मालदीव को समझनी चाहिए भारत की महानता

भारत में स्वामी दयानंद जी महाराज और उसके पश्चात महात्मा गांधी के भी आंदोलनों में स्वदेशी, स्वराष्ट्र, स्वभाषा, स्वसंस्कृति और स्वराज्य जैसे शब्द विशेष रूप से स्थान प्राप्त करते रहे। इस दृष्टिकोण से देखें तो भारत के द्वारा स्वाधीनता ही ‘स्व’ बोध के लिए प्राप्त की गई थी। अब भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 4 जनवरी को अपने लक्षद्वीप के दौरे की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की हैं। अपनी इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर साझा करने का पीएम का उद्देश्य यही था कि देश के अन्य लोग भी प्रेरणा प्राप्त करें और अपने खाली समय में लक्षद्वीप घूमने का मन बनाएं। जिससे लक्षद्वीप के विकास के लिए अधिक से अधिक राजस्व की प्राप्ति हो।
हमारा पड़ोसी देश मालदीव प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रकार के चित्रों को साझा किए जाने की घटना पर अनावश्यक ही चिढ़ गया। इसका एक कारण यह था कि मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति मोइज्जू अपने देश में भारत विरोध के कारण जाने जाते हैं। उन्होंने अपने देश का आम चुनाव अपने देश से भारतीय सैनिकों को विदा करने के नारे के साथ लड़ा था। इसलिए वहां के कई मंत्रियों को इस बात का भ्रम हो गया कि अब वे जो चाहें सो भारत के विरुद्ध बोल सकते हैं। माना कि मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति अपने देश के लोगों का मूर्ख बनाने में सफल हो गए, पर इसका अभिप्राय यह तो नहीं कि देश के मतदाताओं का इस प्रकार मूर्ख बनाने से उनको कोई अदृश्य शक्ति प्राप्त हो गई हो। जिससे वह अपने पड़ोस के शक्तिशाली राष्ट्र को आंखें दिखाने में समर्थ हो गए हों। बहुत से मुद्दे चुनाव में उठाए जाते हैं, पर वे केवल चुनावी लाभ लेने के लिए उठाए जाते हैं। वे कभी भी लागू नहीं किए जाते।
मालदीव के वर्तमान नेतृत्व को यह भली प्रकार समझना चाहिए कि भारत प्राचीन काल से ही किसी भी पड़ोसी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की नीति के विरुद्ध रहा है। यदि कोई भी पड़ोसी देश शांतिपूर्वक हमारी भावनाओं का सम्मान करते हुए जी रहा है तो भारत की स्पष्ट मान्यता है कि उसके साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न की जाए। कई देश ऐसे हैं जो आकार और रक्षा के दृष्टिकोण से भारत के सामने कहीं नहीं टिकते। इसके उपरांत भी भारत ने कभी किसी देश को अपनी दादागिरी दिखाने का प्रयास नहीं किया। भारत का मानवतावाद भारत की राजनीति का आधार स्तंभ है। पर इसका अर्थ यह नहीं कि भारत दूसरों की धमकियों के सामने भी शांत रहेगा। यदि कोई ‘भारत को छेड़ेगा तो भारत उसको छोड़ेगा नहीं’ – आज भारत के मानवतावाद की परिभाषा में इन शब्दों को भी जोड़ने की आवश्यकता है । भारत के वर्तमान नेतृत्व ने भारतीय विदेश नीति के संदर्भ में इन दोनों तत्वों को सफलतापूर्वक समाविष्ट करने का प्रशंसनीय प्रयास किया है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा सांझा की गई उपरोक्त तस्वीरों पर
कई लोगों ने कहा कि अब भारतीयों को मालदीव नहीं, लक्षद्वीप जाना चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री के संदेश का यह नकारात्मक विश्लेषण था। इस नकारात्मक विश्लेषण को ही आधार बनाकर पीएम मोदी की तस्वीरों पर मुइज़्ज़ू सरकार में मंत्री मरियम शिउना ने आपत्तिजनक ट्वीट किए थे। शिउना ने पी0एम0 मोदी को इसराइल से जोड़ते हुए यह भी दिखाने का प्रयास किया कि वह अपने पड़ोसी देशों के प्रति आक्रामक दृष्टिकोण रखते हैं।इसके अतिरिक्त मालदीव की यह मंत्री लक्षद्वीप का भी उपहास करती हुई दिखाई दी थीं। मालदीव के नेता मालशा शरीफ़ और महज़ूम माजिद ने भी भारत के विरुद्ध जहर उगला।
कुल मिलाकर पड़ोसी देश मालदीव के इन तीनों मंत्रियों की इस प्रकार की टीका टिप्पणी और भारत के विरुद्ध अपनी गई भड़काऊ भाषा से स्पष्ट होता है कि आज का मालदीव अपनी सीमाओं और अपनी मर्यादाओं का अतिक्रमण कर रहा है। माना कि उसके लिए चीन जैसे देश मित्रता का हाथ फैला सकते हैं परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि वह अपने इतिहास और भूगोल को दांव पर लगाकर चीन की गोद में जा बैठेगा। मालदीव को समझना चाहिए कि किसी भी निर्णय को लेने से पहले यह बात ध्यान में रख लेनी चाहिए कि इतिहास और भूगोल को कभी बदला नहीं जा सकता। ऐसे में वह लाख कोशिश कर ले पर भूगोल की दृष्टि से वह जहां है वहीं रहेंगा और चीन के नजदीक कभी नहीं जा सकता । जब उसे भारत का पड़ोसी बनकर ही रहना है तो भारत जैसे उदार और मानवतावादी मित्र को खोने की भूल उसे कभी नहीं करनी चाहिए। माना कि वहां के वर्तमान राष्ट्रपति भारत विरोधी दृष्टिकोण अपनाकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने में सफल हो गए । पर इसका अभिप्राय यह नहीं कि वह अपने राजनीतिक हितों को साधने के चक्कर में देश के हितों को ही कुर्बान कर दें। उन्हें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सीमाओं को ( मर्यादाओं ) कभी भुलाया नहीं जा सकता और ना ही सीमाओं को बदला जा सकता है। पड़ोसी सदा पड़ोसी बना रहेगा।
यह एक अच्छी बात है कि जैसे ही भारत के लोगों को मालदीव के मंत्रियों की टिप्पणियों की जानकारी हुई तो उन्होंने तुरंत मालदीव के भ्रमण पर जाने के अपने टिकटों को रद्द कराना आरंभ कर दिया। निश्चित रूप से इस प्रकरण को लेकर दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास पैदा हुई। यद्यपि इस खटास का मूल कारण मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति हैं । जिन्होंने सत्ता संभालते ही भारत के विरुद्ध जहर उगलना आरंभ कर दिया था।
उन्होंने अपने लिए उस चीन को कहीं अधिक उपयुक्त समझा जो मुसलमानों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करता रहा है और कर रहा है। जिस चीन ने कुरान को पढ़ने तक पर प्रतिबंध लगा दिया हो, उस चीन को अपने लिए मालदीव की वर्तमान सरकार ने पता नहीं कैसे उपयुक्त मान लिया ?
मालदीव में भारत के सैनिकों की बात है तो यह संख्या मात्र 75 है। निश्चित रूप से शांतिपूर्ण और मानवतावादी नीतियों में विश्वास रखने वाले भारत के सैनिकों की सोच कभी भी दूसरे देश की संप्रभुता पर अपना अधिकार करने की नहीं रही। भारत के कुल 75 सैनिकों की संख्या को वहां के राष्ट्रपति ने चुनावों के दौरान इस प्रकार बढ़ा चढ़ा कर दिखाया कि जैसे भारत मालदीव की संप्रभुता को हड़पने के लिए बड़ी संख्या में अपने सैनिकों की तैनाती यहां पर कर चुका है।
जैसे ही भारत के पर्यटकों ने बड़ी संख्या में मालदीव जाने के अपने टिकटों को रद्द कराना आरम्भ किया वैसे ही मुइज्जू को पता चल गया कि भारत के लोगों के वर्तमान दृष्टिकोण से उनके अपने देश के पर्यटन उद्योग को बड़ी क्षति पहुंचने वाली है। इसके बाद उन्होंने अपनी सरकार के तीनों मंत्रियों को बर्खास्त किया।
हम मालदीव से यही अपेक्षा करेंगे कि वह अपने आपको वैश्विक राजनीति के उस दुष्चक्र में ने फंसाए जिससे उसकी अपनी क्षेत्रीय अखंडता को खतरा पैदा हो जाए। उसे शांतिपूर्वक भारत के संरक्षण में अपना अस्तित्व स्थापित किए रखने को ही अपना लक्ष्य बनाकर रखना चाहिए। यदि वह चीन, पाकिस्तान या भारत विरोधी शक्तियों के हाथों का खिलौना बनने की कोशिश करेगा तो इसके परिणाम उसके अपने लिए ही घातक होंगे। क्योंकि ये वे देश हैं जो दूसरों के अस्तित्व को निगलना या अपने हितों के लिए दूसरे के अस्तित्व को दांव पर लगाने से कभी चूकते नहीं हैं। जबकि भारत दूसरों के अस्तित्व के लिए अपने अस्तित्व को भी दांव पर लगाने वाला सनातन राष्ट्र है। इसकी सनातन परंपराओं में दूसरे का सम्मान करना सबसे ऊपर है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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