हिंदू राष्ट्र स्वपन द्रष्टा बंदा वीर बैरागी

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अध्याय 21

बैरागी के जीवन का सिंहावलोकन

जब भारत देश को मिटाने के अकल्पनीय , अकथनीय और अमानवीय प्रयास हो रहे थे और जब विदेशी शक्तियां हमें प्रत्येक प्रकार से मसलकर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए यहां पर सक्रिय थीं , तब यहां पर बंदा बैरागी जैसे व्यक्तित्व का आविर्भाव सचमुच बहुत महत्व का था । माना कि उनके निर्माण में गुरु गोविंद सिंह जी का विशेष योगदान रहा , परंतु यह भी सत्य है कि कोई भी महापुरुष उसी पात्र पर अंगुली टेकता है ,जो उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सभी संदर्भों और अर्थों में उपयुक्त जान पड़ता है । बंदा वीर बैरागी के भीतर पहले से वह प्रतिभा थी या कहिए कि पात्रता थी जो उस समय देश के लिए आवश्यक थी । यही कारण रहा कि उन पर जाकर ही गुरु गोविंद सिंह जी की दृष्टि पड़ी ।

चहुँओर अत्याचार थे , दुराचार , पापाचार थे ।

जब विदेशियों के छाए हुए सर्वत्र अनाचार थे ।।

तब देशहित को सोचकर जिसके उठे हाथ थे

भाग्यविधाता थे हमारे प्रभु स्वयं उनके साथ थे ।।

गुरु गोविंद सिंह जी उस समय भारत की और विशेष कर हिंदुओं की व्यवस्थित , सुसंस्कृत और राष्ट्रीय शक्ति का शानदार संघर्ष लड़ रहे थे । जिसे उन्होंने भारतीय अस्मिता को बचाने के लिए आरंभ किया था। वह उस समय भारत की इस गौरवमयी विरासत के स्वामी थे । इसी विरासत की ज्योति को उन्होंने अपने जीते जी बंदा वीर बैरागी के हाथों में सौंप दिया था । इसी पर डॉक्टर ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है : – ” विदेशी हमले के जवाब में मध्यकाल के हिंदुओं की व्यवस्थित सुसंस्कृत और राष्ट्रीय शक्ति का शानदार संघर्ष देश की सांस्कृतिक अस्मिता को बचाने का प्रेरणा स्त्रोत रहेगा । ”

हमारे ही देश में हमारे ही मध्य कुछ ऐसे लेखक व इतिहासकार भी हैं जो भारतीय अस्मिता के लिए लड़ने वाले इन शूरवीरों के महान कार्यों का तिरस्कार करते हुए उन्हें कुछ इस प्रकार स्थापित करते हैं कि जैसे उन्होंने भारत में हिंदू – मुस्लिम सांप्रदायिकता को प्रोत्साहित करने में सहयोग किया । उनका मानना है कि यदि भारत के ये शूरवीर ऐसा कार्य न करते तो भारत में कोई सांप्रदायिक समस्या ना होती । ऐसे तथाकथित विद्वानों से यह कौन पूछे कि यदि भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए ये शूरवीर ना होते तो इस्लाम कब का इस देश की महान संस्कृति का विनाश कर चुका होता ? हम यदि आज जीवित हैं तो अपने इन शूरवीरों के कारण ही जीवित हैं । वैसे निष्पक्ष लिखने वाले इतिहासकार या लेखक मुस्लिम समाज के भीतर भी हुए हैं । जिन्होंने सहर्ष यह स्वीकार किया है कि भारत में मुस्लिम सांप्रदायिकता के कारण बहुत अधिक रक्तपात हुआ । उन्होंने यह भी स्पष्ट स्वीकार किया है कि भारत में मुस्लिम सांप्रदायिकता के चलते मानवता का भारी अहित हुआ । शाहिद रहीम साहब का यह कथन इस संदर्भ में हमें ध्यान रखना ही चाहिए :- ” दरअसल हिंदुत्व को समाप्त करने की राजनीतिक कोशिश 1265 ईस्वी से आरंभ हो गई थी , जब शमसुद्दीन अल्तमस की बेटी रजिया सुल्तान तुर्क सेनानायक अल्तूनिया के महिला विरोध से तंग आकर एक सराय में जा छिपी थी और वहीं मर गई । अल्तमस के बेटा नासिरुद्दीन ने उसे भी मार दिया और 1265 में नासिर का सलाहकार गियासुद्दीन बलबन सिंहासन पर बैठ गया । 1287 तक उसने 22 वर्ष हुकूमत की , उसने घोषणा की थी कि खुदा की अनुपम देन बादशाहत के प्रति वह अपना धर्म समझते हुए कर्तव्य पालन करता है , जो अपना वैभव , ऐश्वर्य , प्रताप , सेना , कर्मचारी तथा राजकोष सहित तमाम संपत्ति वगैरह जो कुछ खुदा ने उसे दिया है , सब काफिरों , मुशरिकों और बुतपरस्तों के विनाश में लगा सके । मजहब – ए -इस्लाम के विरोधियों का समूलोच्छेदन कर सकें । अगर यह मुमकिन न हो तो खुदा और पैगंबर के शत्रुओं को अपमानित करें , यातनाएं दें , उनकी निजी आस्था और उनके स्वाभिमान का अंत करें और अपने राज्य की परिधि में उनकी सुख संपन्नता उनके मान तथा पदों का नामोनिशान तक न रहने दें ।”

अस्मिता स्वाभिमान की रक्षा नहीं संभव तनिक ।

जीना कठिन हिंदुत्व का थी उदासीनता प्रशासनिक।। शासन हुआ निर्मम और धर्मविहीन हाकिम हुए।

उस निराशा की निशा में बंदा ‘राम ‘ के वारिस हुए ।।

इस उद्धरण से स्पष्ट है कि सल्तनत काल या उसके पश्चात मुगल काल में मुगल बादशाहत या इस्लाम का विरोध करने का अर्थ क्या था ? उसके विरुद्ध आवाज उठाना तक समझ लो अपनी मौत को स्वयं निमंत्रण देने के समान था । इसके उपरांत भी यदि निडर और निर्भीक होकर अपना शौर्य प्रदर्शन करते हुए बंदा बैरागी और उनके साथी देश को हिंदू राज्य या हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए कार्य कर रहे थे तो यह उनका भारतीय समाज पर बहुत भारी ऋण था।

शाहिद रहीम साहब ही अपनी पुस्तक ” संस्कृति और संक्रमण ” के पृष्ठ 253 पर लिखते हैं :- ” 1290 से 1296 तक जलालुद्दीन खिलजी के हाथ में सत्ता रही । अपनी मृत्यु से पहले वह बीमार पड़ा । लोग मिलने जाते तो बुखार में भी उठ बैठता और कहता – लानत है हमारी बादशाहत पर थू है । हिंदू अब भी जिंदा हैं , वह सब आज भी मूर्ति पूजा कर रहे हैं , उनके खून की नदियां क्यों नहीं पाई जातीं ? ”

इस्लाम के प्रत्येक बादशाह की ऐसी ही विशेषता रही। प्रत्येक मुस्लिम बादशाह ने दिन – रात अपने ख़ुदा से यही इबादत की कि जब तक मेरी तलवार मेरे हाथों में है और मेरे हाथों में इतनी शक्ति है कि वह तलवार चला सकें तब तक मेरे हाथ और मेरी तलवार हिंदू विनाश में ही लगे रहें । ऐसी परिस्थितियों में हिंदुओं का रक्षक बनकर बंदा वीर बैरागी का उभरना किसी चमत्कार से कम नहीं था । अतः उसके योगदान को कम करके देखना या उसे किसी हिंदू सांप्रदायिकता जैसे अभिशाप से कलंकित कर देना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है । आत्मप्रवंचना का इससे अधिक कठोर और निम्न उदाहरण कोई हो नहीं सकता।

