मेरी प्यारी दादी मां
ओ मेरी दादी न्यारी प्यारी,
बेड़ा पार लगा जा
आजा कि म्हारा मन बहलाजा हो….
ओ मेरी दादी…………….
1. तेरे बिन सूनी खिजाएं,
बदली बदली हैं फिजाएं।
पग पग मैं याद सतावै,
ना आवै हमें रूलावै।।
बिन तेरे घर है सूना,
खाली है एक एक कोना।
आजा तू तेज गति से,
इंतजार कर रहा चित्त मेरा
लगता है दूर किनारा किनारा
सहारा आपका जुडज़ा हो…..
2.बहती है अश्रुधारा,
जैसे पानी का नारा (नाला)
दिन रात मैं देखूं सपने,
नेत्रों में तुझको अपने।।
मंझधार में डोलै नैया,
अब आजा निकाल दे मैया।
नयनों में नींद नही है,
पता चैन का भी नही है।।
लगता है दूर किनारा-2
3. बचपन की याद सतावै,
वे दिन भी याद आवै।
जब तेरा साथ मिला था,
तूने पोषा और पाला था।।
अब तेरे बिन है अधूरे,
अरमां भी नही हैं पूरे।
अरमानों को सजाने वाली,
तूने शाला कहां बसाली।।
लगता है दूर किनारा-2
सहारा आपका बनजा हो……..
4. तेरी मूरत जब-2 देखूं,
तेरी याद में बस मैं भीगूं।
तू नाम पै बस चली थी,
तेरा नाम था सत्यवती।।
इस बेला की तू श्रेष्ठा,
श्रेष्ठों की तू ही मां थी।
तेरे संस्कारों से,
‘प्रेरणा’ हमें मिली थी।
लगता है दूर किनारा – 2
सहारा आपका सजजा हो….
श्रुति आर्या
यह रचना श्रुति आर्या द्वारा अपनी दादी मां और ‘उगता भारत’ की प्रेरणास्रोत पूज्या माता श्रीमती सत्यवती आर्या जी की स्मृति में अपने मौलिक विचारों से लिखी गयी। -संपादक

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