somrasडॉ विवेक आर्य

शंका 1 – क्या वेदों में वर्णित सोमरस के रूप में शराब (alcohol) अथवा अन्य मादक पद्यार्थ के ग्रहण करने का वर्णन हैं?

समाधान – पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों में सोम रस की तुलना एक जड़ी बूटी[i] से की हैं जिसको ग्रहण करने से नशा हो जाता हैं और वैदिक ऋषि सोम रस को ग्रहण कर नशे[ii] में झूम जाते थे। कुछ पश्चिमी लेखकों का मत हैं कि सोम सम्भवत फफूदी भी हो सकता हैं[iii]। मादक पदार्थों का प्रयोग करने वाले लोग सोमरस के नाम का सहारा लेकर नशा करना सही ठहराते हैं। इस भ्रान्ति का मूल कारण सोम शब्द के उचित अर्थ को न समझ पाना हैं।

शंका 2- स्वामी दयानंद के अनुसार सोम का क्या अर्थ हैं?

ऋषि दयानंद ने अपने वेद भाष्य में सोम शब्द का अर्थ प्रसंग अनुसार ईश्वर, राजा, सेनापति, विद्युत्, वैद्य, सभापति, प्राण, अध्यापक, उपदेशक इत्यादि किया हैं।  कुछ स्थलों में वे सोम का अर्थ औषधि, औषधि रस और सोमलता नमक औषधि विशेष भी करते हैं, परन्तु सोम को सूरा या मादक वास्तु के रूप में कहीं ग्रहण नहीं किया हैं।[iv]

स्वामी दयानंद लिखते हैं कि सोम का पान करने वाले कि अंतरात्मा में विद्या का प्रकाश होता हैं अर्थात जो मनुष्य दिन और रात पुरुषार्थ करते हैं वे नित्य सुखी होते हैं। [v]

 

शंका  3 -योगी अरविन्द का सोम विषय को लेकर क्या मत हैं ?

वेद के अध्यात्म व्याख्याकारों श्री अरविन्द के अनुसार सोम आनंद के रस का और अमृत के रस का अधिपति हैं। ऋग्वेद 9/83 सूक्त की व्याख्या करते हुए उन्होंने इस सूक्त के सोम वर्णन को अलंकारिक बताया हैं। इस वर्णन में सोमरस को छानकर शुद्ध करने तथा इसे कलश में भरने के भौतिक कार्यों के साथ पूरा-पूरा रूपक बाँधा गया हैं। [vi]

शंका 4 – वैदिक मन्त्रों में सोम शब्द का प्रयोग किन अर्थों में हुआ हैं?

समाधान- वैदिक मन्त्रों में सोम शब्द के भिन्न भिन्न मन्त्रों में भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं। जैसे

सोम को समस्त गुणयुक्त आरोग्यपन एवं बल देने वाला ईश्वर कहा गया हैं।- ऋग्वेद 1 /91/22

सोम को लताओं का पति कहाँ हैं। – ऋग्वेद 9/114/2

सोम के लिए सुपर्ण विशेषण प्रयुक्त हैं। – ऋग्वेद 9/97/33

सोम की स्थिति धुलोक में बताई हैं, यह भी कहाँ गया हैं की वह १५ दिन तक बढता रहता हैं और १५ दिन तक घटता रहता हैं। – ऋग्वेद 10/85/1

ऋग्वेद 10/85/2 और ऋग्वेद 10/85/4 में भी सोम की तुलना चंद्रमा से की गयी हैं।

ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार चंद्रमा को सोम का पर्याय बताया गया हैं।

तैतरीय उपनिषद् के अनुसार वास्तविक सोमपान तो प्रभु भक्ति हैं जिसके रस को पीकर प्रभुभक्त आनंदमय हो जाता हैं।

ऋग्वेद 6/47/1 और अथर्ववेद 18/1/48 में कहाँ गया हैं परब्रह्मा की भक्ति रूप रस सोम अत्यंत स्वादिष्ट हैं, तीव्र और आनंद से युक्त हैं, इस ब्रह्मा सोम का जिसने कर ग्रहण लिया हैं, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता।

ऋग्वेद 8/92/6 – इस परमात्मा से सम्बन्ध सोमरस का पान करके साधक की आत्मा अद्भुत ओज, पराक्रम आदि से युक्त हो जाती हैं ,वह सांसारिक द्वंदों से ऊपर उठ जाता हैं।

 

शंका 5- क्या वेद शराब अथवा सूरा आदि के प्रयोग कि अनुमति देते हैं?

 

१. वेद में मनुष्य को सात मर्यादायों का पालन करना निर्देश दिया गया हैं- सन्दर्भ ऋग्वेद 10/5/6  इन सात मर्यादाओं में से कोई एक का भी सेवन नहीं करता हैं तो वह पापी हो जाता हैं। [vii]

२. शराबी लोग मस्त होकर आपस में नग्न होकर झगड़ा करते और अण्ड बण्ड बकते हैं। – ऋग्वेद 8/2/12

३. सुरा और जुए से व्यक्ति अधर्म में प्रवृत होता हैं- ऋग्वेद 7/86/6

४. मांस, शराब और जुआ ये तीनों निंदनीय और वर्जित हैं। – अथर्ववेद 6/70/1

५.  शतपथ के अनुसार सोम अमृत हैं तो सुरा विष हैं, इस पर विचार करना चाहिए।[viii]

जब वेदों कि स्वयं कि साक्षी शराब को ग्रहण करने कि निंदा कर रही हैं तब कैसे वेद सोम रस के माध्यम से शराब पीने का सन्देश दे सकते हैं?

हमने सोमपान कर लिया हैं, हम अमृत हो गए हैं, हमने ज्योति को प्राप्त कर लिया हैं, विविध दिव्यताओं को हमने अधिगत कर लिया हैं, हे अमृतमय देव मनुष्य की शत्रुता या धूर्तता अब हमारा क्या कर लेगी। -ऋग्वेद 8/48/3[ix]

 

इस प्रकार वेदों के ही प्रमाणों से यह स्पष्ट सिद्ध होता हैं की सोम रस शराब आदि मादक पदार्थ नहीं हैं।

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