पाकिस्तान भारत से चाहता क्या है?

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डॉ0 वेद प्रताप वैदिक

पिछले दिनों मुझे लगभग 20 दिन तक पाकिस्तान में रहने का मौका मिला। मेरी भेंट प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और विदेश मंत्री सरताज अजीज के साथ तो हुई ही, पाकिस्तान के अनेक शीर्ष फौजियों, कूटनीतिज्ञों, विशेषज्ञों और पत्रकारों से भी हुई। पाकिस्तान के पंजाबी, सिंधी, पठान और बलूच प्रांतीय नेताओं से भी सार्थक मुलाकातें हुईं। कई आम आदमियों से भी बात करने का मौका मिला। इस पूरी यात्रा के दौरान मैंने यह जानने की कोशिश की कि आखिर भारत से पाकिस्तान चाहता क्या है? भारत क्या-क्या करे, जिससे भारत-पाक संबंध सहज हो जाएं?

दोनों देशों के संबंध सहज होने की दृष्टि से पहली महत्वपूर्ण बात तो मुङो यह लगी कि आजकल पाकिस्तान की हवा काफी रचनात्मक है। पिछले 40-45 साल में जब भी पाकिस्तानियों से मेरा संवाद होता था, कुछ न कुछ तल्खी पैदा हो जाती थी। इस बार वहां का माहौल बदला हुआ लगा। किसी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में ