आयातित परंपराओं के आधार पर लिखा गया भारत का इतिहास

मदन गड़रिया धन्ना गूजर आगे बढ़े वीर सुलखान,
रूपन बारी खुनखुन तेली इनके आगे बचे न प्रान।
लला तमोली धनुवां तेली रन में कबहुं न मानी हार,
भगे सिपाही गढ़ माडौ के अपनी छोड़-छोड़ तरवार।

अगर आपने ये चार लाइन पढ़ ली हैं तो शायद अंदाजा भी हो गया होगा कि ये विख्यात लोककाव्य “आल्हा-उदल” की हैं | ये किस दौर की थी ये अंदाजा करना भी मुश्किल नहीं है | लोक काव्य में उस दौर के जिन राजाओं का जिक्र आता है उसमें से एक पृथ्वीराज चौहान भी हैं | दिल्ली पर इस्लामिक आक्रमणों के शुरू होने के दौर के इस लोक काव्य की पंक्तियाँ आश्चर्यजनक हैं | नहीं अतिशयोक्ति अलंकार के कारण नहीं, इसमें मौजूद नामों के कारण |

ये युद्ध का जिक्र करते करते जिन योद्धाओं की बात करती है उनके नाम उनका दूसरा पेशा भी बता रहे हैं | गरड़िया, बारी, तेली, तमोली ! आयातित मान्यताएं तो ये स्थापित करने में जुटी होती हैं कि क्षत्रिय के अलावा बाकी सब को हथियार रखने-चलाने नहीं दिया जाता था | वो युद्ध में लड़ भी रहे हैं और उन्हें प्रबल योद्धा भी बताया जा रहा है ? इतिहास तो राजाओं की कहानी कहता है, ये राजा भी नहीं लग रहे आम लोगों के नाम क्यों हैं यहाँ ?

कहीं और से आई आयातित परम्पराओं की ही तरह भारत का इतिहास क्या सिर्फ राजाओं का इतिहास नहीं होता था ? क्या जिस ज़ात के होने की बात बार बार हिन्दुओं पर थोपी जाती है, उसमें ज के नीचे लगे नुक्ते के कारण उसका कहीं बाहर का रिवाज़ होने पर भी सोचना चाहिए ? आल्हा-उदल बुंदेलखंड के माने जाते हैं, लेकिन ये जाने माने लोक-काव्य तो आज उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश के कई इलाकों में सुना जाता है | जिसे बुंदेलखंड कहते हैं वो सीमाएं तो बदल चुकी |

फिर क्या वजह होती है कि किसी ने इन्हें किताबों की तरह छापा नहीं ? लिखा हुआ कहीं लोगों को दिखने ना लगे, लोग पढ़ कर सवाल ना करने लगें, ये वजह थी क्या ?
सुलह करवाना एक पुराना पेशा है | भारत में भी होता है, मुंबई के इलाकों में इसे मांडवाली नाम से जाना जाता है | मारिओ पूजो कि गॉडफादर में जब माइकल सोलोजो को मारने जा रहा होता है तो सोलोजो के गुंडे माइकल के बदले किसी और आदमी को माइकल के घर बिठा के जाते हैं | गवाही, बीच बचाव, सुलह इत्यादि के लिए तमिलनाडु में एक जाति होती है “थेवर”, इनका काम भी कुछ ऐसा ही था | आज भी किसी भी स्थानीय मामले में “थेवर” लोगों कि गवाही, अंतिम और सर्वमान्य समझी जाती है | थेवर दरअसल तीन समुदायों से मिलकर बना है | अगमुद्यार, कल्लार और मारावार समुदायों को मिलाकर थेवर होते हैं | लोककथाएं कहती हैं कि इनसे ही चेरा, चोल और पंड्या शासकों के वंश चले थे | इन्हें मुक्कुलाथोर भी कहा जाता है जिसका मतलब होता है तीन परिवारों का समूह |

शिवगंगई और पुद्दुकोटइ के इलाकों में ज्यादातर जमींदार अभी भी थेवर ही हैं | तमिलनाडु में ये पिछड़ी जातियों में रखे गए हैं | परंपरागत रूप से ये लोग तीन युद्ध कलाएं इस्तेमाल करते हैं | आदि मुरई, चिन्ना मुरई और वर्ण अति के नाम से जाने जाने वाली ये युद्ध कलाएं दक्षिण भारत (केरल) की प्रसिद्ध युद्ध कला कलारीपयट्टू से थोड़ी अलग होती है |

