भारत में “बोलने” की आज़ादी है, “भौंकने” की नहीं

😎सीधी बात,नो बकवास😎

अभी हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में टिपण्णी करते हुए कहा कि ” अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत भारत के प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह सरकार की नीतियों और नियत पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता है, और अपनी राय अथवा टिप्पणी भी दे सकता है”.

माननीय सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी गौरतलब है। यहाँ ग़ौर करने वाली बात यह है कि भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार और भावनाएं व्यक्त करने का अधिकार तो देता है परन्तु साथ ही साथ उसको संवैधानिक दायरे में बांधे रखने की बाध्यता भी बनाये रखने की सलाह देता है।

लेकिन इस देश में चंद स्वघोषित बुद्धिजीवी और बौद्धिक आतंकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को “भौंकने की स्वछंदन्ता” मानते हुए माननीय प्रधानमंत्री और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार पर अनर्गल टिप्पणियां करने से बाज़ नहीं आते हैं।

यहां यह भी गौरतलब है कि इनमें वह तमाम लोग शामिल हैं जो सदैव संविधान और न्याय की दुहाई देते हैं। हालांकि इन्हीं लोगों को आप सड़कों पर खुलेआम संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए देखते हैं।

आतंकियों और आतंकवाद के पनाहगार बन चुके यह तमाम लोग भारत को एक राष्ट्र मानने से तो सिरे से ही नकारते हैं, परन्तु मोहनदास करमचंद गांधी को “राष्ट्रपिता” का दर्जा देने से कभी नहीं चूकते।

यह वही लोग हैं जो भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने की दुहाई तो देते हैं, परन्तु मुग़लों को विदेशी आक्रांता मानने से कहने से कतराते हैं।
जबकि सत्य यही है कि जिस प्रकार अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया, ठीक उसी प्रकार से मुगलों ने भी भारत को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा।

यह इस देश की विडंबना है कि इस देश में आक्रांताओं और बर्बर हत्यारों को “शांतिदूत” और “महान” कहा जाता है।

-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक
उगता भारत
नोएडा से प्रकाशित हिंदी दैनिक

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