हिंदू अपने अस्तित्व के प्रति स्वयं भी लापरवाह है

 

यदि इतिहास के संदर्भ से देखा जाए तो हिंदू अपने अस्तित्व के लिए आज से नहीं अपितु सदियों से संघर्ष कर रहा है। यद्यपि आज का धर्मनिरपेक्ष हिंदू अपने अस्तित्व के प्रति पूर्णतया असावधान है।
जब इस्लाम ने भारत में प्रवेश किया तो वह हिंदू विनाश के लिए ही भारत आया था । यह एक अच्छी बात रही कि भारत के तत्कालीन राजनीतिक , धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व ने इस बात को गंभीरता से समझा और देश की रक्षा करते हुए संस्कृति रक्षा में भी हमारे धर्मरक्षक और संस्कृतिरक्षक पूर्वजों ने बहुत अधिक सीमा तक सफलता प्राप्त की।


भारत के लोगों ने जिस राष्ट्र की अवधारणा की थी उसके अंतर्गत संपूर्ण भूमंडल एक राष्ट्र था । उस राष्ट्र में जहां-जहां आतंकवादी या दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले अत्याचारी लोग पैदा होते थे, हमारे आर्य पूर्वज उनके विनाश के लिए सामूहिक शक्ति का प्रयोग करते थे। आर्यों का यह संस्कार संपूर्ण भूमंडल पर शांति स्थापित करने के लिए था। ऐसे में जब भारतवर्ष की ओर इस्लाम और उसके आक्रमणकारी बढ़े तो यहां भी राष्ट्र रक्षा को हमारे आर्य पूर्वजों ने या राजाओं ने अपना सबसे प्रथम धर्म घोषित किया।
संसार में जिस संप्रदाय या पंथ के लिए अपना कोई देश नहीं रहा है, उनका अस्तित्व या तो मिट गया या आज मिटने के कगार पर है। इस प्रकार धर्म की रक्षा के लिए स्वधर्म को स्वीकार करने वाले लोगों का एक देश राष्ट्र के रूप में अवश्य होना चाहिए। भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने यदि भारत में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ‘खिचड़ी धर्म’ को अपनी स्वीकृति प्रदान की है तो समझो कि यह हिंदू विरोध की राजनीति है जो हिन्दू के विनाश के लिए काम कर रही है। जो हिंदू धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के झांसे में आकर इस ‘खिचड़ी धर्म’ को अपनाने में ही भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा होता हुआ देख रहा है वह आत्महत्या की ओर बढ़ रहा है।
किसी भी देश में राष्ट्र की अवधारणा को जीवित रखने के लिए अपने राष्ट्रधर्म के प्रति समर्पित होना बहुत आवश्यक है। इस्लाम ने मजहब के नाम पर ही संसार में अनेकों देश बना डाले हैं और यही स्थिति ईसाई धर्म वालों की है। यद्यपि इस्लाम के सांप्रदायिक राष्ट्र राज्य का चरित्र भारत के धार्मिक राष्ट्र से बहुत ही निम्नतम श्रेणी का है। धार्मिक राष्ट्र राज्य में जहां सब के विकास में अपना विकास समझा जाता है, वहीं सांप्रदायिक राष्ट्र राज्य में किसी एक संप्रदाय का वर्चस्व होता है जो दूसरे संप्रदायों का अस्तित्व मिटाने का काम करता है। जैसा कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान , बांग्लादेश आदि में हिंदुओं या सिखों के साथ हुआ है।
