अमरनाथ हमले का दुखद राजनीतिकरण

राष्ट्र भयाक्रांत दिख रहा है जो स्वाभाविक है, क्योंकि श्रद्धालु धार्मिक विश्वास की यात्रा पर थे। इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। जैसे-जैसे दिन गुजरे, दुर्भाग्य से पूरे धारावाहिक का राजनीतिकरण हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लग रहे हैं। आरोप है कि उसे इस बात की कोई चिंता नहीं है कि राज्य के शासन में उसकी हिस्सेदारी है और उसकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। 
जब आतंकी सामने से वार करते हैं, तो इसका मतलब है कि वे परिणामों को लेकर भयभीत नहीं हैं। कश्मीर में अमरनाथ यात्रा से लौट रहे सात श्रद्धालुओं को मारने के लिए हुए हमले की कहानी कुछ ऐसी ही है। लश्कर-ए-तोएबा को पुलिस या सेना पर हमला करते हुए हिचकिचाहट नहीं हुई, क्योंकि आतंकवादी जानते थे कि यात्रा को सुरक्षा दे रहे बलों को क्षति पहुंचाने के उनके संकल्प के आगे हमला छोटी सी बात है। लश्कर संभाव्य हमलावर हो सकता है, विशेषकर उस स्थिति में जबकि उसने अभी तक जिम्मेदारी नहीं ली है। यहां तक कि अगर वह जिम्मेदारी लेता है, तो भी यह निश्चित नहीं कि वह ऐसा स्थानीय आतंकवादियों को संरक्षित करने के लिए कर रहा है। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लश्कर पर अंगुली उठाई है। यह बिलकुल संभव है कि लश्कर इस हमले का सूत्रधार हो। पश्चिम एशिया के अधिकतर देशों में समझा जा रहा है कि लश्कर अपने आपको दोबारा स्थापित करना चाहता है। अगर यह भारत को डरा पाया तो संभव है कि पश्चिम एशिया के देश इसके खौफ की जद में आ जाएंगे। राष्ट्र भयाक्रांत दिख रहा है जो स्वाभाविक है, क्योंकि श्रद्धालु धार्मिक विश्वास की यात्रा पर थे। इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। जैसे-जैसे दिन गुजरे, दुर्भाग्य से पूरे धारावाहिक का राजनीतिकरण हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लग रहे हैं। आरोप है कि उसे इस बात की कोई चिंता नहीं है कि राज्य के शासन में उसकी हिस्सेदारी है और उसकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। यह पहली बार नहीं हुआ है कि धार्मिक यात्रा पर निकले श्रद्धालुओं पर हमला हुआ हो। अगस्त, 2000 में आतंकवादियों ने 95 लोगों पर फायरिंग की थी, जिसमें 89 लोगों की मौत हो गई थी। पहली अगस्त की रात को शुरू हुए सिलसिलेवार हमले सुनियोजित माने गए थे। इससे अगले साल भी आतंकवादियों ने स्थानीय संगठन हिजबुल मुजाहिदीन की संघर्षविराम घोषणा का विरोध करते हुए पहलगाम में श्रद्धालुओं के आधार शिविर पर हमला किया था।
इस हमले में कुल 32 लोग मारे गए थे, जिनमें से 21 अमरनाथ यात्री थे। इसी तरह 20 जुलाई, 2001 की रात को एक आतंकवादी ने पहले एक कैंप पर दो ग्रेनेड फेंके तथा बाद में अमरनाथ के समीप गोलीबारी की। इसमें तीन महिला श्रद्धालुओं व दो पुलिस अधिकारियों समेत 13 लोग मारे गए थे। यह हमला शेषनाग के समीप रात को एक बजकर 25 मिनट पर हुआ। शेषनाग अमरनाथ गुफा के लिए जाते रास्ते पर सबसे ऊंचे पड़ावों में से एक है। चिंताजनक यह है कि वर्ष 2002 में अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा के लिए करीब 15,000 सुरक्षा कर्मी व पुलिस वाले तैनात थे, फिर भी आतंकवादी हमले को रोका नहीं जा सका और इसमें आठ लोग मारे गए व 30 घायल हो गए। यह हमला अमरनाथ को जाते रास्ते पर स्थित नूनवान शिविर पर हुआ था। ताजा हमले की बात करें तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार को घेरते हुए कहा है कि इस तरह की सुरक्षा चूक स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जिम्मेदारी लेने को कहा है। राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में कहा, ‘यह सुरक्षा चूक स्वीकार्य नहीं है, प्रधानमंत्री को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इस तरह के हमले दोबारा नहीं होने चाहिएंज्ये कायराना आतंकवादी भारत को भयभीत नहीं कर सकते।’ उधर कांग्रेस के मुख्य वक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि जिस बस पर आतंकवादियों ने गोलियां चलाईं, वह अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पास पंजीकृत नहीं थी। यह बस अमरनाथ यात्रियों को ले जाने वाले वाहनों के लिए निर्धारित सांध्य समय सीमा के देर बाद तक बिना सुरक्षा घेरे के चल रही थी। इस हमले में पाकिस्तान संलिप्त हो सकता है, लेकिन यह अभी तक मात्र संदेह है।
सरकार को देश के सामने पाकिस्तान की संलिप्तता के सबूत रखने चाहिए। लेकिन हमें अपने घर को अनिवार्य रूप से साफ करना होगा। कई संगठन हिंदू आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। जैसा कि हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि अगर आप अपने आंगन में सांप पालते हैं, तो वे एक दिन आपको भी काट सकते हैं। देशी आतंकवादी अब एक सच्चाई हैं और वे इधर या उधर हमला करते हैं। समझौता एक्सपे्रस पर हमला देशी आतंकवादियों का कारनामा माना जाता है। अमरनाथ यात्रा की सबसे बड़ी क्षति कश्मीरियत को हुई है। इस पंथनिरपेक्षता के भाव अथवा विश्वास को सूफियों ने प्रगाढ़ किया था। इस भाव को महाराजा हरि सिंह ने सरकार से बाहर आकर तथा इस प्रश्न को लोकप्रिय नेता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला पर छोडक़र पुख्ता किया था। उस समय कोई सांप्रदायिक भावनाएं नहीं थीं। कट्टरवादियों तथा पाकिस्तान के दुष्प्रचार ने वह सब कुछ नष्ट कर दिया, जो इतना खूबसूरत था। लेकिन दूसरों पर दोष लगाने से काम चलने वाला नहीं है। हम पिछले 70 वर्षों से भारत को पंथनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक देश के रूप में मजबूत बना रहे हैं।
हमने संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द को शामिल किया है। यह इंदिरा गांधी ने उस समय किया, जब प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने आपातकाल लगा दिया था। उन्होंने एक लाख लोगों को मुकदमा चलाए बिना जेल में ठूंस दिया था और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी थी। उन्होंने खुले रूप में कहा था कि जो पाबंदियां लगाई गई हैं, उनका प्रेस ने विरोध नहीं किया है। आपातकाल के बाद लालकृष्ण आडवाणी प्रेस को यह कहते हुए बिलकुल ठीक थे, ‘आपको झुकने के लिए कहा गया, लेकिन आपने दृढ़ता के साथ खड़े होना शुरू कर दिया।’
जिस तरह स्वतंत्र प्रेस का सम्मान होता है, उसी तरह कश्मीरियत के भाव का भी सम्मान होना चाहिए। कश्मीरी मुसलमानों, जबकि साथ-साथ के भाव की जगह कट्टरवाद ले रहा है, को अपना भाग्य खुद तय करना है। हाल में मैं श्रीनगर गया था। मैं यह सुनकर चिंतित हो गया कि जिन युवाओं ने कश्मीर में हथियार उठा लिए हैं, वे घाटी को पंथनिरपेक्ष इस्लामी देश के रूप में परिवर्तित करना चाहते हैं। यासिन मलिक व शब्बीर शाह जैसे नेता अप्रासंगिक हो गए हैं।
सैयद शाह गिलानी व मीरवाइज के कुछ समर्थक दिखते हैं, परंतु यह इस कारण है कि वे एक ही समय में पाकिस्तान व इस्लाम की बात करते हैं। वे पत्थरबाजों का भी यह कहते हुए समर्थन करते हैं कि ये पत्थर इस्लाम के नाम पर फेंके जा रहे हैं। उभर रही यह प्रवृत्ति खतरनाक है। नई दिल्ली को कुछ ठोस सोचना होगा और एक ऐसा समाधान निकालना होगा, जो घाटी के लोगों व केंद्र में सत्तासीन पार्टी दोनों को स्वीकार्य हो। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बिना किसी हादसे के अमरनाथ यात्रा का प्रबंध करने की जिम्मेदारी ली है। भाजपा को अन्य राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करना चाहिए तथा ऐसे कदम उठाने चाहिएं, जिनके पक्ष में जन सहमति हो।

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