डॉ डी के गर्ग

पौराणिक मान्यता =नरसिंह अथवा नृसिंह (मानव रूपी सिंह) भगवान विष्णु का अवतार है।जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे। ये एक देवता हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए इस रूप में प्रकट होते हैं।
प्रचलित कहानी इस प्रकार है -हिरण्यकश्यपु ने अपने भाई हिरण्याक्ष की भगवान विष्णु के वराह अवतार के द्वारा हुए वध के कारण बहुत तपस्या की।ब्रह्मा जी से वरदान मांगा, की उसे कोई भी मार ना सके। ब्रह्मा जी ने कहा ये सम्भव नहीं है। तो हिरण्यकश्यपु ने दूसरा वरदान मांगा , मुझे न कोई पुरूष मार सके ,न कोई प्राणी, मुझे ना जल में मारा जा सके, ना थल में, मुझे ना घर के अंदर मारा जा सके,ना घर के बाहर। मुझे ना दिन में मारा जा सके ना रात में। मुझे ना कोई शस्त्र से मार सके, ना अस्त्र से।
ब्रह्माजी ने वरदान दे दिया।
हिरण्यकशिपु इस अमरत्व को प्राप्त कर अहंकारी हो गए. उसी के घर में “भक्त प्रहलाद” पुत्र का जन्म हुआ ।जिसने अपनी माता की कोख में ही विष्णु जी के बारे में नारद मुनि के द्वारा बाते सुनी, और प्रह्लाद भी भगवान विष्णु के भक्त हो गए।
हिरण्यकशिपु को ये बात बहुत खली, उसने अपने पुत्र को बहुत समझाया। किन्तु वो नहीं माना। हिरण्यकशिपु ने
प्रह्लाद को मारने की कोशिश की, परन्तु निष्फल रहा।
एक बार क्रोधित हो कर हिरण्यकशिपु गदा उठाकर एक खम्बे को मारने चला तो बहुत बड़ा धमाका हुआ, ज़मीन हिलने लगी और उसमे से भगवान विष्णु प्रकट हो गए वह भी नरसिंहा के विकराल स्वरूप में।
उन्होंने हिरण्यकशिपु को दबोचा और घसीट कर चौखट पे ले गए तो हिरण्यकशिपु बोला की उसको कोई नहीं मार सकता ।
नरसिंह ने उत्तर दिया की ना मै मनुष्य हूं ना मै प्राणी,और यहाँ पर तू ना जल ना स्थल में है बल्कि तुम मेरी गोद में हो ,और ना हम तुम्हारे घर में है , ना ही घर के बाहर , हम तुम्हारे घर की चौखट पर हैं। इसके अलावा इस समय ना तो दिन है, ना रात, ये शाम का समय है।
मेरा पास कोई अस्त्र -शस्त्र भी नहीं है।
इसके बाद नरसिंहा जी जोर से दहाड़ लगाई लगाई और अपने ही नाखून से उसका वध किया ।
नरसिंहा जी इतने क्रोधित थे कि उनके क्रोध से सभी चिंता में पड़ गए, यहां तक के लक्ष्मी माता भी उन्हें शांत नहीं कर पाई, तब भक्त प्रहलाद को आगे किया गया और नरसिंहा जी शांत हुए ।
इसके आगे लिङ्ग व शिवपुराणों में एक अन्य विस्तृत वर्णन है कि शंकर भगवान् ने अपने सेनाध्यक्ष वीरभद्र को भेजकर नृसिंह अवतार का कत्ल करवा दिया था। उनका सर कटवा कर देह की खाल तक खिंचवा ली थी। शङ्कर जी शेर की खाल (बाघम्बर) पहनते हैं, वही नृसिंह जी के जिस्म की खाल है। शङ्कर जी के गले की मुण्डों के मध्य में जो सिंह की खोपड़ी पड़ी है, वही नृसिंह जी का कटा हुआ सिर है।

कथा का वास्तविक विश्लेषण: कथा के अनुसार नरसिंह नर + सिंह (“मानव-सिंह”) है जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में है।
एक होती है गप्प कथा और इसका बड़ा भाई होता है गप्पा कथा । इस कथा में गप्पा से ज्यादा कुछ नहीं है। कुछ कहानिया अति प्रसिद्द हो जाती है और समय समय पर उसमे अतिश्योक्ति अलंकार और मसाला जुड़ने के कारण कहानी पूज्यनीय होने लगती है और इसी का लाभ विधर्मी उठाते है।
विस्तार से समझते है=
1.क्या ईश्वर उपरोक्त प्रकार से उल झूल वरदान देते है?

2.सत्य ये है की जब राजा हिरण्यकश्यप के समय में हुई ,प्रजा उसकी हैवानियत से जब त्राहि त्राहि कर रही थी और उसको मारने का भी कोई प्रयास सफल नहीं हो पा रहा था तभी एक वीर युवक ने अपनी पहचान छुपाकर , संध्या काल में अचानक उस पर आक्रमण करके हवा और धरती के बीच यानी अपनी गोद में लेटाकर बिना शस्त्र के उपयोग से नुकीले नाखुनो द्वारा हिरण्यकश्यप को शेर की भांति चीर दिया और उसकी मृत्यु हो गयी। जनता के लिए ये कार्य इतना सराहनीय था जैसे की भगवान् ने स्वयं उसको शेर का रूप धारण करके मारा हो ।
इस प्रकार के साहसी युवक की शेर के रूप में मानव की उपमा दी गई है।
एक अन्य उदहारण से समझ ले -शिवाजी ने नुकीले नाखुनो के द्वारा अत्याचारी मुग़ल सरदार अफजल खान पेट चीरकर का संहार कुछ इसी तरह से किया था। ये नाखून बाघ के नाखून से बनाया था जिसको बाघनख कहते है। शिवजी पहले से ही हाथ में बाघनख पहने हुए थे।
इस कथा का असली मर्म हिन्दू विद्वानों को ज्ञात नहीं है और ना ही जानने का प्रयास करते है।
सनातन धर्म के परमात्मा शंकर जी ने विष्णु भगवान् का उनके अवतार रूप में सर कटवा लिया, यानि की भगवान् भगवान् से लड़ पड़े। अवतार का सिर काटकर उसकी खाल उतारी जाना और ऐसे पुराणों को सत्य शास्त्र मानना अज्ञानता है ,पाखंड ही है।
इस कथा ने ईश्वर के सम्बन्ध में कई प्रश्न खड़े कर दिए है। जिनको भी समझाना जरुरी है.
पहला प्रश्न – क्या ईश्वर का कोई लिंग, जाति है जैसे पुरुष, महिला आदि
उत्तर – नहीं, ईश्वर का कोई शरीर ही नहीं है
वेद का प्रमाण :
1 -“न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद् यश:” (यजुर्वेद ३२/३)
अर्थात – उस ईश्वर का बहुत बड़ा यश व नाम है। उसकी कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं होती।
वह परमेश्वर सब में समाया हुआ है:
2- “ईशावस्यमिदं सर्वं यत्किं च जगतयां जगत्” (यजुर्वेद ४०/१)
अर्थात – इस संसार जितने भी जड़ अथवा चेतन पदार्थ हैं, जो कुछ भी इस संसार में है वह सब ईश्वर से आच्छादित है
दूसरा प्रश्न : क्या ईश्वर अवतार लेता है ?
दुष्टों का संहार करने के लिए, धर्म की स्थापना करने के लिए, सज्जनों की रक्षा करने के लिए ईश्वर अवतार नहीं लेता है। ईश्वर जन्म-मृत्यु के बंधन से सर्वदा दूर रहता है। ईश्वर कभी नस-नाड़ियों के बंधन में नहीं आता है। ईश्वर कभी शरीर धारण नहीं करता है। शरीर धारण जीवात्मा को करना पड़ता है। क्योंकि उसे अपने पाप पुण्य के फल भोगने हैं। और फल भोगने के लिए शरीर आवश्यक है। परमपिता परमात्मा का अनंत सामर्थ्य है, वह बिना शरीर के भी संसार के समस्त कार्य यथा संसार की रचना करना, इसका पालन पोषण करना, इसका प्रलय अर्थात संहार करना। यह कार्य वह अपने सामर्थ्य से ही करता है। फिर दुष्टों का संहार करने के लिए ईश्वर को शरीर धारण करने की क्या आवश्यकता है?
वेद का प्रमाण :
1-कालेनोदेति सूर्य: काले नि विशते पुन:। -अथर्व० १९/५४/१
काल का काल ईश्वर है। उसके द्वारा ही सूर्य उदय होता अर्थात् प्रवृत्ति मार्ग पकड़ता और उसी काल में पुनः निविष्ट होकर अपने काम में लीन हो जाता है।
2- वेद में कहा है ईश्वर पूर्ण है।उसकी रचना का ज्ञान भी पूर्ण है–
पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।
सृष्टि में व्याप्त ईश्वरीय नियमों का समुच्चय व्यवहार पूर्ण है।
3- ईश्वर इतना शक्तिशाली है जिसने पूरे ब्रह्माण्ड को जिसमे असंख्य सूर्य ,पृथ्वी, तारे है जिनकी गण ना आज तक नहीं हो पायी है और वैज्ञानिक केवल २-३ % का ही पता लगा पाए है। वेद में कहा है-
ओ३म् ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रोऽअर्णवः।।1।।
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरोऽअजायत। अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी।।2।।
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः।।3।।
ऋग्वेद 10.190.1-3
सब जगत का धारण और पोषण करनेवाला और सबको वश में करनेवाला परमेश्वर, जैसा कि उसके सर्वज्ञ विज्ञान में जगत् के रचने का ज्ञान था और जिस प्रकार उसने पूर्वकल्प की सृष्टि में जगत की रचना थी और जैसे जीवों के पुण्य-पाप थे, उनके अनुसार ईश्वर ने मनुष्यादि प्राणियों के देह बनाये हैं। जैसे पूर्व कल्प में सूर्य-चन्द्रलोक रचे थे, वैसे ही इस कल्प में भी रचे हैं, जैसा पूर्व सृष्टि में सूर्यादि लोकों का प्रकाश रचा था, वैसा ही इस कल्प में रचा है तथा जैसी हमारी यह भूमि वा पृथिवी प्रत्यक्ष दीखती है, जैसा पृथिवी और सूर्यलोक के बीच में पोलापन है, जितने आकाश के बीच में लोक हैं, उन सबको ईश्वर ने रचा है। जैसे अनादिकाल से लोक-लोकान्तर को जगदीश्वर बनाया करता है, वैसे ही अब भी बनाये हैं और आगे भी बनावेग।
परमात्मा सूर्यादि जगत् का निमित्त कारण है। उपादान कारण प्रकृति है।
यानी इस तरह की कथा पूर्ण तरह वेद विरुद्ध ही नहीं अवैज्ञानिक भी है ।इस तरह की कथा द्वारा ईश्वर की शक्ति को काम आँका गया है।
हर देश, हर युग में राक्षसी प्रवृत्ति के व्यक्ति पैदा होते रहते हैं और होते रहेंगे। क्या बिन-लादेन व बगदादी रावण और कंस से कम राक्षस-प्रवृत्ति के हैं? अगर बराक ओबामा, ओसामा बिन- लादेन की हत्या करवा सकता है, तो क्या कोई पराक्रमी महापुरुष, ईश्वर की प्रेरणा से रावण व कंस का वध नहीं कर सकता? यदि हर राक्षस को मारने के लिये ईश्वर को अवतार लेना पड़े, तो ईश्वर सदा-सर्वदा के लिये अग्निशमन कार्य (Fire-fighting) में व्यस्त दिखाई देगा।ईश्वर को रावण या कंस के वध के लिये अवतार लेने की क्या आवश्यकता है? सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान् , अन्तर्यामी ईश्वर जो संकल्प मात्र से सृष्टि की रचना करता है, वह उनकी जीवन लीला हृदयाघात (Heart-attack) या मस्तिष्क सम्फोट (Brain-Haemarage) से नहीं कर सकता?
विशेष : इसी तरह की कथा वराह मिहिर की है ,उपरोक्त लेख के अलोक में पाठक स्वयं अपना निर्णय ले सकते है ,अलग से कोई लेख लिखने की आवश्यकता नहीं है।

Comment: