दुआ ,प्रार्थना और आशीर्वाद -का वैदिक आधार*

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Dr D K Garg

आजकल मजारो पर दुआ करने और कराने ,बाबाओ से आशीर्वाद लेने ,चर्च में प्रेयर,पादरी के सामने कन्फेशन,ऊपर वाले से गलतियां माफ़ करने की दुआ , साई बाबा की मूर्ति से आशीर्वाद और दुनिया में अनेकों ऐसे मंदिर है ,दरगाह,चर्च है जिनकी मान्यता भरपूर है ,वहा मूर्ति के दर्शन करने वाले को तुरंत आशीर्वाद मिलता है ,बिगड़े काम बन जाते है और मुश्किल काम चुटकियों में हो जाते है ।”….., कोढ़ी को काया , बाँझ को पुत्र देवे ,निर्धन को माया ,,
सिर्फ दर्शन से ,पैसा चढ़ाने से बिगड़े काम बन जाये , पाप माफ हो और दुआ कबूल हो कितना बड़ा झूट और अंधविश्वास है.दिखने और पढ़ने में साधारण सा विषय है लेकिन हैं बहुत गंभीर इस पर खुले दिमाक से विचार करते हैं।
दुरुपयोग इसका मुख्य कारण पौराणिक कथाएं है ,पुराणों तो अनगिनत आशीर्वाद , श्राप और वरदान की कथाओं से भरे पड़े है की शिव ने आशीर्वाद दिया तो रक्तबीज आतंक का कारण बना, महिषासुर की कथा और तो और रामायण वा महाभारत में भी इसका सहारा लेकर मिलावट की गई है।पौराणिक साहित्य में इतनी गप्प कथाएं है जिनका उल्लेख करना मुश्किल है। कही कही तो आशीर्वाद देने की दुकानें खुल गयी है ,जाओ ,दर्शन करो ,पैसा दो और आशीर्वाद लो।
ढोंगी बाबाओं की बल्ले
इस अज्ञानता का लाभ ढोंगी बाबाओं ने उठाया और इसके आगे आगे अनेकों कथावाचक चल पड़े है बाकी उनको कुछ ज्ञान हो या ना हो परंतु आशीर्वाद की दुकान फल फूल रही है। इनमे जैन मुनि भी अव्वल दर्जे पर है जिनके दर्शन मात्र से पाप दूर होते है और इन्हें का रूप स्वीकार कर लेने में संकोच नहीं क्योंकि ये तपस्वी कहलाते है. तपस्वी इस तरह की ये लंबे समय तक भूखे रहने का रिकॉर्ड बनाने में माहिर है,इसके बाद” जय 1008 महाराज जी”
अधिकांश बाबा अपनी तस्वीर भक्तों को देते है जिसने उन्होंने एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा स्थाई रूप से उठाया हुआ है चाहे रामपाल हो, साई हो ,सतपाल महाराज,आशाराम,निरंकारी बाबा ,रविशंकर आदि हजारों है।

