अब देश के विपक्ष को समझना होगा कि हिंदू विरोध की राजनीति के दिन लद चुके हैं

संतोष पाठक

विपक्षी दलों का जब इंडिया गठबंधन बना तो ऐसी खबरें भी आई कि उसमें मोटे तौर पर यह सहमति बनी है कि देश के बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदुओं की भावना को आहत करने से बचना है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत रूप से कोई हमला नहीं करना है।
एक बहुत ही मशहूर कहावत है कि बद से बदनाम बुरा यानी आप बुरे हैं, इस बात से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर आप बदनाम हो जाते हैं तो इसका असर सबसे ज्यादा पड़ता है। इस कहावत के संदर्भ में 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा हार के कारणों का पता लगाने के लिए गठित की गई एके एंटनी कमेटी की रिपोर्ट को याद कीजिए।

एके एंटनी की कमेटी ने उस समय हार के कारणों की तह में जाते हुए कांग्रेस आलाकमान को यह साफ-साफ बता दिया था कि कांग्रेस के लोक सभा में 44 सीटों पर सिमट जाने का सबसे बड़ा कारण यह रहा है कि कांग्रेस पार्टी पर मुसलमानों की पार्टी होने का आरोप चस्पा हो गया क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति ने कांग्रेस की इस तरह की छवि बना दी और धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता की लड़ाई में कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ा।

उस समय कांग्रेस आलाकमान ने इस रिपोर्ट को न केवल पढ़ा, बल्कि समझ कर अपनाने की कोशिश भी की। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा देश के मंदिरों में जाकर पूजा करते नजर आने लगे। सबसे खास बात यह रही कि सैफई, मैनपुरी और इटावा बेल्ट को छोड़कर प्रदेश के अन्य इलाकों में यादव वोटरों के छिटकने के बाद अखिलेश यादव को भी समझ आया कि पार्टी की छवि बदलने की जरूरत है। इसके बाद अखिलेश यादव भी माता की चौकी और नवरात्रि में कन्याओं को खिलाने एवं उनकी पूजा करने की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर करते नजर आने लगे। मंदिरों में पूजा-पाठ करने की उनकी तस्वीरें भी नजर आने लगी और सबसे खास बात यह रही है कि रमज़ान के महीने में टोपियां पहनकर इफ्तार के दावत देने वाले नेताओं की संख्या में भी कमी दिखाई दी।

विपक्षी दलों का जब इंडिया गठबंधन बना तो ऐसी खबरें भी आई कि उसमें मोटे तौर पर यह सहमति बनी है कि देश के बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदुओं की भावना को आहत करने से बचना है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत रूप से कोई हमला नहीं करना है और गठबंधन को मोटे तौर पर गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, संविधान की सुरक्षा, चीन के सामने सरेंडर और कुछ हद तक घोटालों को लेकर ही मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर हमला बोलना है।

लेकिन तमिलनाडु सरकार के खेल एवं युवा मामलों के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर ऐसा खेला कर दिया जो इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ता नजर आ रहा है क्योंकि उदयनिधि स्टालिन सिर्फ एक मंत्री भर नहीं है बल्कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और डीएमके के भविष्य के चेहरे हैं। यही वजह है कि उनके बयान को लेकर जैसे ही भाजपा ने डीएमके के साथ-साथ राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव सहित विपक्षी नेताओं को घेरना शुरू कर दिया, वैसे ही इंडिया गठबंधन इस पूरे मामले में बैकफुट पर आ गया। यहां तक कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उदयनिधि स्टालिन के बयान से किनारा करती नजर आई। अब यह भी खबर सामने आ रही है कि इंडिया गठबंधन की अगली बैठक में डीएमके नेता को इस तरह का बयान देने से बचने की नसीहत भी दी जा सकती है।

दरअसल, विपक्षी दलों को अब यह समझ तो आ गया है कि वे न तो भाजपा के हिंदुत्व के पिच पर जाकर उसे हरा सकते हैं और न ही हिंदुत्व के बाहर जाकर मात दे सकते हैं क्योंकि छवि और परसेप्शन के खेल में भाजपा हमेशा उन पर भारी ही पड़ेगी। यही वजह है कि वो मुद्दों पर ज्यादा फोकस करना चाहते हैं लेकिन फिर भी कभी सनातन धर्म के विवाद में फंस कर रह जाते हैं तो कभी इंडिया बनाम भारत के विवाद में उलझ कर रह जाते हैं। लेकिन अब राजनीतिक हकीकत तो यही है कि देश में हिंदू विरोधी राजनीति करने का जमाना अब बीत गया है। विपक्षी दल भले ही ओबीसी जाति की जनगणना के मुद्दे के सहारे मंडल राजनीति के पुराने दौर को वापस लाने का सपना देख रहे हो लेकिन कड़वी हकीकत तो यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमंडल की राजनीति में राम मंदिर निर्माण, तीन तलाक की समाप्ति, देश के 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज, चंद्रयान, जी-20 शिखर सम्मेलन और भारत जैसे मुद्दों का ऐसा तड़का लगा दिया है जिससे पार पाने के लिए विपक्षी दलों को अभी काफी कुछ करना पड़ेगा।

Comment: