मंत्र, तंत्र साधना,जादू टोना और अंधविस्वास रहस्य* भाग- 4

डॉ डी के गर्ग
3. धूनी रमाना

सामान्य तौर पर धूनी रमाना शब्द का अर्थ किसी बाबा ,साधु को लेकर समझते है जो आग के आगे ज्यादातर बैठे रहते है और उनकी दिनचर्या का ये हिस्सा भी हो जाता है।
सच क्या है, यज्ञ करने वाले को यज्ञिक कहते है।कुछ लोगों को यज्ञ अतिप्रिय होता है और लंबे समय तक यज्ञ करते रहते है। और इसमें लीन हो जाते हैं यानी रम जाते है।
इसी को अपभ्रंश भाषा में धूनी रमाना रख दिया ।ऐसे लोग अत्यंत सम्माननीय है परन्तु अज्ञानियो ने इसका गलत भावार्थ निकालकर अग्नि के आगे निठल्ले बैठे और शरीर को आग से तपते , धूवा उड़ाते हुए बाबाओं को मान लिया।

वास्तविक धूनी रमाना यानी यज्ञ क्या है?
यज्ञ शब्द संस्कृत की यज् धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है परोपकार। व्यापक रूप में यज्ञ के तीन अर्थ लिए जाते हैं देवपूजा, संगति करण और दान। देव पूजा का अर्थ होता है देवों की पूजा। देव दिव्य गुणों युक्त होने के कारण कहलाते हैं।पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आयु, आकाश इत्यादि जड़ देव हैं। इससे परोपकार, देवपूजा, संगति करण व दान सभी सिद्ध होते हैं। यानि की यज्ञ के द्वारा किसी के विनाश की कल्पना करना मूर्खता है।

यज्ञ ही देव पूजा है:
यज्ञ के द्वारा जड़ देव की पूजा की जाती है । जड़ देवता वह हैं जो देता है, बदले में कुछ चाहता नहीं हैं। सूर्य देवता, वायु देवता, वृक्ष देवता, पृथिवी देवता आदि जड़ देव जीवन देते हैं, बदले में कुछ नहीं चाहते हैं।
हम जानते है कि बिना वायु, जल एवं अन्न के हमारा जीवन चलता नहीं है। यदि हम दूषित जल, अन्न ग्रहण करेंगे तो अस्वस्थ होंगे। आनेवाली सन्तान लूली, लंगड़ी विक्षिप्त आदि रोगों से युक्त होगी। इसका कारण हम मनुष्य ही हैं, और हमारी मात्र भौतिक उन्नति है। निश्चय से मन्दिरों में आरती करने से ये तीनों लोक, यह पर्यावरण शुद्ध नही होगा और संसार की कोई पूजा पद्धति इन्हें शुद्ध, स्वस्थ करने में सक्षम नहीं है। इसीलिए हमारे दूरदर्शी महान् वैज्ञानिक ऋषियों, महर्षियों ने ‘यज्ञ’ की पावन पद्धति का आविष्कार किया था तथा यज्ञ को ही ‘देवपूजा’ कहा।

शतपथ ब्राह्मण में लिखा है-
‘अग्निर्वै मुखं देवानाम्’
इन जड़ देवों का मुख अग्नि है, क्योंकि अग्नि में डाले हुए पदार्थ, पदार्थ विज्ञान के अनुसार नष्ट नहीं होते हैं अपितु रूपान्तरित होकर, सूक्ष्म होकर शक्तिशाली बनते हैं। सूक्ष्म होकर अन्तरिक्ष में वायु के माध्यम से फैलते हैं, व्यापक हो जाते हैं। सभी को जीवन-शक्ति से संयुक्त कर देते हैं। अन्तरिक्ष में, द्युलोक में, व्याप्त पर्यावरण को शुद्ध करने में सक्षम हो जाते हैं।
तभी-‘अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः’(यजु 23/62)
इस यज्ञ को भुवन की नाभि कहा है, जो पदार्थ अग्नि में डालते हैं, वे सूक्ष्म होकर वायु के माध्यम से ऊर्जस्वित होकर, शक्ति सम्पन्न होकर द्युलोक तक पहुँचते हैं। मनु महाराज ने स्पष्ट लिखा है-
अग्नौ प्रास्ताहुतिः… प्रजाः।-मनु. ३/ ७६
अर्थात् अग्नि में अच्छी प्रकार डाली गयी पदार्थों (घृत आदि) की आहुति सूर्य को प्राप्त होती है-सूर्य की किरणों से वातावरण में मिलकर अपना प्रभाव डालती है, फिर सूर्य से वृष्टि होती है, वृष्टि से अन्न पैदा होता है, उससे प्रजाओं का पालन-पोषण होता है। गीता में वर्णित है-
अन्नाद् भवन्ति…कर्मसमुद्भवः।-गीता ३/१४
अर्थात् अन्न से प्राणी, वर्षा से अन्न, देवयज्ञ से वर्षा तथा देवयज्ञ तो हमारे कर्मों के करने से ही सम्पन्न होगा।

यज्ञ द्वारा जीवाणुओ का नाश होता है क्योंकि यज्ञ में चार प्रकार की औषधियों का प्रयोग होता है। रोगनाशक जैसे गुग्गुल, चिरायता, गिलोय, हल्दी, जावित्री आदि। पौष्टिक जैसे काजू, किशमिश,बादाम,अखरोट, दाख , चावल,गेहूँ, तिल आदि। सुगंधित जैसे गुड़,शक्कर,मधु ,सुगंध बाला चंदन, लोंग आदि। आयुवर्धक जैसे गाय का घी, घृतकुमारी, शंखपुष्पी, दूध आदि। ये चारों प्रकार की औषधियां वायुमंडल में जाकर अतिसूक्ष्म कीटाणु जो यंत्रों से भी नहीं दिखते उन्हें नष्ट कर वातावरण को स्वच्छ व पवित्र करती हैं।

जो लोग यज्ञ के नाम पर वायु मंडल प्रदूषित करते है उनको परमात्मा की जेल का में जाना पड़ता है। जेल का मतलब है कि अगले जन्म में मछली, कछुआ, दरियाई घोड़ा, मेढक आदि बन कर जल को शुद्ध करेंगे।

आपको समझ में आ गया होगा कि अज्ञानियो ने यज्ञ का असली रूप छोड़ दिया और यज्ञ के नाम पर पाखंड लीला सुरु कर दी है।
आपसे विनम्र निवेदन है कि वास्तविक यज्ञ शुरू करे ,पाखंड से दूर रहे और देश हित में ,जनहित में इनकी पोल खोलें।

गंडा ताबीज की वास्तविकता और प्रचलित पाखण्ड

पौराणिक मान्यता: अच्छे, शुभ गंडे-ताबीज असरदायक होते हैं। गंडा बांधना या गले में ताबीज पहनने से सभी तरह की बाधाओं से बचा जा सकता है। किसी की बुरी नजर से बचने, भूत-प्रेत या मन के भय को दूर करने या किसी भी तरह के संकट से बचने के लिए गंडा-ताबीज का उपयोग किया जाता है। गंडा एवं ताबीज किसी भी बच्चे के एवं वयस्क के गले में देखा जा सकता है। जिसके पीछे उद्देश्य भूत-प्रेत एवं बीमारियां से छुटकारा पाने के लिए तांत्रिक बताते रहते है और अन्धविश्वास के कारण हम लोग इस कुरीति का शिकार होते है।

विश्लेषण: आपको ये जानकार हैरानी होगी की गंडे-ताबीज का व्यवसाय अधिकतर मुल्ले -मौलवी करते है। जो बिलकुल अनपढ़ और अज्ञान का प्रतीक है। वास्तविकता ये है की जैसा आप जानते हैं की वेद ज्ञान के माध्यम से हमारे देश में आयुर्वेद को महत्ता मिली और वनस्पति विज्ञान को हमारे पूर्वजों , ऋषियों ने समझा । और वनस्पति विज्ञान के द्वारा मानव की चिकित्सा तरह तरह से की जाने लगी। वनस्पति द्वारा तरह -तरह की चिकित्सा का विधान है जैसे रस चिकित्सा, धूम्र चिकित्सा, नस्य चिकित्सा ,चूर्ण द्वारा चिकित्सा आदि। इनमे एक चिकित्सा किसी वृक्ष के उत्पाद को शरीर के किसी अंग से बांधकर रोग की चिकित्सा करना भी है।
प्रश्न उठता है की क्या किसी ने गंडा ताबीज की वास्तविकता का वैज्ञानिक अध्ययन किया ? तो उत्तर मिलेगा नहीं। इस विषय में हमने आयुर्वेद की गहराई से अध्यन करने की कोशिश की तो मालूम हुआ की गंडा एवं ताबीज के पीछे आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का योगदान है परन्तु समय के साथ यह चीजे भुला दी गयी है और पखान दने अपना रूप ले लिया।
इस विषय में विवरण इस प्रकार है –
१ 5 ग्राम हींग का ताबीज कपडे में बांधकर गले में लटकाकर मिर्गी में लाभ होता है।
२ रेशम के धागे में 21 जायफल की माला पहनने से मिर्गी में लाभ होता है।
३ तांबे के तार में रुद्राक्ष की माला पहनने से शारारिक शक्ति का विकास होता है तथा हैजा जैसी बीमारी दूर होती है।
4अपामार्ग की छोटी छोटी डांडिया तोड़कर ताबीज बना लंे और उसे बाजु में बांध ले इससे गर्वपात रोकने में लाभ होता है।
५ पीलिया के इलाज में गिलोय का माला बनाकर रोगी को पहनने से लाभ होता है। जैसे जैसे माला सूखती है वैसे वैसे पीलिया ( कमला ) भी ठीक होते रहेगी।
६ पीठ दर्द (सरवाइकल) में ‘पाकर’ नामक वृक्ष की फली (लगभग आधा इंच की) माला में लाभकारी है।

५ झाड़ फूक द्वारा इलाज : मुख्य रूप से इस्लाम अंधविश्वास का जनक है क्योकि इस्लाम में भूत ,प्रेत ,जिन्न और फरिश्ते आदि के नाम पर अनुयायी मनोरोगी होकर पूरी जिंदगी ऐसी दशहत में निकाल देते है की जिन्न लानत भेजेंगे और दोजख का ईधन बनना पड़ेगा। जब ये दर उग्र रूप ले लेता है तो ऐसे दूर करने के लिए मौलवी का सहारा लिया जाता है जो ,जादू टोना ताबीज द्वारा जिन्नात को भगाने का ड्रामा करता है।
इसी प्रकार ईसाई लोग चंगाई सभा के माध्यम से धर्मांतरण ईसाई धर्म के प्रचार और प्रसार करते है। ये लोग भी जादू टोने से गंभीर से गंभीर रोग ठीक करने का दावा करते है। हालांकि इस तरह के ठगने के कार्य हिन्दू धर्म में भी किए जाते हैं। ‘चंगाई’ में ईसाई पादरी और सिस्टर्स गरीबों और मरीजों को इकट्ठा करते हैं। नेटवर्किंग की तरह यह कार्य होता है और फिर वे ईश्‍वर की प्रार्थना और सम्मोहन की आड़ में लोगों को ठीक करने का दावा करते हैं। गरीब, भोली या मूर्ख हिन्दू जनता इनके छलावे में आ जाती है।
उसमें से कई तो मनोवैज्ञानिक खेल के प्रभाव में आकर फौरी तौर पर ठीक होने का दावा करते हैं, लेकिन बाद में वे फिर से ‍वैसे ही बीमार हो जाते हैं। चंगाई सभा की भीड़ में अंतत: धर्मांतरण का खेल खेला जाता है। ये चंगाई सभा अधिकतर आदिवासी, ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में होती है। हालांकि अब तो टीवी चैनलों पर इसका जोर-शोर से प्रचार भी किया जाने लगा है।
वास्तविक सच ये है की कुछ लोग प्राचीन चिकित्सा विज्ञानं के जानकार थे जो पीढ़ी दर पीढ़ी जड़ी बूटियों द्वारा ,मर्म चिकित्सा द्वारा आसानी से इलाज करते आये है लेकिन अपना फार्मूला किसी को नहीं देते थे और चुपचाप इलाज के साथ साथ झाड़-फूंक का नाटक करके रोगी को ठीक करते थे। रोगी को ये लगता था की वह झाड़ फूक से ही ठीक हुआ है।
ऐसे लोगो को समाज में ओझा कहा जाता था जो किसी बीमारी का इलाज करने, नजर उतारने या सांप के काटे का जहर उतारने का कार्य करते थे। यह कार्य हर धर्म में किसी न किसी रूप में आज भी पाया जाता है।

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