• Dr D K Garg

हिंदू धर्म में ईश्वर को सर्वव्यापी मानते हैं लेकिन इस मान्यता के विपरीत ईश्वर को अलग अलग रूपों में भी माना लिया और सत्य सिद्ध करने के लिया कहानी व्यहु की रचना भी कर दी , इस कारण हिंदु धर्म की मान्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वावाभिक हैं। दुखद पहलू ये की शिक्षित लोग भी इसी भ्रम को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं।एक आयकर कमिश्नर ने मुझे मेरी परेशानी का हल ये बताया कि आप ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ जाकर मन्नत मांगो ,परेशानी स्वयं खत्म हो जायेगी।
इस प्रकार के विश्वास के कारण हमारे देश में पाषाण देवताओं की करोड़ों प्रतिमा है जिनको भोग लगाना,आरती उतारना और उनसे आशीर्वाद लेना चला आया है और यज्ञ और सत्कर्म की शिक्षा विलय हो रही है ,चारो तरफ रिश्वरखोरी , भीतरघात,हिंसा का माहोल है और कर्म फल पर किसी का ध्यान नही ।

देश में जगह जगह कोई न कोई कुलदेवी,शक्तिपीठ, ज्योतिर्लिंग आदि इसके उदाहरण है। यहां हम शक्तिपीठ पूजा के विषय में विष्लेषण करते हैं।
पौराणिक मान्यता ; शक्ति पीठ मे देवी देवताओं का वास है, शक्तिपीठ, देवीपीठ या सिद्धपीठ से उन स्थानों का ज्ञान होता है, जहां शक्तिरूप देवी का निवास है।सती देवी के ५१ टुकड़े जहां गिरे थे वे शक्ति पीठ कहे जाते हैं।इनकी संख्या पुराणों के अनुसार अलग अलग है कहीं पर 51 तो किसी पुराण मे 52 शक्तिपीठों का वर्णन है सभी शक्तिपीठ, सिद्धपीठ है किंतु सभी सिद्धपीठ शक्तिपीठ नही कहीं जाती है.
क्योंकि सिद्ध पीठ को मठ के महंत द्वारा स्थापित किया जाता है. सभी कार्य मठाधीश की इच्छानुसार होते है. जहाँ पर देवी देवताओं की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा नही होती बल्कि मूर्तियां स्वयं प्रकट या स्वयं सिद्ध होती है जैसे सहारनपुर मे माता शाकम्भरी देवी का सिद्धपीठ है।

ये शक्तिपीठ मनुष्य को समस्त सौभाग्य देने वाले हैं।मनुष्यों के कल्याण के लिए जिस प्रकार भगवान शंकर विभिन्न तीर्थों में पाषाणलिंग रूप में आविर्भूत हुए, उसी प्रकार करुणामयी देवी भी भक्तों पर कृपा करने के लिए विभिन्न तीर्थों में पाषाणरूप से शक्तिपीठों के रूप में विराजमान हैं।
इन्ही शक्तितत्त्व के द्वारा ही यह समूचा ब्रह्माण्ड संचालित होता है। और शक्ति के अभाव में शिव में भी स्पन्दन सम्भव नहीं; क्योंकि शिव का रूप ही अर्धनारीश्वर है। अत: दुनिया का अस्तित्व सर्वाराध्या, सर्वमंगलकारिणी एवं अविनाशिनी शक्ति के कारण ही है।
शक्तिपीठ का वास्तविक अर्थ :
शक्ति पीठ शब्द का अर्थ है–शक्ति + पीठ
ये ठीक उसी तरह से है जैसे हिंदी भाषा के अन्य शब्द – विद्या + पीठ =विद्यापीठ
ज्ञान +पीठ :ज्ञानपीठ
न्यायालय के पीठ =न्याय पीठ
स्पष्ट है कि हिन्दी शब्द कोश में पीठ का मत किसी आधार या आसन विशेष से है।
उपरोक्त से स्पष्ट होता है की वह स्थान विशेष जहां विद्या दी जाती है उस स्थान को विद्यापीठ कह सकते है। भारत में बहुत से विद्यालय है जिनके नाम के साथ पीठ शब्द जुड़ा हुआ है। इसी तरह से ज्ञानपीठ पुरूस्कार दिया जाता है ।
अतः स्पष्ट है जहां शक्ति की यानी व्यायाम, पहलवानी, आदि की शिक्षा दी जाती है, ऐसे विद्यालय को शक्ति पीठ कह सकते है। अतीत में जब शत्रु के आक्रमणों के कारण यहां जब कभी संकट आए तो ऐसे बहुत से स्थानों का चयन किया गया होगा जहां लोगो को हथियार चलाने ,वीर बनाने ,शक्तिशाली बनाने का कार्य किया जाता हो ऐसे शक्ति स्थल को भाषा की दृष्टि से शक्तिपीठ कहना गलत नही होगा।
पौराणिक मान्यता का विश्लेषण :
प्रचलित मान्यता को हम यहाँ अर्थ के साथ फिर से लिख रहे है
“-शक्तितत्त्व के द्वारा यानि ईश्वर के द्वारा ही यह समूचा ब्रह्माण्ड संचालित होता है। शक्ति के अभाव में शिव में भी स्पन्दन सम्भव नहीं है क्योंकि शिव का रूप ही अर्धनारीश्वर है। अत: दुनिया का अस्तित्व सर्वाराध्या, सर्वमंगलकारिणी एवं अविनाशिनी शक्ति के कारण ही है।”

आध्यात्मिक दृष्टि से शक्ति का अर्थ क्या है?
– (शक्लृ शक्तौ) इस धातु से ‘शक्ति’ शब्द बनता है। ‘यः सर्वं जगत् कर्तुं शक्नोति स शक्तिः’ जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शक्ति’ है।

और शिव का ?