विश्लेषणआशीर्वाद से मुक्ति का भ्रम एक प्रकार का मनोरोग है की तस्वीर को नमन किया और आशीर्वाद मिल गया ,पाप माफ हो गए. इसका कारण बाबाओं की जबरदस्त मार्केटिंग है की बाबा हनुमान का ,राम जा ,शिव का अवतार है ,दूत है .एक बात और है की तीन ने मन्नत मांगी और उसके प्रयास से या किसी भी अन्य कारण काम हो गया तो वो प्रचार में जुट गया। प्रसिद्ध गायक के आर रहमान भीं हिंदू से मुस्लिम इसी अंधविश्वास के कारण बना। मेरा एक मित्र बृहस्पतिवार को कोर्ट केस जीता तो वो बोला की साई की कृपा से जीता हूं, उसने ये नही बताया कि अन्य दस केस हार गया तब उसका साई क्या कर रहा था?
नियम -ये विश्वास प्रकृति और ईश्वरीय नियम की विरुद्ध है ,जो जैसा करेगा वैसा भुगतेगा ।कर्म फल पर विश्वास जरूरी है।
आशीर्वाद -‘आशीर्वाद और वरदान ‘‘ ये दोनों शब्दों का अर्थ एक जैसा ही है। इनका अर्थ है, ‘उत्साह बढ़ाने वाले वचन‘ जो वचन आशीर्वाद में बोले जाते हैं, उनसे व्यक्ति का उत्साह बहुत बढ़ता है और उससे आशीर्वाद प्राप्त करने वाला शीघ्र ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।‘‘
आशीर्वाद देने वाला व्यक्ति कौन हो सकता है?
‘‘जीवित माता पिता गुरु आचार्य कोई वैदिक, विद्वान, संन्यासी अथवा समाज में कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति, जिसमें कुछ विशेष योग्यता हो, विशेष गुण हों, कोई विशेष कला हो, ऐसा व्यक्ति आशीर्वाद देने का अधिकारी होता है।‘‘
आशीर्वाद देना ,शुभ इच्छा व्यक्त करना ठीक है ,ये मानव का स्वभाव है और दूसरे को उत्साहित करने के लिए पुरस्कार है
मनुस्मृति में लिखा हैः-अभिवादन शीलस्य नित्य वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयु र्विद्या यशो बलम।।
हिंदी अर्थ-जो व्यक्ति सुशील और विनम्र होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करने वाले होते हैं। उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल इन चारों में वृद्धि होती है।
जब माता-पिता ,बुजुर्ग,बड़े आशीर्वाद देते हैं कि बड़ी उम्र वाले हो, खूब फलों-फूलो, आगे बढ़ो, उन्नाति करो, सुखी रहो। ऐसा वरदान ठीक है।
आशीर्वाद लेने वाले की भी पात्रता होनी चाहिए –ऐसा अधिकारी व्यक्ति, जब किसी को आशीर्वाद देता है, तो उस व्यक्ति में आशीर्वाद लेने की पात्रता भी होनी चाहिए। योग्य पात्रों को ही आशीर्वाद दिया जाना चाहिए, अयोग्य व्यक्तियों को नहीं।
प्रश्न-योग्य व्यक्ति की क्या परिभाषा है, जिसे आशीर्वाद का पात्र माना जाए?
उतर-जो धर्मानुसार ,सदाचारी आचरण करता है।जिसकी मान्यता या सिद्धांत धर्मानुकूल हो,ऋषियों के अनुकूल हो ,जिसमें सभ्यता, नम्रता, सेवा, परोपकार, दान, दया, बड़ों का आदर सम्मान करने की भावना, प्राणियों की रक्षा, ईश्वर भक्ति, रोगियों गरीबों विकलांगों पर दया भाव इत्यादि गुण हों। ऐसा व्यक्ति आशीर्वाद प्राप्त करने का पात्र माना जाता है, ऐसे व्यक्ति को आशीर्वाद दिया जाना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को आशीर्वाद नहीं देना चाहिए -जो स्वार्थी हो, कर्म में विश्वास नहीं करता हो,बिना कर्म के आशीर्वाद की इच्छा रखता हो।ईश्वर भी ऐसे व्यक्ति को आशीर्वाद नहीं देता, बल्कि दंड देता है।
सारांश-आशीर्वाद के नाम से दूसरों को भावनाओ से खेलना एक अध्यात्मिक अपराध है जिसका ईश्वर दंड देगा ,दंड के पात्र दोनो है आशीर्वाद देने वाला और लेने वाला भी।
2 आशीर्वाद , दुआ और प्रार्थना से ईश्वर के दंड ,न्याय पर कोई असर नहीं होता ,ये ध्यान रखें।
३ .लेकिन एक लाभ होता है की दुखी व्यक्ति आगे से गलत काम नहीं करने का संकल्प लेना सुरु कर देता है। ईश्वर उसको सद्बुद्धि की तरफ अग्रसर करता है।

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