अब अगर आप अपने इतिहास की समझ से ये सोच रहे हैं कि पिछड़ी जातियों के लोगों को तो हथियार चलाना सिखाया नहीं जाता था ! हमारे-आपके पढ़े इतिहास के हिसाब से तो शूद्रों की गवाही मान्य ही नहीं होनी चाहिए थी ना ? समाज शास्त्र के हिसाब से भी शूद्रों को जमींदार नहीं होना चाहिए | तो इसके लिए आपको 18वीं सदी के पुली थेवर का नाम याद करना होगा | उनका जीवन काल 1715 – 1768 के बीच का था | उन्होंने फिरंगी व्यापारियों के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी | विदेशी आक्रमणकारियों के विरोध का नतीजा थेवर समुदाय को चुकाना पड़ा |

बाकी जातिवाद तो ब्राह्मणों की सदियों पुरानी परंपरा है ना ? पिछले दो सौ सालों में तो जितने भी दलित बनाये गए हैं उन सबके लिए ब्राह्मणवाद ही जिम्मेदार होगा ! ना तो depressed classes कुछ होता है, ना ही भारत में कभी कोई denotified caste नाम का कुछ होता है |

पुरानी हिंदी फ़िल्में अगर आपने देखी होंगी तो उनमें अक्सर एक स्मगलर होता था । हीरो या हीरोइन उसके जाल में फंसे होते थे और वो उन्हें अपना कोई “माल” लाने भेजता था । ऐसे में वो कोई आधा फटा नोट या कोई कोड बताता था जिसके जरिये “माल” लाने वाले को पहचानना होता था । किसी भी चीज़ को आप पहचानते कैसे हैं ? उसके लक्षणों से पहचानते हैं । जैसे अगर मुझसे कभी नहीं मिले और पहली बार मुलाकात हो तो आप भीड़ में देखकर अंदाजा लगाएंगे कि दुबला पतला सा, करीब पांच फुट नौ इंच लम्बा, सांवला, उड़ते हुए बालों वाला कोई आदमी ही आनंद होगा ।

Religion का मामला भी ऐसा ही है । उसे भी लक्षणों से पहचानते हैं । Religion के लक्षण का ABC होता है, Assure, Belief, Convert ! Assure का मतलब होता है भरोसा दिलाना, religion ये भरोसा दिलाता है कि एक उसी का अनुगमन करने से आप उच्चतम आदर्शों को पा सकेंगे ।

Assure मुक्ति का वादा है ।

Belief का मतलब है विश्वास या श्रद्धा कहिये, यहाँ ये भरोसा दिलाया जाता है की एक वही religion सच्चा है, बाकि सब झूठे हैं ! एक पक्के पक्के मत में विश्वास रखना Believe करना होगा ।

Convert का मतलब तो आप जानते ही हैं । अज्ञानियों को अपने religion में लाना उन्हें convert करना है । इन तीनों लक्षणों के आधार पर देखेंगे तो हिन्दुओं का धर्म खरा नहीं उतरता । हिन्दुओं का धर्म मानना मुक्ति का वादा नहीं है, धार्मिक व्यक्ति की मुक्ति भी उसके कर्मों पर निर्भर है, सिर्फ धर्म से काम नहीं चलेगा, कर्म भी सहयोगी होने चाहिए । हम एक पक्के मत में भी विश्वास नहीं रखते हैं (हमारे पास द्वैत भी है, अद्वैत भी है, इसके अलावा द्वैताद्वैत, विशिष्टाद्वैत जैसे और भी मत हैं) । धर्म परिवर्तन कर के हिन्दुओं में शामिल होने के लिए भी हम लोग कोई अभियान नहीं चलाते, जिसे आना हो वो अपनी स्वेछा से आ सकता है, लोभ या भय के जरिये हम लोग लोगों को परिवर्तित नहीं करते ।

इसलिए जब धर्म का मतलब लोग religion कहते हैं तो हम कहते हैं ऐसा नहीं है । religion के लक्षण कहीं से भी धर्म पर लागू नहीं होते । दोनों दो अलग अलग चीज़ें हैं ।

मगर जब Religion के ABC पर आप गौर करेंगे तो आप को एक अनोखी सी चीज़ दिखाई देगी  ।

यह एक ऐसा Religion है जो की सारे लक्षण तो Religion वाले दिखाता है लेकिन खुद को religion ही नहीं मानता ! विश्व भर में इस religion के कई अनुयायी भी हैं, इनकी अपनी आंतरिक जाति व्यवस्था भी है । (Assure) वो खुद को शोषितों की “मुक्ति का मार्ग” घोषित करता है ! (Believe) वो एक ख़ास “विचारधारा” में यकीन रखता है । (Convert) वो सभी को अन्य झूठे religions को छोड़कर अपनी शरण में लाने में भी लगा रहता है ! कॉलेज और विश्वविद्यालय इसके कन्वर्शन के अड्डे हैं । साहित्य और कला के मठ इनके पूजा स्थल जैसे हैं ।

इन लक्षणों को देखें तो Communism एक शुद्ध Religion है (धर्म नहीं)। इसे Religion ना मानने के कोई कारण, कोई लक्षण कभी किसी ने देखे हैं क्या ?
✍🏻आनन्द कुमार

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