बिखरे मोती : कड़वे अतीत को भूलना ही श्रेयस्कर है:-
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भूल जा कड़वे अतीत को,
मत कर उसको याद।
सोच समय सम्पत्ति को,
कर देगा बर्बाद॥1687व
भक्ति के संदर्भ में:-
एक जाप एक ध्यान हो,
मत भटकै चहुँ ओर।
हिये में आनन्द स्रोत है,
सुन अनहद का शोर॥1688॥
भगवद – भाव में जी सदा,
जो चाहै कल्याण।
यही कमाई संग चले,
जब निकलेंगे प्राण॥1689॥
दुनिया के बाजार में,
हर वस्तु का मोल।
भक्ति समय और सांस तो,
जग में है अनमोल॥1690॥
ओ३म् नाम के जाप से,
वाणी निर्मल होय।
मनुवा लग हरि-जाप में,
मत क्षण वृथा खोय॥1691॥
पुण्यों का संग्रह करो,
मत संचित कर पाप।
ईश्वर का जब न्याय हो,
भोगोगे तुम आप॥1692॥
भाग्य को सौभाग्य में,
बदले हरि का हाथ।
जपते रहो हरि ओ३म् को,
जब तक सांसा॥1693॥
जाप और चिन्तन एक हों,
जब करो प्रभु का ध्यान।
गहरे डूबो नाम में,
भक्ति चढ़े परवान॥1694॥
अवगाहन कर ओ३म् में,
बैठ सुबह और शाम।
अन्तःकरण पवित्र हो,
मिले मुक्ति का धाम॥1695॥
सबसे ज्यादा जगत में,
नर बतियावै आप।
काश ! ध्यान में बैठकर,
करे प्रभु का जाप॥1696॥
पुरुषार्थी परमार्थी,
मन में नहीं कषाय।
प्रभु से हो सायुज्जता,
वही भक्त कहलाय॥1697॥
पहले धारौ धर्म को,
पीछे भक्ति आय।
बिना धर्म भक्ति करै,
पाखन्डी कहलाय॥1698॥
गहरे उतरो ध्यान में,
अतुलित है आनन्द।
योगी पीवै ब्रह्य-रस,
मिलता सच्चिदानन्द॥1699॥
भक्ति के आनन्द को,
बिरला जाने कोय।
नाम खुमारी जब चढ़ै,
मनुवा निर्मल होय॥1700॥
अन्तःकरण पवित्र कर,
यही है जीवन ध्येय।
भक्ति के प्रताप से,
मिले स्वतःअज्ञेय॥ 1701॥
भक्ति-शक्ति का केंद्र है,
प्रेरक प्राणधार।
स्थिति उत्पत्ति प्रलय,
करता पालनहार॥1702॥
जितना मीठा ओ३म् है,
उतना ही मीठा जाप।
सांस-सांस पर ओ३म् भज,
कटेंगे तेरे ताप॥1703॥
क्रमशः