भविष्य को सुखमय बनाने के लिए करना पड़ेगा विशेष पुरुषार्थ

    व्यक्ति अपने भविष्य को सुखमय बनाना चाहता है। ठीक है, बनाना चाहिए। यह अच्छी बात है। "परंतु मुफ्त में तो बनेगा नहीं। इसके लिए  वेदानुकूल उत्तम कर्म करने पड़ेंगे।"
     "जब व्यक्ति इस बात को समझ कर वेदानुकूल कर्म करने आरंभ करता है, तो संसार के स्वार्थी मूर्ख और दुष्ट लोग उसके विरोधी हो जाते हैं। वे स्वार्थी मूर्ख और दुष्ट लोग उसे गालियां देते हैं, उसे दुर्वचन कहते हैं, उसे बद्दुआएं देते हैं। अनेक प्रकार से उसका उत्साह भंग करते हैं।"
     "ऐसी स्थिति में जो अच्छा व्यक्ति है, वह उन मूर्खों और दुष्ट लोगों के दुर्वचनों से घबरा जाता है, और अच्छे काम करना या तो छोड़ देता है, या संशय में रहता है। वह संशय रहित होकर निश्चिंतता से अच्छे कार्यों को नहीं कर पाता।"
     तो ऐसी स्थिति में उसे यह समझना चाहिए, कि "किसी मूर्ख या दुष्ट व्यक्ति के कुछ दुर्वचन कह देने से, उसकी वैसी  हानि नहीं होगी।" "उसे इस प्रकार की कोई शंका मन में नहीं रखनी चाहिए। पूरी तरह से निश्चिंत होकर ईश्वर आज्ञा के अनुकूल उत्तम कर्म करते रहना चाहिए।"
     "क्योंकि ईश्वर पूर्ण न्यायकारी है। वह सब के कर्मों को देखता है। जो वेदानुकूल या ईश्वर की आज्ञानुकूल अच्छे कर्म करता है, उनको ईश्वर बहुत अच्छा पुरस्कार देता है, और आगे भी देगा।" "तथा जो इस प्रकार के स्वार्थी मूर्ख और दुष्ट लोग, जो दूसरों की हानियां करना चाहते हैं और उनके लिए अपने मन में बद्दुआएं करते हैं, ऐसे दुष्टों को ईश्वर अवश्य ही दंडित करता है, और आगे भी करेगा।" ऐसा सोचकर, ईश्वर पर पूरा विश्वास अपने मन में रखकर, उसे उत्तम कर्म करते रहना चाहिए।" 
     "यदि संसार के लोगों के दुर्वचनों से भविष्य में वैसी घटनाएं हो जाती, तो अब तक यह संसार नरक बन चुका होता।" क्योंकि देखने में यह आता है कि "प्रायः व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति के सुख को देखकर सहन नहीं कर पाता, और अपने मन में उसके प्रति कुछ न कुछ बुरी भावनाएं (बद्दुआएं) रखता है। मन में उसके सुख के विनाश की प्रार्थनाएं भी करता रहता है।" परंतु उस से परिणाम कुछ भी नहीं आता। आप देख सकते हैं, कि "सब लोग अपना अपना काम कर रहे हैं। अच्छी प्रकार से जी रहे हैं। किसी की दुर्भावनाओं से या बद्दुआओं से दूसरों की कोई हानि नहीं हो रही।"
     "इसलिए किसी को भी ऐसी शंका अपने मन में नहीं रखनी चाहिए। और निश्चिंत होकर ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल उत्तम कर्म करते रहना चाहिए। ईश्वर उसका बहुत अच्छा फल (सुख) वर्तमान में और भविष्य में भी देगा।"

—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़ गुजरात।”

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