सत्ता सतत् साधना…

विनोद कुमार सर्वोदय

अब मोदी जी का विजयी अभियान थामने वाले केजरीवाल देश में नयी राजनीति के सूत्रधार बन कर उभर रहे है ! देखना यह है कि अपने अपने दायित्वों व वायदों को निभाने में यह दोनों नेता कहां तक एक दूसरे का साथ निभाएंगे या फिर विपक्ष की राजनीति को आगे बढा कर देश में नकारात्मक राजनीति का  सिलसिला यथावत रहेगा?

इसमें कोई संदेह नहीं की बीजेपी के विजय रथ पर चढ़ने से पहले व बाद में जिसप्रकार मोदी जी ने अपनी आक्रामक शैली में “राष्ट्रवाद ” के दर्शन देश की जनता को कराये उससे अभिभूत होकर लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अभूतपूर्व ऐतिहासिक विजय मिली ।केंद्र के बाद राज्यो में भी सफलता मिलने से बीजेपी देश की सर्वश्रेष्ठ पार्टी बन गई।परंतु जब सफलता सर चढ़ कर बोलती है तो अभिमानी हो जाती है और वही उसके पतन का कारण बन जाती है।ऐसे में दिल्ली के चुनावो में केजरीवाल व उनके साथियों ने अनेक विरोधाभास के बाद भी सतत् लग्न व परिश्रम से  (कछुऐ की चाल चल कर) मोदी जी के विजय रथ (खरगोश/शेर )को रोक (हरा) दिया। लेकिन दिल्ली की इतनी बड़ी जीत अभी अल्प आयु “आप” को अहंकारी बना कर अराजक न करदे इसमें संदेह बना हुआ है?
अनेक सन्दर्भ बीजेपी की  हार के दिए जा रहे है उस पर यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि मोदी जी ने अपना रथ जिस राष्ट्रवाद के सहारे दौड़ाया था वह गांधीगीरी में अटक गया।लोकतंत्र में जीत हार तो होती ही रहती है लेकिन राष्ट्रवाद पर गांधीवाद अब भारत की जिहाद से पीड़ित जनता को स्वीकार नहीं।सन् ’47 से विभाजन का दंश झेल रही जनता अब गांधी व नेहरू की ‘भयंकर भूलों’ से बहुत कुछ सीख चुकी है ।
अतः भविष्य में मोदी जी को राजनीति में अपने ग्लेमर को बनाये रखना है तो गांधी के गुजरात से बाहर निकल कर भारत को जगदगुरु बनाने के लक्ष्य से राष्ट्रवाद के रथ पर ही सवार रहना होगा एवं  अधिनायकत्व से बचते हुए अपने वरिष्ठों व अनुजो को ही साथ लेकर चलना होगा ।
आज सत्ता में सतत् साधना ही परिलक्षित हो भोगविलास व अभिमान नहीं,भारत का साधारण नागरिक नेताओ से यही अपेक्षा रखता है क्योकि  “सादा जीवन उच्च विचार” ही तो हमारी संस्कृति का आधार है। .

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