शिवु कल्याणे इस धातु से ‘शिव’ शब्द सिद्ध होता है। ‘बहुलमेतन्निदर्शनम्।’ इससे शिवु धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शिव’ है। ये सौ नाम परमेश्वर के लिखे हैं। परन्तु इन से भिन्न परमात्मा के असंख्य नाम हैं। क्योंकि जैसे परमेश्वर के अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव हैं, वैसे उस के अनन्त नाम भी हैं। उनमें से प्रत्येक गुण, कर्म और स्वभाव का एक-एक नाम है।

अर्धनारीश्वर का भावार्थ;

ईश्वर सर्वशक्तिशाली है और उसने इस सृस्टि को भी शक्तिशाली बनाया है तभी इस जड़ रुपी वायु ,पृथ्वी, सूर्य ,अग्नि में चेतना है क्योंकि ईश्वर ने ही दिन और रात ,सुबह शाम, पुरुष और स्त्री आदि बनाये जिस कारण ईश्वर शिव को एक अन्य कल्पना के अंतर्गत अर्धनारीश्वर भी कहा गया है।

इस अमूल्य श्रृष्टि का रचियता ,इसको चलाने सभी जीवो का अस्तित्व सर्वाराध्या, सर्वमंगलकारिणी एवं अविनाशिनी ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्ति के कारण ही है।और मनुष्य का कर्तव्य है कि इस सृष्टि के चलाने के लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्ति को ग्रहण करके शक्तिशाली बने।
सारांश= शक्ति पीठ के विषय में जो उपरोक्त विश्लेष्ण दिया है उस पर विचार किया जाए ये कोई अलग से नया ईश्वर पैदा नहीं हुआ है।ईश्वर शक्तिशाली तो हैं लेकिन ये भी ध्यान रखे की शक्तिशाली होने का मतलब ये नही कि ईश्वर अपने जैसे कई और ईश्वर पैदा कर दे ,ईश्वर एक है और एक ही रहेगा।
इन प्रचलित मान्यताओं का कोई समय ,तिथि ,प्रमाण नही है । यदि इस तरह पूजा से काम बन जाये तो इन पीठ के आसपास भीख मांगने वाले क्यों है? पुजारी दक्षिणा और भक्तो को बेवकूफ बनाकर जबरन लिए दान से घर का गुजारा करते है ,बीमार होने पर अस्पताल जाते है और न्याय के लिए न्यायालय जाते है ,चोर से बचने के लिए ताला और चौकीदार का प्रयोग करते हैं।

यो मिमीते मानयति सर्वाञ्जीवान् स माता

जैसे पूर्णकृपायुक्त जननी अपने सन्तानों का सुख और उन्नति चाहती है, वैसे परमेश्वर भी सब जीवों की बढ़ती चाहता है, इस से परमेश्वर का नाम ‘माता’ है।
जितने ‘देव’ शब्द के अर्थ लिखे हैं उतने ही ‘देवी’ शब्द के भी हैं। परमेश्वर के तीनों लिंगों में नाम हैं। जैसे-‘ब्रह्म चितिरीश्वरश्चेति’। जब ईश्वर का विशेषण होगा तब ‘देव’ जब चिति का होगा तब ‘देवी’, इससे ईश्वर का नाम ‘देवी’ है।
शक्लृ शक्तौ – इस धातु से ‘शक्ति’ शब्द बनता है। ‘यः सर्वं जगत् कर्तुं शक्नोति स शक्तिः’ जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शक्ति’ है।ईश्वर सर्वज्ञ है , सिर्फ एक स्थान पर स्वीकार करना अज्ञानता है। ईश्वर की कोई मूर्ति नही बनायीं जा सकती है और ना ही पाषाण में, कागज में,तस्वीर में प्राण प्रतिष्ठा कर सकता है ,ना ही भोग लगा सकता है और ये मूर्तियां ,तस्वीर आशीर्वाद भी नही से सकती।
यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति।
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम:।।-अथर्ववेद 10-8-1

भावार्थ : जो भूत, भविष्य और सबमें व्यापक है, जो दिव्यलोक का भी अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है। वहीं हम सब के लिए प्रार्थनीय और वही हम सबके लिए पूज्जनीय है।
अन्धन्तम: प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते
ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या-रता:।। -(यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9)
अर्थात : जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं, वे लोग घोर अंधकार को प्राप्त होते हैं।
जो जन परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य की उपासना करता है वह विद्वानों की दृष्टि में पशु ही है। – (शतपथ ब्राह्मण 14/4/2/22)
कृपया इधर उधर न भटके ,कर्म पर विश्वास करें।
अच्छे कर्म करते रहे आपकी पीठ शक्तिवान जरूर होगी, अच्छे परिणाम मिलेंगे जरूर,आज नही तो कल। श्रृष्टि का चक्र ईश्वर के नियम से होता है,किसी अन्धविश्वास से दूर रहें।

Comment: