मोदी लोगों की पहली पसंद बने

राकेश कुमार आर्य
ए.बी.पी. न्यूज नीलसन के सर्वे के अनुसार देश में लोकसभा चुनाव यदि आज की तारीख में होते हैं तो यूपीए का सूपड़ा साफ होना तय है। जबकि एन.डी.ए. सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभर रहा है। यू.पी.ए. की 136 सीटों के मुकाबले एन.डी.ए. को 206 सीटें मिल रही हैं, हालांकि एन.डी.ए. फिर भी बहुमत के आंकड़े से पीछे है। वामदलों को मिलने वाली 34 सीटें तब उन परिस्थितियों में बड़ी महत्वपूर्ण हो जाएंगी, जिनका एन.डी.ए. के साथ जाना तो असंभव है ही यू.पी.ए. के प्रति भी अभी उनका कोई नरम रवैया नही दीख रहा है। हां, अन्य दल 167 सीटें जीतकर ‘किंगमेकर’ की भूमिका में अवश्य आ जाएंगेUntitled हालांकि ये 167 सीटें जीतने वाले दल भी माया-मुलायम जैसे नेताओं के छत्तीस के आंकड़े से भरे होंगे इसलिए इनका सबका एक साथ एक ओर जाना या बैठना भी बड़ा मुश्किल होगा। इनमें अंर्तद्वंद्व है और वो अंतर्द्वन्द किसी को साथ बैठने नही देगा। तब क्या हो सकता है? तब कांग्रेस मोदी की खीर को बिखेरने के लिए 167 के साथ अपनी गोटी बिठाने की जुगत भेड़ सकती है। उसमें भी दो विकल्प खुले रह सकते हैं, एक तो ये कि कांग्रेस अपने किसी मुस्लिम सदस्य को पीएम के लिए आगे करे और शेष दल उस पर अपनी सहमति दें, और दूसरा ये कि ये 167 की संख्या वाले दल कोई नया ‘देवेगौड़ा’ ढूंढ़ लें और कांग्रेस का यूपीए उसे बाहर से समर्थन दे।
कांग्रेस ने अपने भ्रष्टाचार के ‘महापापों’ को छिपाने के लिए अगले चुनाव को अभी से साम्प्रदायिक रूप देना आरंभ कर दिया है। जिस पार्टी के पास दिग्गी जैसे नेता हों उससे छोटी सोच पर उतर आने की उम्मीद ही की जानी चाहिए। वैसे भी कांग्रेस का ये इतिहास रहा है कि वो अपने पापों को छुपाने के लिए चुनाव में कोई न कोई ऐसा हथकंडा अपनाती है जिससे देश लहूलुहान हो उठता है और देर तक अपने घावों को सहलाता है। मुस्लिम साम्प्रदायिकता को कांग्रेस ने सदा हवा दी है और देश को नये-नये घाव दिये हैं। अगले चुनाव में इस पार्टी का नौसिखिया नेतृत्व कुछ ऐसे गुल खिला सकता है जो कि सर्वथा अप्रत्याशित हों। फिर भी देश के जनमानस को टटोलते हुए एवीपी न्यूज नीलसन ने जो सर्वे किया है उसमें मोदी 36 प्रतिशत लोगों की पसंद हैं जबकि राहुल को 13 प्रतिशत और मनमोहन को 12 प्रतिशत मायावती को 9 प्रतिशत सोनिया गांधी को 8 प्रतिशत और आडवाणी को 6 प्रतिशत, लोगों ने पीएम पद के लिए पसंद किया है। मनमोहन के लिए यह आंकड़ा भी संतोषजनक ही है, क्योंकि जिस दिन वह पीएम बने थे उस दिन तो वह केवल सोनियां गांधी की ही पसंद थे, एक महिला की पसंद से बढ़कर सत्ता से बेदखल होने के अंतिम वर्ष में बारह प्रतिशत लोग उन्हें पसंद कर रहे हैं, यह उनकी उपलब्धि ही है। एक जनाधार विहीन नेता को इस बात से खुश होना ही चाहिए विशेषत: तब जबकि सारे कांग्रेसी उन्हें डूबने के लिए अकेला छोड़कर राहुल गांधी की छतरी नीचे इकट्ठा हो रहे हों और राहुल भी मात्र एक प्रतिशत अधिक मत लेकर कुल 13 प्रतिशत लोगों की ही पसंद बन रहे हों। यदि राहुल गांधी इस समय मोदी का मुकाबला करने की स्थिति में होते तो कर्नाटक के चुनावों से उत्साहित कांग्रेस केन्द्र में सत्ता पलट कर सकती थी और राहुल गांधी को अगला पीएम बना देती, लेकिन पार्टी को जमीनी हकीकत की पता है इसलिए उसने ऐसा कोई कदम नही उठाया है और अब अगला चुनाव हारने के लिए वह मैदान में उतरना चाहती है, जिसके लिए मनमोहन सिंह को बलि के बकरे की तरह पालना उसके लिए आवश्यक है। इस बकरे को भी पता है कि अब की बार बलि देनी ही पड़ेगी इसलिए दुम दबाकर घिघियाते हुए कई बार सोनिया से टक्कर लेने की कोशिश करता है पर फिर पीछे हट जाता है।अब वक्त है भाजपा के सुधरने का। वह 206 से 273 तक बढ़ सकती है, बस दो बातें करनी होंगी-एक तो सारी पार्टी ईमानदारी से नरेन्द्र मोदी के पीछे आ जाएं और दूसरे, मोदी को खुलकर खेलने का मौका दिया जाए। ये दोनों स्थितियां पार्टी के हित में ही नही अपितु देश हित में भी होंगी। आज देश का 36प्रतिशत जनमानस यदि नरेन्द्र मोदी को पीएम बनाना चाहता है तो इसका दो गुणा जनमानस पार्टी को नरेन्द्र मोदी के पीछे देखना चाहता है और मोदी पर लोग भरोसा कर रहे हैं कि वो जो कहेंगे उसे कर दिखाएंगे, जबकि आडवाणी जैसे नेताओं के लिए जनता में ऐसी राय नही है।
उन पर लोगों को भरोसा नही है और राजनीति में भरोसा बहुत बड़ी चीज होती है। पार्टी के लिए यह दुख का विषय है कि इसके पास मोदी के रूप में जनता में सबसे अधिक भरोसेमंद नेता होने के बावजूद पार्टी पूरे भरोसे के साथ उसके पीछे नही है। पार्टी के भरोसे को आडवाणी जैसे कई नेताओं ने अपनी अपनी दुकानों को लगाकर तोड़ने का कार्य किया है। यद्यपि यह एक कटु सत्य है कि जनता का कोई व्यक्ति आडवाणी एण्ड कं. से कोई सौदा लेने नही जा रहा है। परंतु फिर भी इस स्थिति का घातक प्रभाव जनमानस पर पड़ रहा है। पर जितना सन्नाटा आडवाणी की दुकान पर है उतना ही राहुल गांधी की दुकान पर भी है। हां नये युवा को देखने वालों की भीड़ वहां अवश्य है। राहुल भी कांग्रेस के डूबते जहाज को बचा नही पाएंगे, ऐसा माना जा रहा है।

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