अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़े और भारत की अर्थव्यवस्था

भारत अपनी जीवंतता का परिचय देते हुए निरंतर ऊंचाई की ओर अग्रसर है। कई क्षेत्रों में इस समय भारत विश्वगुरु के अपने दायित्व का निर्वाह करता हुआ दिखाई दे रहा है। राजनीतिक क्षेत्र में जहां भारत की शक्ति को संसार के बड़े से बड़े देश ने पहचाना है, वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी भारत को एक अर्थ-शक्ति के रूप में मान्यता देता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जो जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में छाई मंदी के दौर में भी सबसे तेजी से आगे बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष अर्थात आईएमएफ की ओर से जारी इन आंकड़ों से हमारे परंपरागत शत्रु पाकिस्तान का जलना स्वाभाविक है। इसके साथ- साथ चीन भी भारत की इस प्रकार की आर्थिक समृद्धि का परंपरागत विरोधी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मानना है कि वर्ष 2023 में भारत की विकास दर 6.1 प्रतिशत के हिसाब से आगे बढ़ने की उम्मीद है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अतिरिक्त बी0बी0सी0 ने भी अब यह स्पष्ट घोषणा कर दी है कि भारत कोरोना संकट से उभर चुका है और उसने सफलतापूर्वक इस अंतरराष्ट्रीय महामारी पर विजय प्राप्त की है। आर्थिक क्षेत्र में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वर्ष 2021 में भारत की विकास दर 8.7 प्रतिशत थी, वहीं कोरोना काल के चलते वर्ष 2022 में इसमें कमी आई और यह अनुमान 6.8 प्रतिशत था। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय महामारी कोरोना से भारत भी प्रभावित हुआ, पर भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए इतनी शीघ्रता से इस महामारी पर विजय प्राप्त करना और संभल कर आगे बढ़ जाना सचमुच एक चमत्कार है। हमारे शत्रु और वैश्विक स्तर पर भी हमारे प्रतिस्पर्धी कई देश ऐसे थे जो कोरोना से यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि भारत इसमें भस्म हो जाएगा। यदि भारत आज एक समृद्ध, सफल और सबल राष्ट्र के साथ-साथ सक्षम राष्ट्र के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी धमक बना रहा है तो जहां इसके लिए हमारा वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व बधाई का पात्र है वहीं भारत के परिश्रमी, पुरुषार्थी और राष्ट्रभक्त लोग भी इसके लिए श्रेय और अभिनंदन के पात्र हैं। भारत का पुनरुज्जीवी पराक्रम इसका इतिहास गत मित्र है। जो इसे हर कठिन दौर से बाहर निकलने की प्रेरणा सदियों से देता आ रहा है। अपने उसी पराक्रम के आधार पर हम इस वैश्विक महामारी से बाहर निकलने में सफल हुए हैं। जहां वर्तमान नेतृत्व ने अपने राष्ट्रीय धर्म को पहचाना है वहीं जनता जनार्दन ने भी अपने राष्ट्रीय कर्तव्य धर्म को ईमानदारी से निभाकर सरकार का साथ देने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी है।
जहां भारत की विकास दर के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उपरोक्त आंकड़े उत्साहवर्धक हैं , वहीं हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पड़ोसी देश चीन की विकास दर वर्ष 2023 में 5.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने की आशा व्यक्त की गई है। चीन के लिए यह विकास दर सचमुच चिंता का विषय है। चीन के लिए यह तब और भी अधिक चिंता का कारण बन जाती है जब चीन सारे विश्व पर एकछत्र राज्य स्थापित करने के लिए अपनी विस्तारवादी नीतियों को गति देने के लिए लालायित दीख रहा हो। पर हम भारतवासियों का मानना रहता है कि जो दूसरे के लिए खोदता है वह स्वयं ही उस खोदे गए गड्ढे में गिरता है। चीन एक कलुषित मनोभावना का देश है। जो दूसरों की उन्नति को देखकर जलता है। इसका मार्क्सवाद या समाजवाद इसे केवल और केवल अपने लिए जीना सिखाता है। जबकि भारत दूसरों की उन्नति में अपनी उन्नति समझता है। यह बड़ी सहृदयता से दूसरों से सीखने का प्रयास करता है और बिना उसे चोट पहुंचाये आगे निकलने का मनोभाव भी रखता है।