इस समय सारे भूमंडल पर लगभग 8 अरब लोग रहते हैं । जिनमें से लगभग ढाई अरब ईसाई हैं और लगभग इतने ही मुसलमान हैं। जबकि लगभग सवा अरब बौद्ध हैं। विश्व में ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और बौद्ध राष्ट्र अस्तित्व में हैं। लगभग एक अरब हिन्दू भी विश्व में हैं। इस सब के उपरांत भी ईसाई और मुस्लिम लोग ही सारे संसार में उपद्रव और उत्पात मचाकर अपने मजहब के प्रचार व प्रसार में आज भी लगे हुए हैं। ये दोनों मजहब ही विश्व राजनीति को गहराई से प्रभावित करते हैं और अपने निर्णय को साम, दाम, दंड, भेद – किसी भी प्रकार से लागू करने पर आमादा रहते हैं। भारत के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल वैश्विक राजनीति में ईसाई और मुस्लिमों के बढ़ते हस्तक्षेप को यह सोचकर स्वीकार कर लेते हैं कि ये संसार में अधिक हैं, इसलिए इनकी राजनीति और राजनीतिक निर्णयों को हमें स्वीकार करना पड़ेगा। यह बहुत ही उपहासास्पद स्थिति है कि यह जानते हुए भी कि संसार में या समाज में जिसका संख्या बल अधिक होता है संसार या समाज पर वही शासन करता है या वही अपने नियमों और निर्णयों को लोगों पर लागू करने की स्थिति में आ जाता है। भारत के ये धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल हिंदू के संख्या बल को बढ़ाने की ओर ध्यान न देकर भारत में भी ईसाई और मुस्लिमों की संख्या को बढ़ाने को ही अपनी राजनीति में प्राथमिकता देते हैं। इसका अभिप्राय है कि ये हिंदू के अस्तित्व को मिटाने का या तो मन बना चुके हैं या समझो कि ठेका ले चुके हैं।
विश्व में ईसाईयत और इस्लाम दोनों मजहबों की सांप्रदायिक नीतियों के चलते कई मजहब अपना अस्तित्व खो चुके हैं ,जबकि हिंदू बड़ी तेजी से कम होता जा रहा है। भारत में इन दोनों मजहबों ने चुपचाप गठबंधन कर भारत के हिंदू समाज का गला दबाने का हर प्रकार का षड्यंत्र और हथकंडा अपनाने में कभी संकोच नहीं किया है। आजादी के बाद के भारत में ईसाई लोगों की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है। जिस पर किसी मुसलमान को कोई आपत्ति नहीं है, इसका कारण केवल एक ही है कि चुपचाप हिंदू के अस्तित्व को मिटाने का ‘गठबंधन धर्म’ निभाते हुए ये दोनों मजहब एक दूसरे की आलोचना में समय व्यर्थ करना नहीं चाहते।
जब सारे संसार में आर्यों का विश्व साम्राज्य था, तब संपूर्ण भूमंडल आर्यावर्त के आर्य धर्म से शासित और अनुशासित होता था, परंतु अब सारे संसार में इस समय लगभग 14% हिंदू ही बचे हैं। आर्यों के विश्व साम्राज्य के समय में राज्य से किसी संप्रदाय या वर्ग की तो बात छोड़िए किसी व्यक्ति के शोषण की भी अपेक्षा नहीं की जाती थी। हर व्यक्ति को न्याय मिले और राजा पक्षपातशून्य होकर सबके विकास के प्रति संकल्पित हो, यह आर्यों के राज्य का आदर्श होता था। जबकि इस्लामिक सांप्रदायिक शासन में हर काल में दूसरे संप्रदायों पर अमानवीय अत्याचार किए गए हैं। अत्याचारों की यह श्रंखला आज भी जारी है।
हिंदू विनाश की नीतियों को क्रियान्वित करते हुए ईसाई और इस्लाम जगत ने संसार में कई हिंदू देशों को समाप्त करने में सफलता प्राप्त की है । इनकी राजनीति के चलते ही नेपाल जैसा देश भी हिंदू राष्ट्र न रहकर अब धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हो गया है। इस प्रकार जाने अनजाने नेपाल ने भी आत्मविनाश के रास्ते को अपना लिया है । जिस पर वह बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय षड़यंत्र के चलते नेपाल का नेतृत्व भारत के साथ अब मित्रता न रखकर शत्रुता की बातें करने लगा है । वह भारत के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय षड़यंत्रों में तेजी से शत्रुता पूर्ण भूमिका निभाने की ओर बढ़ता जा रहा है। निश्चित रूप से पड़ोसी देश नेपाल का इस प्रकार का आचरण भारत के लिए चिंता का विषय है।
हिंदुस्तान में हिंदू समाज को एक अंधेरी सुरंग में घुसा लिया गया है और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू नाम की भेड़ें सहर्ष इस सुरंग में घुस गयी हैं। अब इस सुरंग के भीतर क्या हो रहा है ? अर्थात हिंदू अस्तित्व को मिटाने की क्या-क्या चालें ,कुचक्र और षड़यंत्र रचे जा रहे हैं या किस प्रकार ये सब क्रियान्वित हो रहे हैं? – इसकी भनक कम से कम कांग्रेसी सरकारों के समय में तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाने की तो बात छोड़िए देश के मंचों पर भी मिल नहीं पाती थी । जिससे पता चलता है कि ऐसे षड़यंत्रों को उस समय सरकारों की ओर से भी समर्थन प्राप्त होता रहा है।
हिंदू स्वयं अपने लिए शुतुरमुर्गी धर्म का निर्वाह करने वाली सरकारों को चुनता रहा और इस अंधेरी सुरंग में उसके विनाश का कुचक्र विदेशी शक्तियां चलाती रहीं। इसका सबसे घातक प्रभाव हिंदू के संख्या बल पर पड़ा। इतना ही नहीं, हिंदू मानसिक रूप से भी पंगु कर दिया गया। वह षड़यंत्रकारियों द्वारा लिखे गए इतिहास को ही वास्तविक इतिहास मान कर पढ़ता रहा। जिससे उसके भीतर कायरता का जहर भर दिया गया। इस प्रकार की कायरता ने हिंदू के मनोबल को भी प्रभावित किया।
यदि हम 1947 में हुए देश के विभाजन की ओर चलें तो कांग्रेसी सरकारों ने उस समय हिंदुओं पर हुए सभी अत्याचारों को पर्दा डालकर इस प्रकार दबा दिया था कि जैसे कुछ भी नहीं हुआ। इस प्रकार एक अखलाक की मृत्यु पर जमीन आसमान को सिर पर उठा लेना और हिंदुओं के बड़ी संख्या में किए गए नरसंहार पर भी मौन रहना , यह संस्कार स्वतंत्र भारत की पहली सरकार के शासनकाल में ही पड़ गया था जो आज तक जारी है। जबकि सच यह है कि उस समय लगभग डेढ़ करोड़ हिंदू बेघर हो गए थे। जिन पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बहुत ही अमानवीय अत्याचार किए गए थे। इससे पता चलता है कि हिंदुओं को उस समय सबसे अधिक पीड़ा झेलनी पड़ी थी। ऊपर से गांधी जी का गांधीवाद उनके लिए काल बन कर आया। क्योंकि गांधीवाद में कहीं भी हिंदुओं के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने का समय नहीं था।
तथ्य यह भी है कि 75 हजार से 1 लाख महिलाओं का बलात्कार या हत्या के लिए अपहरण हुआ। लगभग 10 से 12 लाख हिंदुओं को उस समय अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। बड़ी संख्या में पाकिस्तान में रह रहे हिंदू और सिक्ख अपनी पवित्र धरती हिंदुस्तान की ओर चले, परंतु उनमें से अनेकों अभागे ऐसे रहे जो हिंदुस्तान में पहुंचकर भी जीवित न रह सके। उन्हें सांप्रदायिकता के उन्माद में रंगी इस्लाम की तलवार खा गई। हजारों बच्चों को कत्ल कर दिया गया। बालकों और बूढ़ों के साथ हुए अत्याचारों से जहाँ उस समय धरती हिल गई थी वहीं महिलाओं के साथ जो कुछ हुआ उससे तो धरती और अम्बर दोनों ही हिल गए थे, लेकिन उन अत्याचारों को अपनी आंखों से देख कर भी धर्मनिरपेक्षता के पाले से मारे हुए कांग्रेसियों का दिल नहीं दहला।
