मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 4 (क ) रावल रतन सिंह और रानी पद्मिनी

रावल रतन सिंह और रानी पद्मिनी

मेवाड़ के गुहिल वंश के 36 वें राणा रतन सिंह थे। राणा रतन सिंह मेवाड़ की राजगद्दी पर 1301 ईस्वी में विराजमान हुए।
कर्नल टॉड के “राजस्थान का इतिहास ,भाग – 1” की साक्षी इसके कुछ विपरीत है। उसका मानना है कि 1275 ईस्वी में चित्तौड़ के सिंहासन पर लक्ष्मण सिंह विराजमान हुए। उस समय राजा की अवस्था बहुत छोटी थी। इसलिए उसका संरक्षक उसके चाचा भीम सिंह को बनाया गया। यही भीम सिंह राणा रतन सिंह थे।
इनके शासनकाल में चित्तौड़ का प्रथम शाका हुआ था। इसमें तत्कालीन मुस्लिम बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। जिसका सामना राणा रतन सिंह और उनकी सेना ने भरपूर वीरता के साथ किया। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किए गए उस आक्रमण के समयअलाउद्दीन खिलजी द्वारा किए गए उस आक्रमण के समय व्यापक जन – धन की हानि हुई। देशभक्त आर्य हिन्दू वीरों ने अनेक बलिदान देकर अपनी देशभक्ति का परिचय दिया। यह अलग बात है कि इसके उपरांत भी चित्तौड़ को बलात छीनकर उस पर अपना अधिकार करने में अलाउद्दीन खिलजी सफल हो गया। राणा रतन सिंह की रानी पद्मिनी ने अपनी हजारों सहेलियों के साथ उस समय जौहर किया। रानी पद्मिनी और उनकी सहेलियों का यह बलिदानी जौहर विश्व इतिहास की अनुपम घटना है। जिसमें वीरता का ऐसा रस टपकता है कि उसे कायर से कायर व्यक्ति भी चखकर देश – धर्म पर मिटने की भावना से भर सकता है।

घटना अनोखी इतिहास में रानी का बलिदान।
कायर व्यक्ति में लौट कर , आ जाती है जान।।

राणा रतन सिंह अपनी बहादुरी, वीरता, शौर्य और साहस के लिए इतिहास में जाने जाते हैं। यह ठीक है कि उनके समय में चित्तौड़ को छीन कर अपने अधिकार में लेने में अलाउद्दीन खिलजी सफल हो गया था, परंतु इसके उपरांत भी उनकी वीरता न केवल मेवाड़ में बल्कि समस्त भारत में अभिनंदनीय है। मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा 1540 ई0 में लिखी गई पुस्तक ‘पद्मावती’ में उनके शासन काल के बारे में विशेष जानकारी मिलती है। अपनी आन – बान – शान की रक्षा के लिए राजा और उसके सहयोगी सैन्य अधिकारियों ,मंत्रियों आदि के द्वारा उस समय जो कुछ भी किया गया था, वह इतिहास की एक अनमोल विरासत है। मुसलमानों ने जहां दूसरों की स्त्रियों को छीनने के लिए युद्ध किए हैं, वहीं भारतवासियों ने नारी जाति के सम्मान की रक्षा के लिए शत्रु को मारा ,काटा या समाप्त किया है। जो लोग वैदिक धर्म को नारी विरोधी बताते हैं, उन्हें हमारे वीर – वीरांगनाओं के इतिहास पर दृष्टिपात करना चाहिए। जिनकी तलवारें सदा नारी के सम्मान के लिए उठी हैं।

