तपेदिक के ताप से, आज भी तप रहा है भारत* (भाग१)

आर्य सागर खारी🖋️

तपेदिक अर्थात ट्यूबरक्लोसिस संक्षिप्त में कहे टीबी के रोग को कौन नहीं जानता… सृष्टि के आदि से यह रोग मानव जीवन को लील रहा है…. और आज 21वीं सदी में भी संक्रमक रोगों के मामले में यह चुनौती बना हुआ है… एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण 4 लाइन ट्रीटमेंट भी इस पर असरहीन हो रहा है। इस रोग के इतिहास की बात करें तो चरक व सुश्रुत आदि संहिता में ‘राजयक्ष्मा’ के नाम से इसका उल्लेख मिलता है। चंद्रमा नाम के राजा को यह रोग प्रथम हुआ चरक संहिता में यही इस रोग का इतिहास मिलता है ,अश्विनी- कुमारों ने उसे स्वस्थ कर दिया। राजा को होने के कारण इसका नाम राजयक्ष्मा पड़ गया…. इतना ही नहीं महर्षि वाग्भट ने एक कदम बढ़ कर इसे सब रोगों का राजा माना है,अपने ग्रन्थ अष्टांग हृदय में। महर्षि चरक आदि या अन्य आयुर्वेद के ऋषियो ने भी इस रोग को हल्के में नहीं लिया महर्षि चरक ने तो चरक संहिता में श्वसन मार्ग से जुड़े कांस रोगों के अध्याय में इसका वर्णन ना कर स्वतंत्र ‘राजयक्ष्मा अध्याय’ में इसका विस्तृत वर्णन किया है। यह रोग शरीर की रस रक्त आदि धातुओं को क्षीण करता है तो इसका एक नाम ‘क्षय रोग’ पड़ गया। आज यह अधिकारिक हिंदी नाम है इस रोग का।

यूरोप अमेरिका के ज्ञात इतिहास से लेकर आधी बीसवीं सदी तक अकेले यह रोग यूरोप अमेरिका में संक्रामक रोगों से हुई 4 में से 1 मौत के लिए जिम्मेदार था। सफेद प्लेग इसे कहा जाता था…. क्योंकि इससे ग्रसित व्यक्ति का चेहरा कुपोषण के कारण सफेद निस्तेज हो जाता था ।यूरोप अमेरिका के आम जनों को ही नहीं चोटी के शीर्ष कवि साहित्यकारों दार्शनिकों वैज्ञानिकों राजवंशों के उत्तराधिकारीयो को भी इस रोग ने अपना शिकार बनाकर उनके जीवन को लील लिया । जॉन कीट ,हेनरी थोरो,दार्शनिक काफा, सेल्सियस, नेपोलियन द्वितीय, एडविन श्रोडिंगर क्वांटम भौतिकी शास्त्री जैसे नाम इसमें शामिल है।

बीसवीं सदी में इस रोग की भयावहता की बात करें तो अपनी भारतवर्ष की बेहद अमूल्य प्रतिभाओं को बहुत ही कम आयु में तपेदिक लील गया। महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के नाम को कौन भारतीय नहीं जानता । जिनके संख्या सिद्धांत पर अध्ययन को लेकर कहा जाता था वह दुनिया का एकमात्र व्यक्ति है जिसने गणित के क्षेत्र में अनंता को समझ लिया था 3000 से अधिक मौलिक गणित की प्रमेय उन्होंने रची … जो आज चिकित्सा विज्ञान से लेकर इंजीनियरिंग स्पेस साइंस में काम आ रही है…. महज 33 वर्ष की आयु में तपेदिक ने उनके जीवन को खत्म कर दिया सुनहरा शुद्ध गणित संख्या सिद्धांत का अध्याय भी उनके जीवन के साथ बंद हो गया। कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद और हिंदी पद्य/ पत्रकारिता के संस्थापक माने जाने वाले में माने जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र को कौन साहित्य प्रेमी नहीं जानता वह भी केवल 35 वर्ष ही जी पाये उन्हें भी तपेदिक ने लील लिया। महान दार्शनिक समाज महर्षि दयानंद के अनन्य शिष्य पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी जिन की लिखी पुस्तक आज भी ‘टर्मिनोलॉजी ऑफ वेदाज’ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जाती है वह महामानव भी 26 वर्ष की आयु में इसी रोग के कारण चल बसे…. भारत की पहली एलोपैथिक महिला चिकित्सक आनंदी जोशी 21 वर्ष की आयु में टीबी के कारण चल बसी। तपेदिक ने असंख्य के भारतीय प्रतिभाओं को ग्रहण लगा कर उन्हे कालकल्वित कर दिया यह सूची बहुत लंबी है…. क्रांतिकारियों का जिक्र ना करें तो यह उन वीरों के साथ अन्याय ही होगा। अंग्रेजों की यातना भोगते भोंगते कितने ही क्रांतिकारी कारावासो में तपेदिक का शिकार होकर या बाद में शिकार हुए मा भारती पर बलिदान हो गए।

शहीद-ए- आजम भगत सिंह के चाचा स्वर्ण सिंह भगत सिंह से भी कम आयु में आजादी की लड़ाई में अंधेरी यातना प्रद कारावास की कोठरी में तपेदिक का शिकार होकर अपने प्राण देश के लिए न्योछावर कर गए ।वहीं भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को कौन देश अभिमानी नागरिक नहीं जानता दीर्घ कारावासो के कारण तपेदिक से ग्रस्त होकर उन्होंने भी प्राण त्यागे फर्क सिर्फ इतना है उन्होंने आजादी का सूरज देख लिया था उनकी मृत्यु 1965 में हुई तपेदिक के शिकार क्रांतिकारियों की लंबी श्रंखला है। क्रांतिकारियों को तपेदिक पारितोषिक के रूप में उन्हें मिलती थी…. उन अलबेले वीरों के लिए ही मां भारती की सेवा का यह प्रतिफल था तिल तिल गुमनामी में जीर्ण ज्वर से तप कर अपना प्राणोत्सर्ग करना।

शेष क्रमशः …………………………………….!

आर्य सागर खारी✍

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