जिन लोगों ने हमारे महान शूरवीर क्रांतिकारी इतिहास नायकों को हिंदू सांप्रदायिकता जैसी मानसिकता से ग्रसित माना है या उन पर इस प्रकार के आरोप लगाए हैं , उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि भारत के मानवतावादी वैदिक हिंदू धर्म की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने वाले इस्लामिक लेखक और इतिहासकार भी रहे हैं ।अकबर को हिंदू धर्म ग्रंथों के विषय में जानकारी देने वाले जाकिर मोहम्मद सलीम कंबू ने एक स्थान पर लिखा है :- ” अहले हुनूद ( हिंदू ) की खुसूसियत है कि वह इबादत में अपने खुदा से दुश्मनों की तबाही नहीं मांगता । (वह कहता है सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया ) विश्वसनीय खुफिया मुखबिरों की इत्तिला है कि वह खुशहाली , दौलत , ऐशोइशरत के तालिब रहते हैं । ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है जो जन्नत की ख्वाहिश में दुनिया ठुकरा दें । वह नुकसान पहुंचाने वालों के लिए नुकसानदेह है । इंसानों से इंसान का इखलाक रखते हैं । मजहब की ऊंचाइयों का तकाजा यह है कि खुद सुपुर्दगी बतलाने वालों को आजाद करार दे दिया जाए । जैसा कि कभी पैगंबर – ए – आजम ने हजरत अनुसुफियान को आजाद किया था। ”

बंदा बैरागी और उसके साथियों ने दुष्ट , अत्याचारी , पापाचारी , हिंसाचारी और दुराचारी मुस्लिम शासकों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना आरंभ किया । उनके इस प्रकार जवाब देने में कोई दोष नहीं था । ऐसा करने से मुस्लिम अत्याचारियों को यह बोध तो कम से कम हुआ ही होगा कि अत्याचार क्या होते हैं ? और जब उन्हें सहना पड़ता है तो कितना कष्ट होता है ? बंदा वीर बैरागी के बारे में इतिहासकार खफी खान ने लिखा है कि :– ” यह (अर्थात बंदा और उसके साथी) पापी , कुत्ते , लूट ,मारकाट और बड़े- छोटे सभी परिवारों के बालकों को बंदी बना और उन्हें पृथ्वी पर पटक कर मारने और गर्भवती स्त्रियों को चीरने , मकानों में आग लगाने और निर्धन – धनी सभी का सर्वनाश करने में लग गए ।”

हिन्दू विनाश का संकल्प ले

जब इस्लाम की तलवारें चलीं ।

तब देश के उत्थान हेतु

हमारे पूर्वजों की हड्डियां गलीं ।।

उन हड्डियों के खाद से

फसलें लहलहाई थी यहां ।

ऐसे पवित्र उद्योग की बताओ

विश्व में और शाखा है कहां ?

ख़फ़ी खान ने जहां बंदा वीर बैरागी के विषय में ऐसा लिखा है , वहीं उसने अन्यत्र बंदा वीर बैरागी की प्रशंसा करते हुए कुछ इस प्रकार भी लिखा है :- ” मुसलमान सेनाएं बड़ी कठिनाई से काफिरों के आक्रमणों का सामना कर सकीं । धन , सामान , घोड़े , हाथी सब काफिरों के हाथ में चले गए और इस्लाम की सेना का एक भी योद्धा ऐसा न बचा जिसके पास पहने हुए कपड़े तथा अपने शरीर के अतिरिक्त कुछ भी बचा हो । ”

वास्तव में बंदा वीर बैरागी का इस प्रकार का आचरण उसे समकालीन इतिहास का सर्वोत्कृष्ट हीरा सिद्ध करता है । जिसने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अर्थात हिंदू राष्ट्र स्थापित करने के लिए शत्रु संहार को उस समय अपना व्यवसाय ही बना लिया था । जितनी तेजी से मुस्लिम शासक और उनके सैनिक भारत के धर्म और संस्कृति को मिटाने के प्रयासों में लगे थे , वास्तव में उनके उन प्रयासों का प्रतिशोध या प्रतिरोध भी उसी स्तर से किया जाना आवश्यक था । इसलिए बंदा वीर बैरागी के कृत्यों को हम वंदनीय मानते हैं ।

मैकालिफ़ ने बंदा वीर बैरागी के विषय में लिखा है :— ” बंदा और उसके साथियों को मृत्यु का लेशमात्र भी भय नहीं था । वह पहले प्राणदंड प्राप्त करने के लिए एक दूसरे से होड़ लगाते थे । यह घृणित कार्य कई सप्ताह तक चलता रहा । बंदा की बारी तीन मास पश्चात 19 जून 1716 को आई । जल्लाद ने उसके बालक पुत्र के टुकड़े-टुकड़े करके उसका मांस बंदा के मुंह में ठूंस दिया , किंतु बंदा लेशमात्र भी विचलित नहीं हुआ । मोहम्मद अमीन खान ने जब बंदा से पूछा कि तुम इतने सज्जन हो , फिर तुमने संसार के प्राणियों को दुखी करके अपने ऊपर यह आपत्ति मोल क्यों ले ली ? – तब बंदा ने बड़े धैर्य के साथ उत्तर दिया , जब संसार में कुछ मनुष्य सीमा से बाहर चले जाते हैं तो ईश्वर उन दुष्टों को दंडित कराने के लिए मुझ जैसे प्राणी को जन्म देता है।”

मां भारती के ऐसे महान सपूत को इतिहास के कूड़ेदान में फेंकना एक अक्षम्य अपराध है । हमारे अतीत के एक ऐसे गौरवमयी स्मारक को जीवंत बना कर रखना देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए आवश्यक है , जिसने इस देश की एकता , अखंडता , धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अनेकों यातनाएं सहीं । जब उसका प्राणान्त हुआ तो वह भी इतना करुणाजनक था कि उसका वर्णन करने से भी लेखनी कांपती है । परंतु इसके उपरांत भी उसने उन सारे कष्टों को सहर्ष झेला और केवल इसलिए झेला कि उसे मां भारती से असीम प्रेम था । वह इसके साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ को असह्य मानता था।

इतिहासकार ख़फ़ी खान ही लिखता है :– ” अब सब समझदार और तजुर्बेकार लोगों को यह साफ तौर से मालूम हो गया है कि कालक्रम के अनुसार राज्य कार्य में विचार शून्यता आ गई है और किसानों की रक्षा करने , देश की समृद्धि को बढ़ाने और पैदावार को आगे ले जाने के काम बंद हो गए हैं । लालच और दुर्व्यवहार से सारा देश बर्बाद हो गया है । कमबख्त अमीनों , आमिलों की लूट – खसोट से किसान पीसे जा रहे हैं । दरिद्र किसानों की औरतों के बच्चों की आहों का कर्ज़ जागीरदारों के सिर है । भगवान को भूले हुए सरकारी अफसरों की शक्ति जुल्मोसितम और नाइंसाफी इस दर्जे तक बढ़ गई है कि अब कोई इसके सौवें हिस्से का भी वर्णन करना चाहे तो उसकी बयान करने की ताकत विफल हो जाएगी । ( इरफान हबीब एग्रेरियन सिस्टम ऑफ मुगल इंडिया , ट्रस्ट 315 – 16 )। ”

ऐसे क्रूर अत्याचारों का प्रतिकार करना प्रत्येक देशभक्त का कार्य है ।अपने देश को इन अत्याचारों से बचाना महान कार्य होता है । बंदा वीर बैरागी यदि इन अत्याचारों का सामना कर रहा था और अत्याचार करने वालों का समूलोच्छेदन कर उन्हें यहां से बाहर फेंक देना चाहता था तो उसका यह कार्य उसकी महान देश भक्ति को प्रकट करने वाला था। जिसके कारण हमें अपने इस महान देशभक्त , क्रांतिकारी , इतिहास नायक को इतिहास में सम्मानित स्थान देना ही चाहिए। जिन इतिहासकारों ने इसके वास्तविक सम्मानपूर्ण स्थान को छीनने का प्रयास किया है , उन्होंने देश के साथ अपघात किया है । देखते हैं उनका यह अपघात कितनी देर तक चलता है ?

किसी शायर ने बड़ा सुंदर कहा है :–

मंजिल भी जिद्दी है , रास्ते भी जिद्दी हैं ।

देखते हैं कल क्या होगा हौंसले भी जिद्दी हैं ।।

( मेरी यह पुस्तक दिल्ली के सुप्रसिद्ध प्रकाशन प्रभात प्रकाशन के द्वारा शीघ्र प्रकाशित होकर आ रही है । पुस्तक प्राप्त करने के इच्छुक मित्र 9891711136 मोबाइल नंबर पर संपर्क कर सकते हैं )

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

9 सितम्बर 2019

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