बहु विवाह की बीमारी और भारतीय राजा

राणा रतन सिंह का शासनकाल मात्र दो – ढाई वर्ष का ही रहा। अलाउद्दीन से हुए संघर्ष में इनको अपना बलिदान देना पड़ा था। बताया जाता है कि रानी पद्मिनी राणा रतन सिंह की 14 वीं रानी थी। उस समय आर्य हिंदू राजाओं में भी बहु विवाह का प्रचलन हो गया था। ऐसा केवल इस्लाम के मानने वालों के संपर्क में आने के कारण हुआ था। बहु- विवाह की इस बीमारी को भारत में इस्लाम ही लेकर आया था। सारे भूमंडल पर उस समय बहु विवाह करने वाले मुसलमान और ईसाई अधिक से अधिक भू- भाग को अपने कब्जे में लेने के युद्ध लड़ रहे थे। ये दोनों अपनी संस्कृति को तेजी से फैला रहे थे। नए-नए संप्रदायों के जन्म लेने के कारण फैलने वाले अंधविश्वास और पाखंड के चलते कुछ तो भारतीय धर्म और संस्कृति का अपने आप ही पतन हो रहा था, कुछ इन वेद विरुद्ध वृत्तियों से संपन्न विदेशी आक्रमणकारियों की सोच और उनकी सभ्यता व संस्कृति का प्रभाव हमारे देश के राजाओं पर पड़ा, उसी का परिणाम था कि वे भी बहु – विवाह करने में अपनी शान समझने लगे।
राजा गंधर्व सेन ने पद्मावती का विवाह राणा रतन सिंह से किया। रानी पद्मावती के स्वयंवर विवाह समारोह में भाग लेने के लिए उस समय कई हिंदू राजा उपस्थित हुए थे। राणा रतन सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने साहस और पराक्रम से महाराजा मलखान सिंह को स्वयंवर में हराकर पद्मावती से विवाह किया था। मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी गई ‘पद्मावती’ के अनुसार राणा रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी के साथ हुए युद्ध में वीरगति प्राप्त हुई थी। अलाउद्दीन खिलजी अपनी क्रूरता, निर्दयता और अत्याचार पूर्ण शासन शैली के लिए जाना जाता था। वह उस समय दिल्ली का बादशाह था।

राघव चेतन की गद्दारी

उपरोक्त पुस्तक के अनुसार राणा रतन सिंह के राज दरबार में उस समय एक राघव चेतन नाम का संगीतज्ञ भी था। राघव चेतन बहुत ही धूर्त और मक्कार किस्म का पाखंडी व्यक्ति था। वह विभिन्न प्रकार के जादू टोनों में विश्वास रखता था और राज दरबारियों को भी भ्रमित करता था। जब उसकी वास्तविकता का पता राणा रतन सिंह को हुआ तो उन्होंने उसे गधे पर बैठाकर पूरे शहर में घुमाया। इसके बाद उसे राणा रतन सिंह ने अपने दरबार से निष्कासित कर भगा दिया था।
राघव चेतन इस प्रकार हुए अपने अपमान को भुला नहीं पाया। उसने राणा रतन सिंह से अपने इस अपमान का प्रतिशोध लेने का निश्चय किया। अपनी इसी प्रकार की सोच को सिरे चढ़ाने के लिए वह अलाउद्दीन से जाकर मिला। अलाउद्दीन से हुई अपनी भेंट में इस धूर्त मक्कार राघव चेतन ने देश के साथ गद्दारी करते हुए अलाउद्दीन खिलजी को मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। वह गद्दार चाहता था कि जिस प्रकार उसका अपमान राणा रतन सिंह ने किया है उससे अधिक राणा रतन सिंह को अपमानित होना पड़े। अपमान और प्रतिशोध की आग में जलते हुए उस गद्दार ने तनिक भी नहीं सोचा कि ऐसा करने से देश का क्या होगा ?
इसके लिए राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी के दुर्बल चरित्र का सहारा लिया। वह जानता था कि प्रत्येक मुस्लिम शासक चरित्र का बहुत ही दुर्बल होता है। उसे किसी भी सुंदर स्त्री का स्मरण कराओ तो वह कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है। अलाउद्दीन की इसी दुर्बलता का लाभ उठाते हुए राघव चेतन ने उसे बताया कि राणा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति है। मैं चाहता हूं कि वह आपके हरम की शोभा बढ़ाए।

अलाउद्दीन की योजना

दुर्बल चरित्र के स्वामी अलाउद्दीन खिलजी ने जब रानी पद्मिनी के सौंदर्य के बारे में राघव चेतन से सुना तो उस राक्षस के मुंह में पानी आ गया। सौंदर्य के शिकार के लिए तो वह पहले से ही तैयार रहता था । अब जब उसे राघव चड्ढा ने सीधे आकर निमंत्रण दे दिया तो उससे रहा नहीं गया। उसने रानी पद्मिनी को प्राप्त करने का संकल्प लिया और इसी संकल्प से प्रेरित होकर चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी। अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़ के किले का घेराव डाल दिया। राणा रतन सिंह और उनके अन्य सहयोगियों ने अलाउद्दीन खिलजी के अभियान का सामना करने का निर्णय लिया।
चित्तौड़ के किले के इस घेरे को जब 6 माह गुजर गए तो अलाउद्दीन खिलजी ने विचार किया कि घेरे का कोई लाभ नहीं हो रहा है । हां, इतना अवश्य हो रहा था कि राणा रतन सिंह के सैनिक रात्रि के अंधेरे में अलाउद्दीन खिलजी के शिविर पर अचानक हमला करके उसके कई सैनिकों को यमलोक पहुंचा कर सुरक्षित अपने किले में लौट जाते थे। इस प्रकार की राणा रतन सिंह की योजना से अलाउद्दीन खिलजी दु:खी हो चुका था। संख्या में कम होकर भी किस प्रकार हमारे सैनिक बड़ी-बड़ी सेनाओं को पराजित करते रहे हैं ? अलाउद्दीन खिलजी के साथ होने वाले इस प्रकार के आचरण से इस बात का भली प्रकार पता चल जाता है। इस प्रकार की घटनाओं से दुखी हुए अलाउद्दीन खिलजी ने हार थककर राजा के पास प्रस्ताव भेजा कि यदि वह रानी पद्मिनी को उसे शीशे में दिखा दे तो भी वह यहां से लौट सकता है।
वास्तव में अलाउद्दीन खिलजी इस प्रकार से हमारे राणा रतन सिंह को अपने दुष्टतापूर्ण झांसे में लेना चाहता था। वह जानता था कि हिंदू स्वभाव से कितने भोले भाले होते हैं ? और उन्हें दुष्टता के झांसे में आराम से फसाया जा सकता है।

राणा रतन सिंह फंस गये जाल में

इस घटना के बारे में “चित्तौड़ के जौहर व शाके” नामक पुस्तक में सवाई सिंह धमोरा पृष्ठ संख्या 15 पर लिखते हैं कि :- “भोले भाले रतन सिंह रावल इस झांसे में आ गए। 200 सिपाहियों के साथ सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी किले में आया। रावल रतन सिंह ने बड़ी आवभगत की। अतिथि के नाते सत्कार दिया। जाते समय किले के प्रथम द्वार तक उसे पहुंचाने आया। धूर्त अलाउद्दीन प्रेम भरी बातें करते हुए उसे किले के बाहर दूर तक ले आया। भोले राजपूत प्रेम भरी बातों में आ गए। उन्हें स्मरण ही नहीं रहा कि यह हमारा शत्रु है। बादशाही पड़ाव के समीप आते ही रतन सिंह बंदी बना लिए गए। राजपूतों ने बड़े-बड़े प्रयत्न किए , परंतु अपने रावल को मुक्त कराने में सफल नहीं हुए। अलाउद्दीन ने बारंबार यही कहा कि पद्मिनी को हमारे पड़ाव में भेज दो। तब ही रतन सिंह मुक्त होंगे, अन्यथा नहीं।”
राणा रतन सिंह अपने सद्गुणों के अपने आप शिकार हो गए। उन्हें अलादीन खिलजी की दुष्टता पूर्ण नीति के विषय में पूर्व से ही जानकारी ले लेनी चाहिए थी। ऐसा नहीं हो सकता था कि राणा रतन सिंह के इस प्रकार अपहरण करने की उसकी योजना अचानक बन गई होगी ? उसके स्वभाव ,चरित्र, प्रवृत्ति आदि के विषय में एक राजा होने के नाते राणा रतन सिंह को सब कुछ पहले से ही ज्ञात कर लेना चाहिए था। परंतु उन्होंने अलाउद्दीन की खिलजी की बातों पर विश्वास कर लिया। ऐसे शत्रु की बातों पर बिना किसी जांच-पड़ताल के विश्वास कर लेना किसी भी राजा के लिए उचित नहीं होता है।
रानी पद्मिनी अपने पति राणा रतन सिंह के उस निर्णय से प्रारंभ से ही असहमत थीं कि वह उन्हें अलाउद्दीन खिलजी को शीशे में दिखा देना चाहते हैं। रानी को आशंका थी कि अलाउद्दीन खिलजी इस प्रकार की अपनी योजना में किसी प्रकार के छल का प्रयोग कर सकता है। इस प्रकार राणा रतन सिंह की अपेक्षा रानी पद्मिनी कहीं अधिक दूरदर्शिता का परिचय दे रही थीं। उनकी दृष्टि में अलाउद्दीन खिलजी की योजना में कोई भी छुपी हुई दुष्टता हो सकती थी। अब जब रानी की आशंका सत्य सत्य सिद्ध हो गई थी तो उनके सामने इस समय अपने पति को अलाउद्दीन खिलजी की कैद से मुक्त कराना एक चुनौती बन चुकी थी।

भी डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत समाचार पत्र

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