आस्था, हर्षोल्लास एवं उमंग का पर्व:मकर संक्रांति

प्रेम सिंघानिया

भारत में समय-समय पर हर पर्व को श्रद्धा, आस्था, हर्षोल्लास एवं उमंग के साथ मनाया जाता है। पर्व एवं त्योहार प्रत्येक देश की संस्कृति तथा सभ्यता को उजागर करते हैं। यहां पर्व, त्योहार और उत्सव पृथक-पृथक प्रदेशों में विविध ढंग से मनाए जाते हैं। मकर-संक्रांति पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। इस संबंध में संत तुलसीदास जी ने लिखा है-माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई। ऐसा कहा जाता है कि गंगा, युमना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर अतएव, यहां मकर-संक्रांति के दिन स्नान करना अनंत पुण्यों को एक साथ प्राप्त करना माना जाता है। मकर-संक्रांति पर्व प्राय: प्रतिवर्ष 14 जनवरी को पड़ता है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। जिस राशि में सूर्य की रक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है। मकर-संक्रांति पर्व में स्नान-दान का विशेष महत्व है। हमारे धर्मग्रंथों में स्नान को पुण्यजनक के साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक माना गया है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, गरमी का मौसम आरंभ हो जाता है, इसीलिए उस समय स्नान करना सुखदायी लगता है। उत्तर भारत में गंगा-युमना के किनारे (तट पर) बसे गांवों-नगरों में मेलों का आयोजन होता है। भारत में सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में मकर-संक्रांति पर्व पर गंगा सागर में लगता है।
गंगा सागर के मेले के पीछे पौराणिक कथा है। मकर-संक्रांति को गंगाजी स्वर्ग से उतरकर भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई। गंगाजी के पावन जल से ही राजा सागर के साठ हजार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ। इसी घटना की स्मृति में गंगा सागर में मेले का आयोजन होता है, इसके अतिरिक्त दक्षिण बिहार के मदार-क्षेत्र में भी एक मेला लगता है। मकर संक्रांति पर्व पर इलाहाबाद (प्रयाग) के संगम स्थल पर प्रतिवर्ष एक मास तक माघ मेला लगता है। जहां भक्तगण कल्पवास भी करते हैं तथा बारह वर्ष में कुंभ का मेला लगता है। यह भी लगभग एक मास तक रहता है। इसी प्रकार छह वर्षों में अर्धकुंभ का मेला लगता है।
महाराष्ट्र और गुजरात में मकर संक्रांति पर्व पर अनेक खेल व पतंगबाजी प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है। पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी के नाम से मकर-संक्रांति पर्व मनाया जाता है। सिंधी समाज भी मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व इसे लाल लोही के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर-संक्रांति को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन तिल, चावल व दाल की खिचड़ी बनाई जाती है। पंचांग का नया वर्ष पोंगल से शुरू होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर-संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है और रात्रि की अवधि कम होती है। स्पष्ट है कि सूर्य ऊर्जा का अजस्र स्रोत है। इसके अधिक देर चमकने से प्राणी जगत में चेतना और उसकी कार्य शक्ति में वृद्धि हो जाती है।

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