जन धन योजना – सूक्ष्म प्रयास जो अर्थव्यवस्था में गेमचेंजर हो सकती है!

डाॅ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल (डी.लिट्)

पन्द्रह अगस्त 2014 को लालकिले की प्रचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा घोशित राजग सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) में अगस्त 2014 से प्रारम्भ होकर 26 जनवरी 2015 महीने तक 7.50 करोड बैंक खाते खोलने का लक्ष्य बनाया था परन्तु एक सप्ताह पहले अर्थात 17 जनवरी 2015 तक देष में 11.50 करोड सेविंग बैंक खाते खोले जा चुके थे। इसलिए इस योजना का नाम गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज कर लिया गया। यह भारत देष के लिए एक गर्व की बात है तथा भारतीयों के द्वारा किया गया यह अद्वितीय प्रयास था जो उन्होंने देष र्के आिर्थक विकास के लिए किया।

9.50 करोड सेविंग खाते हालंाकि जीरो बैंलेंस पर खोले गये तथा इन खातों का अभी तक नियमों के स्पश्ट न होने के कारण परिचालन ढंग से नहीं हो पाया है। सरकारी बैंकों ने बढ चढ कर इस योजना में सहयोग किया वहीं वे अपने पुराने ग्राहकों को यह बताने में असफल ही रहे कि उनके पुराने खातों को भी इस योजना में जोडा जा सकता है। खातेदारों में भी भ्रम था कि सरकारी सुविधाऐं लेने के लिए ही इन खातों का खोला जाना जरुरी है। इसका परिणाम यह हुआ कि बैंकों के पास अनावष्यक बोझ बढ गया। इन खातों को अधिकांषतः महिलाओं (51 प्रतिषत) ने खुलवाया है वहीं षहरों (40 प्रतिषत) की अपेक्षा गांवों (60 प्रतिषत) में इस योजना के तहत बैंक खाते खोले गये। 23 अगस्त 2014 से 29 अगस्त 2014 के दौरान एक सप्ताह में ही 1.80 करोड बैंक खाते खोले गये। इसके अंतर्गत देष के 25 करोड परिवारों में से 21.8 करोड परिवारों का बैंकों ने सर्वे किया। अब इसमें से 99.74 प्रतिषत परिवारों के पास बैंक सुविधा पंहुच गई है। अधिकांष राज्यों में षत प्रतिषत परिवारों के बैंक खाते खोले जा चुके है। माओवादी- नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बैंक कर्मचारी नहीं पंहुच सके सो वहंा बैंक खाते अधिक नहीं खुल सके। 17 जनवरी 2015 तक 11.50 करोड खातों में 9,188 करोड रुपये जमा हो पाये थे तथा 28 प्रतिषत खाते ही ढंग से संचालित हो रहे है। 10 करोड बैंक खातों पर रुपे कार्ड निर्गमित किये जा चुके है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली के द्वारा कहा गया कि यह योजना देश के लिए गेमचेंजर साबित होगी क्योंकि यह योजना डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के लिए एक आधार बनेगी और फर्जी नामों पर हो रहे सब्सिडी के बंटबारे पर प्रभावपूर्ण रोक लगाने में सफल हो सकेगी अर्थात समय समय पर घोशित सरकारी योजनाओं में नित्य होने वाली भ्रश्टाचारी गतिविधियों पर रोक लग सकेगी।

इन बैंक खातों की सहायता से सरकार पर सब्सिडी का बोझ कम हो सकेगा तथा सरकारी स्कीमों को सीधे आम जनता तक पंहुचाने का रास्ता भी खुल सकेगा। खातों के माध्यम से आम जनता तक रकम पंहुचने पर बाजार में वस्तुओं की मांग बढ सकेगी। यह रकम अब तक भ्रश्टाचार के माध्यम से भ्रश्टचारी की तिजोरी ही भरती रही है। अनुमान है कि वर्श 2015-16 में सरकार इन बैंक खातों के माध्यम से 66,000 करोड रुपयों को वितरीत करेगी। मनरेगा के 33,000 करोड रुपये, एलपीजी सब्सिडी के 18,000 करोड रुपये तथा पैंषन व छात्रवृति के 15,000 करोड रुपये अर्थात कुल मिला कर 66,000 करोड रुपये इन 11.50 करोड खातों मे जमा होगा। 8.03 करोड एलपीजी ग्राहकों के खातों में रुपया जमा होना षुरु भी हो गया है तथा आगामी तीन महीनों तक षेश बचे 7.50 करोड अन्य ग्राहकों के बैंक खातों में भी सब्सिडी की राषी पंहुचेगी अर्थात इस वर्श 17,777 करोड रुपये की राषी जन धन योजना में खुले खातों में जमा हो सकेगी। मनरेगा के 10 करोड श्रमिकों के खातों में 33,000 करोड रुपये पहुंचेंगंे। 9,690 करोड रुपये पैंषन व 5,756 करोड रुपये छात्रवृति की मद में विभिन्न बैंक खातों में ट्रांसफर हो सकेगें। देष की अर्थव्यवस्था और विषेश रुप से बाजार में 66,000 करोड रुपये की एक बडी रकम पंहुचने की आषा की जा रही है जिससे आम आवष्यकता की वस्तुओं की मांग बढने की बहुत उम्मीद की जा रही है।

यह सब स्थिति तो भविश्य में अर्थात अप्रैल 2015 से मार्च 2016 वित्तीय वर्श में दिखायी दे सकती है परन्तु अभी (17 जनवरी 2015) तक 11.50 करोड खातों में से अधिकतर खातों में धन जमा नहीं किया गया। अब वित्त मंत्रालय इन खातों को ढंग से संचालित करने के उपाय कर रहा है। इन खातों को संचालित करना वित्त मंत्रालय के लिए एक गम्भीर चुनौती है। वित्त मंत्रालय का यह मानना है कि सरकारी प्रत्यक्ष लाभ (सब्सिडी) के ट्रांसफर से ही इन खातों में रकम जमा हो सकेगी।

निजी क्षेत्र के बैंक के 36 प्रतिषत खातों में धन जमा हुआ है व सरकारी क्षेत्र के बैंकों के 29 प्रतिषत खातों में धन जमा हो पाया है और दोनों क्षेत्रों के बैंकों में कुल मिला कर 9,188 करोड रुपये ही जमा हो सके है। निजी क्षेत्र के बैंक यस बैंक के 11 प्रतिषत, कोटक महेन्द्रा बैंक में 23 प्रतिषत, ऐक्सिस बैंक के 25 प्रतिशत खातों में ही धन जमा हुआ है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक के मात्र 5 प्रतिषत और इंडियन ओवरसीज बैंक के 16 प्रतिषत खातों में धन जमा हुआ है। सार्वजनिक बैंकों में लगभग 9 करोड खाते व निजी क्षेत्र के बैंकों में मात्र 41 लाख खाते तथा षेश क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में खोले गये है। निजी क्षेत्र के आई सी आई सी आई, कोटक महिन्द्रा, यस बैंक, इंडसंइड बैंक व करुर वैष्य बैंक ने 9 लाख के लगभग जन धन खाते खोले है।

उपर्युक्त से यह निश्कर्श निकाला जा सकता है कि सर्वजनिक क्षेत्रों में खाते बहुत अधिक खुले है तथा इन खातों से इन बैकों का व्यय बढने वाला है जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों ने इस सरकारी योजना में अपना मात्र 3.6 प्रतिषत ही सहयोग देकर अपने आगामी व्ययों को नियंत्रित रखने में सफलता प्राप्त की है।

सरकार तरलीकृत पेट्रोलियम गैस और केरोसिन पर सब्सिडी के क्षेत्र में सुधारों को आगे बढाने की आवष्यकता पर विचार कर ही है। अभी तक 15 करोड परिवारों को रसोई गैस पर सब्सिडी के प्रत्यक्ष ट्रंासफर की षुरुआत हो चुकी है। अब सरकार यह देखेगी कि किन परिवारों को सब्सिडी की जरुरत नहीं है। इस सबसे केरोसिन सब्सिडी के दुरुपयोग की समस्या भी दूर हो सकेगी। सरकार गरीबों को दी जाने वाली सब्सिडी को बंद करने के मुड में नहीं है बल्कि सब्सिडी को व्यावहारिक बनाने की जरुरत है जो परिवार गरीबी की रेखा से ऊपर जीवन यापन कर रहे है उनके लिए सब्सिडी पर प्रतिबंध लग सकता है। इस प्रकार सरकार के विकास संबंधी व्ययों को बढोत्तरी मिल सकेगी क्योंकि फर्जीपने में लाखों करोड रुपयों की सब्सिडी भ्रश्टाचारियों की तिजोरियों में बंद हो रही है और काले धन के रुप में देष से बाहर जा रही है। उस काले धन का लाभ भारत के बाजार को नहीं मिल पा रहा है।

देश में इस समय 1,80,000 एटीएम लगे हुए है जिनकी संख्या भी बढाने की अब आवष्यकता हो गई है। बैंकों में जन धन योजना से काम बढेगा जिससे बैंकों में रोजगार के अवसर बढ सकेंगे। वर्तमान में देष में बडे पैमाने पर हो रहे भ्रश्टाचार को रोकने के लिए सरकार को एक नये तंत्र की आवष्यकता है। इसके अंतर्गत सुदूर के गांवों में बैंकों को सीबीएस करने की आवष्यकता है क्योंकि नियमों के अभाव में ही इन खातों में पर्याप्त धन जमा नहीं हो सका है। पहले मौजूद खाताधारकों ने भी नये खाते खुलवाये। यह योजना इन खातों के ढंग से सचालित होने पर ही गेमचेंजर साबित हो सकती है। बैंकांे पर इस योजना से अनावष्यक बोझ पडा वही यह येाजना कुछ कुछ अपने उद्देष्य से भटकी हुई भी प्रतीत हुई। इन खातों में 9,200 करोड रुपये की तुलना में 40 हजार करोड रुपये से अधिक जमा होने चाहिए थे तभी ये सब जन धन खाते बैकों को आर्थिक व लाभकारी साबित होते। अब बैंक इन खातों को सही ढंग से संचालित करने के उपाय करें। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अन्य नेता भी जनता को यह समझायें कि इन खातों को ठीक से संचालित किये बिना कोई लाभ (तुरंत लाभ एक लाख रुपये का बीमा) खाताधारकों को नहीं मिलने वाला है। जिन लाखों बैंक मित्रों की नियुक्ति की गई थी उनको भी इस दिषा में काम पर लगाया जा सकता है कि वे खाताधारियों को समझायें एवम् वे एक अभियान चला कर आधार कार्ड व अन्य पहचान पत्रों के साथ बैंक खाते को जोडा जाना चाहिए जिससे पैंषन, छात्रवृति, मनरेगा के दलालों को कोई भुगतान प्राप्त न हो सके। वैसे जहां प्रधानमंत्री ने पूरे देष को डिजिटल व ब्राड बैंड से जोडने की योजना का काम ष्ुारु किया हुआ है, उसके पूरा होने पर ही सुदूर गांवों की बैंक षाखाओं को सीबीएस किया जा सकेगा तथा एटीएम की सुविधा भी बढ सकेगी और लोगों के द्वारा इन जन धन खातों का संचालन आसान हो सकेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इच्छा जताई है कि सभी जन धन खातों को आधार कार्ड से जोडा जाय व बैंक इस प्रक्रिया मे तेजी लाकर देष मे वित्तीय साक्षरता के प्रयासों को दुगुनी रफ्तार से बढायें। प्रधानमंत्री ने 24 जनवरी 2015 को सभी बैकरों को ई- मेल भेज कर इस उल्लेखनीय कार्य की सराहना की व कहा कि देष के कुल परिवारों में से 99.74 प्रतिषत परिवारों को इस योजना में लाया गया है व कई योजनाओं के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के इस प्लेटफार्म का प्रयोग किया जाय अभी और सुधार की आवष्यकता है। अगस्त 2014 से षुरु यह योजना के दूसरे चरण में खातों का उपयोग ऋण, बीमा, व पैंषन को देने के लिए होगा। मोदी का यह मानना है कि सिर्फ बैंक खाता न होने से विकास की गतिविधियां बाधित होती है। इस कमी को पूरा किया जाना चाहिए व ग्राहक सेवा के ऊँचे मानकों को बनाए रखने की आवष्यकता है। बैकों के द्वारा किये गये इस असाधरण प्रयास से प्राप्त हुई सफलता के लिए प्रधानमंत्री ने उनको बधायी दी हैं।

अभी यह योजना अलाभकारी दिखाई दे रही है जिस प्रकार खेत को तैयार करके एक बीज बो दिया जाता है और बीज से अंकुर फुटने में कुछ समय तो लगता ही है। उसी प्रकार इस योजना को कारगर होने में कुछ समय लग सकता है। इस योजना का एक सुखद परिणाम जनता के सामाने आने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी का यह सुक्ष्म प्रयास भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक गेमचेंजर के रुप में सामने आ सकेगा ऐसी आशा करनी चाहिए।

लेखक सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर में वाणिज्य संकाय में ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत् है तथा स्वतंत्र टिप्पणीकार है।

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