छूट दे रहा था जिससे हिंदू विनाश संभव हो सके । पूर्वोत्तर में आज ईसाई मिशनरीज अपने लक्ष्य में सफल हो गई हैं अर्थात वहां से ‘ हिंदू विनाश” का कार्य संपन्न हो गया है । इस पाप और इस राष्ट्रधात के लिए कांग्रेस नहीं तो कौन दोषी है ?
उस मिशनरी के धार्मिक नेता ने इस बात पर गहरा अफसोस व्यक्त किया था कि 200 वर्ष तक अंग्रेज यहां रहे , लेकिन केवल 60 लाख लोगों को ही ईसाई बना सके । अब यह काम हमको बहुत तेजी से करना होगा । वास्तव में धर्मनिरपेक्षता हमारे राष्ट्रवाद के लिए बहुत घातक रोग है । जिसे कांग्रेस ने ही इस देश में खाद पानी देकर पाला – पोसा है और आज हिंदू के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है ।
तनिक कल्पना कीजिए कि पिछले 70 – 72 वर्ष में इस्लाम को मानने वाले लोग देश में 10 गुना बढ़े हैं , यदि अगले 70 – 72 वर्ष में भी ये 10 गुना बढ़ गए तो क्या होगा और उस समय के लिए यह भी सोचिए कि हिंदुस्तान हिंदुओं के लिए ही उस समय न केवल जेल बन जाएगा अपितु एक यंत्रणा स्थल भी बनकर रह जाएगा। भारत में जो लोग आंखें खोले हुए भी सो रहे हैं , उन्हें निश्चित रूप से इस कल्पना को साकार होते देखकर आंख खोल लेनी चाहिए अर्थात जाग जाना चाहिए। निश्चित रूप से अब देश में न केवल समान नागरिक संहिता को लागू करने का समय आ गया है बल्कि संविधान के आपत्तिजनक अनुच्छेद 30 को हटाने और जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने का समय भी आ गया है। सभी देशवासियों को आंखें खोलकर और सजग होकर राष्ट्र हित में मोदी सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाना चाहिए कि वह अब बिना विलंब किए इन कामों को भी उतने ही साहस के साथ कर दिखाए जितने साहस के साथ उसने धारा 370 को हटाया था।
एम.सी. छागला साहब ‘रोजेज इन डिसेम्बर’ नामक अपनी पुस्तक के पृष्ठ 84 पर लिखते हैं-‘यदि किसी योग्य व्यक्ति की उपेक्षा अथवा उसको उन्नति से केवल इसलिए वंचित करना साम्प्रदायिकता है कि वह मुस्लिम, ईसाई या पारसी है तो यह भी साम्प्रदायिकता है कि उसकी नियुक्ति केवल इसलिए कर दी जाए कि वह इनमें से किसी अथवा किसी दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय से है।’
हामिद दलवाई ‘मुस्लिम पॉलिटिक्स इन सैक्युलर इंडिया’ के पृष्ठ 29 पर लिखते हैं-‘जब तक मुस्लिम साम्प्रदायिकता को समाप्त नही किया जाएगा, हिंदू साम्प्रदायिकता कभी समाप्त नही की जा सकेगी। साम्प्रदायिक मुसलमान पूरे भारत को इस्लाम में धर्मान्तरित करने के अपने स्वर्णिम सपनों में इतने खोए हुए हैं कि कोई भी तर्क उनके व्यवहार को बदलने में सफल नही हो सकता। उन्हें यह विश्वास कराना आवश्यक है कि उनके इस दिशा में किये गये सभी प्रयास असफल होंगे और उनकी आकांक्षाएं कभी भी पूरा होने वाली नही हैं। सर्वप्रथम उनके भव्य सपनों का मोहभंग करने की आवश्यकता है।’ मुशीरूल हक अपनी पुस्तक ‘इस्लाम इन सैक्यूलर इंडिया’ के पृष्ठ 12 पर लिखते हैं-‘बहुत से मुसलमान ऐसा विश्वास करते हैं कि भारतीय शासन को तो धर्मनिरपेक्ष बना रहना चाहिए किंतु मुसलमानों को धर्मनिरपेक्षता से दूर ही रहना चाहिए।’
इन सब तथ्यों पर कांग्रेस ने तो कभी आंखें नहीं खोलीं , पर उसके समर्थक तथाकथित सेकुलरिस्टों और धर्मनिरपेक्ष तोतों को तो अभी इन तथ्यों को पढ़ व समझ लेना चाहिए कि जिस इस्लाम के बारे में उसके ही विद्वानों के ऐसे मत हैं वह देश के लिए क्या कर रहा है और क्या कर सकता है ? कांग्रेस के पापों का एक ही दंड है कि देश की जागरूक जनता इस पार्टी को अब सत्ता के निकट न फटकने दे ,अन्यथा इतिहास कभी देश के लोगों को भी माफ नहीं करेगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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