मजहब का डिजाइन ———– (ताजा संदर्भ: कश्मीर और बांग्लादेश)

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#VIJAYMANOHARTIWARI

संसार भर में घट रही हमलों, कब्जों, कत्ल और विध्वंस की घटनाओं में, जहां भी मुस्लिम एक पक्ष हैं, मूल प्रश्न इस्लाम के डिजाइन का है, जिस पर विमर्श चल रहा है। किसी प्रदेश, देश, व्यक्ति या संगठन के संदर्भ में विचार करेंगे तो समस्या बहुत सीमित, स्थानीय और तात्कालिक दिखाई देगी। संचार माध्यमों की आधुनिक तकनीक हमें हर दिन यह बता रही है कि घटनाओं की बाढ़ आई हुई है और यह एक सीमित, स्थानीय और तात्कालिक विषय न अब है, न 14 सौ सालों से है।

यह एक व्यापक परिघटना है, जिसके मूल में विचारधारा की संरचना और स्वरूप है, जो विचित्र है। संचार तकनीक किसी वरदान की तरह हमारे काम आ रही है। अब खुलकर इस विचार की हर परत पर गंभीर विमर्श हो रहे हैं-इस्लाम की अवधारणा और उसके टूल्स पर इस्लामी शास्त्र के हजारों विद्वान अध्येता स्क्रीन पर उपलब्ध हैं, जो तार्किक ढंग से सत्य का उदघाटन कर रहे हैं। एक ऐसा सत्य जिसे भारत के सेक्युलर परिवेश में जानबूझकर ढककर रखा गया और संसार की दुष्ट शक्तियों ने पीड़ित पक्ष की पुकार बनाकर प्रस्तुत करने में अपनी ऊर्जा लगाई। सौभाग्य से तकनीक पूर्ण पारदर्शी, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक है। पत्ते-पत्ते और बूटे-बूटे की हर फड़कन सामने है। हर नट और हर बोल्ट को आप कसा हुआ देख सकते हैं।

इस्लाम के कवर में हर मुसलमान को यह गर्व से ज्ञात है कि धरती पर उनके एकमात्र आदर्श पैगंबर मोहम्मद ने काबे में लौटते ही मूर्तियों को तोड़ा था। यह संभव है कि वे किसी याेग-ध्यान या तप-साधना से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हों कि परमात्मा (जिसने उन्हें अपना नाम अल्लाह बताया या जिसे उन्होंने अल्लाह कहकर संबोधित किया) से संबंध के लिए किसी प्रतीक की आवश्यकता नहीं है। प्रतीकों के विरुद्ध यह प्रज्ञा प्राप्त होते ही वे अरब समाज के प्राचीन बुतखाने काबे में पहुंचे और अल-लात, अल-मनात और अल-उज्जा सहित अरबों के समस्त पवित्र देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को तोड़कर बाहर फेंक दिया। इस एक वाक्य में समाहित संपूर्ण दृश्य और उस दिन वहां के स्थानीय समाज की मन:स्थिति को अपने भीतर अनुभव कीजिए।

हजरत पैगंबर चाहते तो तप-साधना से प्राप्त अपनी वैचारिक सिद्धि के अज्ञान के अंधकार में पड़े संसार में व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए मदीना में ही अलग आश्रम या कोई संस्थान खोलकर अपनी अलग यात्रा आरंभ कर सकते थे। उनकी दिव्य दृष्टि में वह मूर्तिपूजा के पाप में पड़े हुए एक जाहिल और पिछड़े समाज की ऐसी नई महान् यात्रा थी, जो परमात्मा के अंतिम आदेश से पुण्य की ओर आरंभ कराई गई थी।
जैसा कि एक समय वैदिक विचार के विरुद्ध खड़े हुए गौतम बुद्ध ने किया। सारनाथ से उन्होंने अपनी एक अलग यात्रा का पवित्र शुभारंभ किया था। वे वेदों को जलाने, वैदिक विद्वानों को स्वर्गवासी बनाने और वैदिक आश्रमों और गुरुकुलों को राख करने नहीं निकले। असीम शांति से तथागत ने अपना विचार प्रथम चार प्रबुद्धजनों को वाराणसी के निकट ही सुनाया। पैगंबर की ‘रिवर्स हिजरत’ का प्रसंग ऐसा नहीं है, जहां ऐसी असीम शांति, प्रेम और करुणा की वर्षा हो रही हो।
पैगंबर के राजनीतिक उत्तराधिकारी खलीफाओं के कब्जों, मोहम्मद बिन कासिम के हमलों और भारत में महमूद गजनवी की लूट से लेकर बांग्लादेश की अराजक भीड़ के हजारों कासिमों और महमूदों ने इस्लाम के रूप में एक यही कर्म शिरोधार्य किया। चर्च, मंदिर और मूर्तियां तोड़ना, उन्हें लूटकर बरबाद करना या उनके अवशेषों को अपने अनुसार आकार देना उनके लिए वैसा ही है जैसे हिंदुओं के लिए हवन, जैनियों के लिए भक्तामर का पाठ और सिखों के लिए शबद। इस्लाम के डिजाइन में यह पवित्र कर्मकांड हैं।
यह एक ऐसे इंजन की भांति है, जो जहां भी होगा, ठीक इसी प्रकार अपना कार्य संपादित करेगा। चौबीसों घंटे चलने वाली एक मेगा मशीन का इंजन, जिसके हर कलपुर्जे को ज्ञात है कि उसे क्या करना है। काफिर, कुफ्र, शिर्क और मुशरिक इसके स्पेशल फीचर्स हैं। मुजाहिदीन, जिहाद और जन्नत का अल्ट्रा एडिशन इसकी गति को प्रभावी बनाता है। अरब की रेत से निकला वैचारिक ईंधन टैंक में फुल है-क्रूड ऑइल!
इस परम डिजाइन के सॉफ्टवेयर में यह फीड पक्की है कि हमारी यही क्रियाएं सर्वश्रेष्ठ, अंतिम आदेश और अनिवार्य पुण्य हैं और इसे धरती के अंतिम व्यक्ति और अंतिम मंदिर-मूर्ति, चर्च या गुरुद्वारे तक जाकर अधिरोपित करना है। इसलिए वे जहां भी हैं, अपने एकसूत्रीय तकनीकी कार्य में लगे हैं।
इफ्तखारुद्दीन आईएएस बन जाए या कलीमुद्दीन मौलाना हो जाए, दोनों में कोई अंतर नहीं है। साॅफ्टवेयर एक ही है, जिसकी चिप में रंगीन स्वर्ग के सौंदर्य की थ्रीडी इमेज अत्यंत लुभावने वीडियो गेम की भांति चौबीस घंटे चमक रही हैं। यह कर्म के बदले मिलने वाला अंतिम पुण्य प्रसाद है, किंतु अनिवार्य रूप से मरणोपरांत प्राप्त होने वाला लाभ। मरणोपरांत भी तत्काल नहीं, प्रलय की प्रतीक्षा में बीतने वाला अंतहीन कालखंड एक अंतराल की भांति है, जिसे कब्र के वातानुकूलित प्रतीक्षालय में व्यतीत करना है। अंतिम निर्णय के समय स्वर्गारोहण आरंभ होगा।
हां, अपेक्षा यह है कि मृत्यु रोग-व्याधि से साधारण कोटि की नहीं होनी चाहिए, वह मशीन के मिशन के लिए होनी चाहिए। यह मशीन और इंजन उसी मिशन के लिए घरघरा रहे हैं। हमने न्यूयार्क में वह तेज घरघराहट सुनी है, जिसे नाइन-इलेवन कहा गया। हमने भारत के चप्पे-चप्पे में वह घरघराहटें कभी नहीं सुनीं, क्योंकि तब सैटेलाइट से सीधे प्रसारण नहीं थे।
नालंदा-विक्रमशिला में मोहम्मद बख्तियार का ब्रांड ठीक यही मशीन लेकर आया था। देहली में ऐबक से लेकर औरंगजेब तक इसी के अनगिनत कारगर कलपुर्जे तख्तों पर जड़े थे। विजयनगर में पांच बहमनी इंजनों ने मिलकर आसमान को धुएं से भर दिया था। गुजरात से लेकर कश्मीर और बंगाल तक छह सौ सालों तक इन्हीं के कारखाने लगे और फैले थे। बामियान में यही मशीन बुद्ध को नष्ट कर रही थी। बांग्लादेश में उसी बख्तियार की हरी-भरी खरपतवार लहलहा रही है।
अरब की यह आक्रामक वैचारिक विरासत आज विश्व के अनगिनत देशों के करोड़ों नागरिकों को आए दिन अपने अतीत का सुंदर परिचय दे रही है। इनकी चिमनियों से निकलने वाला अनवरत गाढ़ा धुआं अपने नीचे बहुत कुछ ऐसा है, जिसे राख करके ही सातवें आसमान की ओर गति कर रहा है। जलकर भस्म होती वह सभ्यताओं की संचित मूल्यवान निधि है, जिसे हमारी अनगिनत पीढ़ियों ने अपने परिश्रम और पुरुषार्थ से गढ़ा और बचाकर रखा था। किसे पता है कि जलाए गए नालंदा की लाइब्रेरियों में राख होकर धरती मंे समा गई लाखों पांडुलिपियों में किसने क्या लिख छोड़ा था?
इस्लाम के डिजाइन की एक खूबी यह है कि वह अतीत से आपके संबंध का स्थाई विच्छेद ही नहीं करता, उसके प्रति गहरी घृणा की पॉलिश भी मार देता है। स्मृतियों को पूरी तरह पौंछकर ही उपकरण को नया रूप दिया जाता है। इसलिए इस्लाम के पहले के अरब समाज और उनकी परंपराओं के बहुत अधिक ऐतिहासिक विवरण नहीं हैं। एक थोपा हुआ निष्कर्ष है कि वह मूर्तिपूजक जाहिल थे। इस्लाम एक जनकल्याणकारी मिशन की तरह प्रकट हुआ और सब ठीक कर दिया। नालंदा और विजयनगर को मिटाना, सोमनाथ या बामियान को उड़ाना, हजारों साल के अतीत की एकमुश्त समाप्ति और एक नए इतिहास की घोषणा है। इसी उज्जवल श्रृंखला में नाइन-इलेवन एक ताजा लक्ष्य है, जिसे पूरा किया गया।
अब तक के अनुभवों से यह भी सिद्ध है कि इस डिजाइन में तबलीग और मदरसे ऐसे कार्यकुशल वर्कशॉप और गैराज हैं, जहां मजहबी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एंड रिपेयरिंग की दिशा में दक्ष आलिमों के मार्गदर्शन में नई पीढ़ी के इंजीनियर और कारीगर तैयार किए जाते हैं। स्किल डेवलपमेंट का यह इस्लामी संस्करण भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अरब से ज्यादा फला-फूला। सेक्युलर सरकारों ने सब्सिडी की प्रभावशाली बौछारें मारीं, उनके वेतन-भत्ते निर्धारित कर दिए। यह धड़धड़ाकर पटरियों पर आती ट्रेन के नीचे श्रद्धापूर्वक लेटने के लिए किया गया निवेश है।
किसी भी डिजाइन से यह अपेक्षा स्वभाविक है कि वह तकनीक से कोई परहेज न करे। जब तोप और तलवारें थीं तब ऊंटों और घोड़ों की सवारी करते हुए उनसे काम चलाया, अब एके-57 और रॉकेट लांचर और विमानों तक जा पहुंचे। जब लाउड स्पीकर नहीं थे तब भी परमात्मा तक पुकार जाती ही थी और अब गली-गली की चारों दिशाओं में दिन में पांच बार अल्लाह का ऐलान हकीम लुकमान ने मनुष्य की श्रवण क्षमता की निरंतर पवित्रता के लिए परचे पर लिख छोड़ा है।
हम नहीं जानते कि लगातार घरघराती इस मेगा मशीन के किस कोने में, इंजन के किस हिस्से में, एक्सलेटर या गियर या टायर या ट्यूब के किस अंश में अगले किस महानगर, मार्ग, चौक-चौराहे के किस लक्ष्य की रूपरेखा और दिशा फीड है। कितने भारत, कितने केरल और कश्मीर, कितने पाकिस्तान, कितने बांग्लादेश अभी धूल-धूसरित होना शेष हैं। मशीन के अब तक के अद्वितीय परफार्मेंस को देखकर यह अवश्य कहा जा सकता है कि वह एक साथ अनेक लक्ष्यों पर संधारित अनंतमुखी मिसाइल है, जिसके समक्ष अनेक श्रीनगर, रंगपुर, नाइन-इलेवन, बामियान, विजयनगर, अयोध्या, मथुरा, काशी, अढ़ाई दिन के झोपड़े, भोजशालाएं, नालंदा, विक्रमशिला और कुतुबमीनार आगे और भी हैं।
काश, इस उत्कृष्ट डिजाइन में ब्रेक जैसी कोई एक मामूली चीज भी होती!

#SaveBangladeshiHindus

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