इस प्रकार भारत जहां सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता है वहीं चीन जैसे देश नकारात्मक ऊर्जा व सोच के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं। परिणामस्वरूप भारत आगे बढ़ रहा है और चीन की चाल धीमी पड़ रही है।
अब यदि पाकिस्तान की बात करें तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार खस्ता हालत में जा रही है। वर्ष 2023 में इस देश की विकास दर मात्र 2 फीसदी के हिसाब से आगे बढ़ेगी। पाकिस्तान वही देश है जो कभी कहा करता था कि वह भूखा रहकर भी परमाणु बम बनाएगा। हम भारत के लोगों को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि पाकिस्तान ने अपने जन्म के समय ही यह नारा लगाया था कि ‘हंस के लिए पाकिस्तान, लड़के लेंगे हिंदुस्तान।’ इस नारे का अभिप्राय था कि पाकिस्तान पहले दिन से भारत को मिटाने के लिए कार्य करने लगा था। उसके राजनीतिक नेतृत्व ने जब उसे एक इस्लामिक देश के रूप में परिवर्तित किया तो उसका उद्देश्य यही था कि वह अपने आपको कैंप कार्यालय बनाकर भारत को इस्लाम के रंग में रंगेगा और हिंदुओं का विनाश कर उनकी सारी संपत्ति को अपने नागरिकों में बांट देगा। अपनी इसी नीति को सिरे चढ़ाने के लिए वह परमाणु बम बना रहा था। पाक अपनी जनता को यह सब्जबाग दिखा रहा था कि भारत को मिटाने में वह कामयाब हो जाएगा और जब भारत मिटेगा तो पाकिस्तान की सारी गरीबी दूर हो जाएगी, पर ईश्वरीय व्यवस्था में उसके साथ भी न्याय हो गया है। उसके सपने बिखर गए हैं और अब वह कटोरा लेकर भिकारी बना दुनिया में घूम रहा है।
1 फरवरी को जारी हुई आर्थिक समीक्षा 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में घटकर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यद्यपि भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। हमारा मानना है कि यदि भारत इस सबके उपरांत भी अपने आपको तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने में सफल रहने वाला है तो इसका कारण केवल एक है कि भारत वसुधैव कुटुंबकम की नीति में आज भी विश्वास रखता है। वह युद्ध, आतंक और हिंसा के माध्यम से दूसरे देशों में अराजकता पैदा करके उन्हें तोड़ना पसंद नहीं करता , इसके विपरीत भारत संपूर्ण भूमंडल पर रहने वाले लोगों की संपन्नता और प्रसन्नता की बात करता है। मन के भावों के संसार से बाहरी संसार बनता है। भारत के भावों में संसार के कल्याण की योजनाऐं होती हैं तो बाहरी संसार में भी वह सृजना के स्थान पर विध्वंस करता हुआ दिखाई नहीं देता। जिनके भावों के संसार मैले हैं और उनमें हिंसा व रक्तपात का चिंतन घुलता मिलता रहता है, वही संसार में आग लगाने का काम करते हैं।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष (अप्रैल 2022 से मार्च 2023) में सात प्रतिशत रहने का अनुमान है। पिछले वर्ष यह 8.7 प्रतिशत थी। सचमुच हम एसएसबी सामूहिक परिश्रम और पुरुषार्थ के चलते हम भारत के उत्थान का यह स्वर्णिम समय देख रहे हैं। जब समूचे राष्ट्र की सोच और चाल एक हो जाती है तो निश्चय ही उसके ऐसे ही ठोस और सकारात्मक परिणाम आते हैं। यद्यपि आज भी देश में ऐसे लोग हैं जो भारत की चाल को ठंडा करने और सोच को संकीर्ण बनाने के कुचक्रों में लगे रहते हैं, पर भारत की अंतरात्मा उन सब पर अधिशासी हावी होकर निरंतर आगे बढ़ते हुए भारत की चेतना को जागृत कर रही है । उसी का परिणाम है कि भारत के विरोधी देश के भीतर और बाहर दोनों स्थानों पर मुंह की खा रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की इस समीक्षा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत ने चुनौतियों का उत्तमता और बहादुरी से सामना किया है।आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत पीपीपी (क्रय शक्ति समानता) के मामले में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और विनिमय दर के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
समीक्षा में कहा गया, ‘‘अर्थव्यवस्था ने जो कुछ खोया था, उसे लगभग फिर से पा लिया है। जो रुका हुआ था, उसे नया कर दिया है, और महामारी के दौरान तथा यूरोप में संघर्ष के बाद जो गति धीमी हो गई थी, उसे फिर से सक्रिय कर दिया है।”
समीक्षा में कहा गया है कि महामारी के बाद भारत में पुनरुद्धार अपेक्षाकृत तेज था, ठोस घरेलू मांग से वृद्धि को समर्थन मिला, पूंजी निवेश में तेजी आई, लेकिन अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में और बढ़ोतरी के अनुमान से रुपये के लिए चुनौतियां बढ़ीं हैं।
समीक्षा के अनुसार निर्यात के मोर्चे पर चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि में कमी आई है। धीमी वैश्विक वृद्धि, सिकुड़ते वैश्विक व्यापार के कारण चालू वर्ष की दूसरी छमाही में निर्यात में कमी आई है।वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वर्तमान कीमतों पर वृद्धि दर के 11 प्रतिशत रहने का अनुमान है. समीक्षा में कहा गया कि आगामी वित्त वर्ष के दौरान ज्यादातर वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा भारत की वृद्धि दर मजबूत रहेगी। ऐसा निजी खपत में सुधार, बैंकों द्वारा ऋण देने में तेजी और कंपनियों द्वारा पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी के कारण होगा।
समीक्षा में कहा गया है कि मजबूत खपत के कारण भारत में रोजगार की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन रोजगार के अधिक मौके तैयार करने के लिए निजी निवेश में वृद्धि आवश्यक है।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि कृषि क्षेत्र पिछले छह वर्षों से 4.6 प्रतिशत की औसत वार्षिक विकास दर से मजबूत बढ़ोतरी दर्शा रहा है। इससे कृषि और संबद्ध गतिविधियां क्षेत्र देश के समग्र प्रगति विकास और खाद्य सुरक्षा में महत्‍वपूर्ण योगदान देने में समर्थ रहा। इसके अलावा हाल के वर्षों में देश कृषि उत्‍पादों के सकल निर्यातक के रूप में उभरा है और वर्ष 2021-22 में निर्यात 50.2 बिलियन अमरीकी डॉलर के रिकॉर्ड स्‍तर पर पहुंचा है।
हम सभी देशवासियों को चाहिए कि राष्ट्र निर्माण की योजना में सब बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता सुनिश्चित करते रहें। लक्ष्य अब हमसे दूर नहीं है। हमने अपनी जिजीविषा और जीवंतता का परिचय देते हुए जिस प्रकार आगे बढ़ने का संकल्प लिया है यह संकल्प कहीं से भी टूटना नहीं चाहिए। यदि कोई छिद्र कहीं से रह गया तो समझ लो कि नाव डूब जाती है। हमें पूरी सजगता और सावधानी के साथ आगे बढ़ना है। आने वाली शताब्दी भारत की होगी और न केवल शताब्दी भारत की होगी बल्कि आने वाले युग भी भारत के होंगे। उस समय के लिए हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि भारत वसुधैव कुटुंबकम और कृण्वंतो विश्वमार्यम् के संकल्प को लेकर आगे बढ़ेगा और सांप्रदायिकता के आधार पर जितना रक्तपात संसार में हुआ है उस सबको सद्भाव ,शांति और अहिंसा का मरहम लगाकर धोने का काम करेगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

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