मैं अपने जीवन का, बलिदान देना चाहता हूं।
मरणोपरांत अपनी देह, दान देना चाहता हूं।
जीवन भर जिया हूं अपने लिए,
अब जीना चाहता हूं सबके लिए।
परोपकार से जीवन महक उठेगा,
खुशियों से जीवन चहक उठेगा।
सभी देशवासियों को ये ज्ञान देना चाहता हूं।
मैं अपने जीवन का बलिदान देना चाहता हूँ।
जीवन में मैंने जो, परोपकार किया है,
ईश्वर ने मुझे उसका फल भी दिया है।
शेष जीवन औरों को अर्पित करके,
सबके जीवन को खुशियों से भरके,
मर कर भी शरीर को सम्मान देना चाहता हूं।
मैं अपने जीवन का बलिदान देना चाहता हूं।
अपनों ने जिन को, दुतकार दिया है,
बुढ़ापे में जिनको, बिसार दिया है।
ऐसे वृद्घजनों की सेवा करके,
तन, मन धन सब अर्पण करके।
सहायक बन, अपना योगदान देना चाहता हूं।
मैं अपने जीवन का बलिदान देना चाहता हूं।
देश व समाज का उत्थान हो,
बुजुर्गों का हमेशा सम्मान हो।
सबका दामन फूलों से भरके,
संस्कारों को हृदय में धारण करके,
मानव मूल्यों की रक्षा में, प्राण देना चाहता हूं।
मैं अपने जीवन का बलिदान देना चाहता हूं।
नैतिकता का अलख जगा कर,
दया व करूणा के द्वीप जलाकर,
मन से अंधियारा दूर भगाकर,
देशभक्ति का पाठ पढ़ा कर।
सरहद पर लड़ने वालों को रक्तदान देना चाहता हूं।
मैं अपने जीवन का बलिदान देना चाहता हूं।

राजेन्द्र तेवतिया

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