हर तरफ मौजूद हैं

चूहाछाप आदमी

– डॉ. दीपक आचार्य

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संसार खूब सारी विचित्रताओं का ही दूसरा नाम है। कहीं यह रंगीन दिखता है, कहीं विषादों और दुःखों का सागर। कहीं अजायबघर नज़र आता है तो कहीं कुछ और। अनेकताओं का पर्याय यह संसार अपने भीतर जीवन के सारे रंगों और रसों को समाये हुए है जिसकी थाह न कोई पा सका है, न संभव ही है।

इसी संसार में सामाजिक प्राणी कहे जाने वाले इंसानों की भी ढेरों प्रजातियाँ विद्यमान हैं जिनमें कई नई-पुरानी प्रजातियों का घालमेल हमेशा खच्चरी कल्चर को धन्य करता रहा है। सभी किस्मों के इंसानों में जात-जात के पशु-पक्षियों और उभयचरों के गुणधर्म एवं लक्षण स्वाभाविक रूप से देखे जा सकते हैं। कुछ तो जन्मजात और मौलिक हैं जबकि दूसरे सारे गुणधर्म आवश्यकताओं के अनुसार बदलते रहते हैं या  संगी-साथियों से आयात किए हुए हैं।

इन सभी किस्मों के बीच आदमियों की एक जोरदार किस्म आजकल हर तरफ देखी जा रही है।  और यह है चूहाछाप। हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में हर तरफ ऎसे लोग दिखाई देने लगे हैं जिनका स्वभाव चूहों से काफी कुछ मिलता-जुलता है। ये लोग किसी भी दुकान-दफ्तर और गलियारों-बाड़ों से लेकर राजपथों और जनपथों की शोभा बढ़ाते हुए देखे जा सकते हैं।

इनके तकरीबन तमाम लक्षण चूहों की ही तरह होते हैं जिन्हें देख कर यह माना जा सकता है कि पूर्वजन्म में ये चूहे थे अथवा भगवान ने गलती से इन्हें चूहों की बजाय मनुष्य बना डाला है। दुनिया जहान की सारी खबरें रखना और जमाने भर में हो रहे कामों पर निगाह रखना इन चूहों का सबसे बड़ा धर्म और ध्येय हो गया है।

एक बार किसी बाहरी प्रभाव या गोरखधंधों से कहीं किसी प्रासाद में घुस जाएंगे तो मरने तक बाहर निकलने का नाम नहीं लेंगे। अपने सारे दूसरे काम-धंधों को छोड़कर दिन-रात वहीं चक्कर काटते रहकर अपने कामों को अंजाम देते रहते हैं। इन चूहों के बारे में कोई नहीं बता सकता कि कब कहाँ धमक जाएंगे और अपनी पैनी निगाहों से क्या कुछ नहीं पढ़ लेेंगे।

इन्हें हर कुर्सी-टेबल और हर गद्दी पर क्या हो रहा है, इसके बारे में हमेशा ताजातरीन रहने की भयानक आदत पड़ी होती है जिसके मारे ये कागजों और चर्चाओं को सूँघते हुए सब कुछ भाँप कर अपनी दिगामी झोली में डाटा अपलोड़ करते रहते हैं।

चूहिया मनोवृत्ति के लोग जिस किसी दुकान-दफ्तर या गलियारों में जाएंगे वहाँ उन सभी कागजों और कोनों को तलाशने लगेंगे जिनसे उनका कोई संबंध भले न हो। और मौका मिलते ही नज़रें चुराकर ये उन कागजों को चुरा कर अपने साथ ले भी जाते हैं।

इस किस्म के चूहों में कई तो इतने बेशरम भी हुआ करते हैं कि अपनी आँखों के सामने ही कागजों को खंगालने में जुट जाते हैं और हर कागज की मौजूदगी पर जिज्ञासाओं का शमन भी करना चाहते हैं। इन लोगों को इससे कोई मतलब नहीं कि कागज कितने जरूरी या कांफिडेंशियल हैं। खासकर स्कूप तलाशने और स्टींग ऑपरेशन करने वाले चूहों के लिए उस हर कागज का मूल्य हुआ करता है जो औरों की नज़रों से अब तक बचा हुआ है। इनके लिए ये कागज उनकी नौकरी पूरी करने का परवाना ही हुआ करते हैं। हर तरफ लोग इन चूहाछापों से परेशान हैं। इनके भय के मारे अब लोग पारदर्शिता भुलाकर कुछ न कुछ छिपाने को भी मजबूर हो गए हैं।

चूहों की तर्ज पर हर कहीं घुसपैठ कर भीतर की टोह लेने में माहिर इन लोगों की तादाद अब बढ़ चली है। हमारे आस-पास भी ऎसे खूब लोग आते-जाते रहते हैं जो उन सभी कामों और कागजों के बारे में जानना, समझना और चर्चा करना चाहते हैं जिनसे उनका कोई संबंध नहीं होता लेकिन आदत से मजबूर हैं। जो इन्हें यह सब करने देता है, उसके प्रति वे वफादार होते हैं और अपना सच्चा साथी मानते हैं, ना करने दे तो फिर ये चूहे अपने पैने दाँतों का कमाल दिखाना भी शुरू कर दिया करते हैं।

सावधान रहें इन चूहाछाप आदमियों से। कुछ वर्ष से इतना प्रजनन और प्रचलन नॉनस्टॉप चल रहा है। इन चूहों को संभालना अब भगवान गणेशजी के बस का नहीं रहा, इनका नियंत्रण अब गोबर गणेशों के हाथ में आ चुका है। मुफतिया मोदकों ने इनकी सारी आदतें बिगाड़ कर रख दी हैं।

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