पाकिस्तान की जनगणना (1951) के अनुसार पाकिस्तान की कुल आबादी में 22 % हिन्दू थे, जो 1998 की जनगणना में घटकर 1.6 % रह गए हैं। कांग्रेस के समय में वास्तव में पाकिस्तान हिंदुओं के लिए एक आतंकी शिविर हो गया था। जिसमें हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमानों की हविस का शिकार बनाने के लिए छोड़ दिया गया। वहां पर जो अवस्था हिंदू की हुई वह बहुत ही दर्दनाक है। हिंदुस्तान की तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने पाकिस्तानी हिंदुओं को भारत में रहने नहीं दिया। 1965 से अब तक लाखों पाकिस्तानी हिन्दुओं ने भारत की ओर पलायन किया है। जिन्हें अब नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संबंधी कानून से कुछ राहत मिलना संभव हुआ है। जिसके आधार पर वह अब भारत की नागरिकता ले सकते हैं।
देश के बंटवारे के एकदम बाद सिंधी और पंजाबियों के साथ भी जो अन्याय हुआ, अब वह भी पाकिस्तान में सड़कों पर आ चुका है। तभी तो लोग पाकिस्तान के शासकों से आजादी के 72 -73 वर्ष पश्चात न्याय की मांग कर रहे हैं।
अफगानिस्तान और भारतवर्ष का सांझा इतिहास भी युगों पुराना है। रामायण काल में भी यह देश भारत वर्ष अर्थात आर्यावर्त का एक अंग था । जबकि महाभारत में तो वहां के शासक शकुनि उसके पिता और पुत्र का बार-बार उल्लेख होता रहा है। इसी देश की गंधारी थी। यहां आर्य वैदिक संस्कृति फलती – फूलती रही है । अनेकों हिंदुस्तानी सम्राटों, विद्वानों, कवियों ने यहां पर रहते हुए मां भारती की अप्रतिम सेवा की है, परंतु आज उनके बलिदान और सेवाएं भारत की धर्मनिरपेक्षता की भेंट चढ़ गई हैं। कोई उन पर शोध करने की सोच भी नहीं सकता । इस प्रकार जो अपने ही थे वह हमारे लिए बेगाने हो गए हैं। अपने पूर्वजों का ही इतना भारी अपमान केवल धर्मनिरपेक्ष भारत में ही हो सकता है। इस्लाम के धर्मांतरण ने भारत के महान पूर्वजों को लील कर रख दिया है।
इस देश के विषय में हमने अपनी पुस्तक ”अफगानिस्तान का हिंदू वैदिक अतीत” में विस्तार से प्रकाश डाला है। पाठक उस पुस्तक के माध्यम से यह जानकारी ले सकते हैं कि अफगानिस्तान में किस प्रकार हिंदू विनाश किया गया है ?
हिंदू अस्तित्व को बचाने के लिए और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए इस देश में जो हिंदू वीर लड़ते रहे उन्हें उस समय इस्लाम ने ‘बदमाश’ कहा तो अंग्रेजों ने उनको दस्यु या ‘डकैत’ कहकर पुकारा । दुर्भाग्यवश स्वतंत्र भारत के लोगों ने भी और विशेष रूप से इतिहासकारों ने भी उन्हें ‘बदमाश’ और ‘डकैत’ ही मान लिया। नेहरू के ‘नए भारत’ में यह अवधारणा तेजी से स्थापित की गई कि अतीत की कड़वाहट को भूलो और आगे बढ़ो। नेहरू जैसे लोग उसी भारत के निर्माता कहे जा सकते हैं जिसमें हिंदू विनाश को शासन की नीति का प्रमुख अंग बनाया गया। राष्ट्र निर्माता नेहरू की इस प्रकार की नीति का परिणाम यह हुआ कि अतीत की कड़वाहट के नाम पर हमने अतीत के सुंदर रमणीक स्थलों को भी भुला दिया। जिन व्यक्तित्वों पर हमें गर्व होना चाहिए था उन पर हमें शर्म आने लगी। जिस मधुरस को पीकर हमें आनंद की अनुभूति होती, उसे हमने विष समझकर फेंक दिया। सचमुच देश के संदर्भ में इससे बड़ी नादानी और कोई नहीं हो सकती । फलस्वरूप जिन लोगों को अपने पूर्वजों द्वारा किए गए अप्रत्याशित अत्याचारों को लेकर वास्तव में शर्म आनी चाहिए थी वह अपने नायकों को इतिहास नायक के रूप में स्थापित कराने में सफल हो गए। शर्म तो नहीं शर्मायी पर गर्व को चार जूते मारकर कैद में डाल दिया गया।
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि जिस अफगानिस्तान में कभी 25% आबादी हिंदुओं और सिखों की हुआ करती थी वह बड़ी तेजी से समाप्त कर दी गई है । 1992 में तख्तापलट के समय तक काबुल में कभी 2 लाख 20 हजार हिंदू और सिख परिवार थे। अब 200 के लगभग रह गए हैं। यह भी एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि अफगानिस्तान में अब लगभग 1350 हिन्दू परिवार ही बचे हैं। जानकारों का कहना है कि कभी ये पूरे अफगानिस्तान में फैले हुए थे लेकिन अब बस नांगरहार, गजनी और काबुल के आसपास ही बचे हैं और वहां से सुरक्षित जगह निकलने का प्रयास कर रहे हैं। अफगान सरकार, यूएनओ और विश्व समुदाय ने कभी इन्हें बचाने या इन अफगानी हिन्दू या सिक्खों के अधिकार की बात कभी नहीं की । जिसके चलते इनका अस्तित्व लगभग समाप्त होने के कगार पर ही है। आज जो अफगानी मुस्लिम हैं वे कभी हिन्दू, सिख या बौद्ध ही हुआ करते थे।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के इतिहास पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो जिस प्रकार इन दोनों देशों में हिंदू विनाश किया गया उसकी कहानी बड़ी दर्द भरी है । धर्मनिरपेक्ष हिंदू को इस दर्दभरी दास्तान से शिक्षा लेनी चाहिए। यदि यह आज भी इतिहास को अतीत की घटनाओं का लेखा मात्र मानकर चलता रहा तो इसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। अपने अस्तित्व के लिए तो सृष्टि में हर प्राणी संघर्ष करता है, परंतु हिंदू के साथ यह दुर्भाग्य है कि वह अपने अस्तित्व के लिए भी संघर्ष करने की अपनी परंपरागत नीति – रणनीति को छोड़ता जा रहा है।


धर्मनिरपेक्ष हिंदू की सोच को देखकर लगता है कि वह अपने अस्तित्व के प्रति पूर्णतया लापरवाह है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुपचाप इन षड़यंत्रों से लड़ रहे हैं, परंतु धर्मनिरपेक्ष हिंदू ही शोर मचा रहा है कि मेरा आरक्षण लुट गया, मेरी रोटी लुट गई, मेरा रोजगार लुट गया ? यह शोर वास्तव में कम्युनिस्टों, कांग्रेसियों और धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों की ओर से मचाया जा रहा है। जो सत्ता के लिए लालायित हैं और जिन्हें हिंदू अस्तित्व से कोई लेना देना नहीं है । वास्तव में नरेंद्र मोदी जी के रहते यह ऐसा समय है जब कांग्रेस और कम्युनिस्ट दोनों ही अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं ।अस्तित्व की इस लड़ाई में वह स्तरहीन बातों तक उतर आए हैं। उनकी झुंझलाहट और बौखलाहट को हिंदू को समझना होगा। जिन लोगों ने हिन्दू अस्तित्व को ताक पर रखकर मुस्लिम तुष्टिकरण करते हुए सत्ता का खेल खेला है उनके मुंह सत्ता का लहू लगा रहा है। अब वह सत्ता पाने के लिए बेचैन हैं तो वह जितने झूठे आरोप मोदी की सोच और नेतृत्व पर लगा सकते हैं, लगाने का प्रयास करते हैं। उनका साथ जब धर्मनिरपेक्ष हिन्दू देता है तो कष्ट होता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

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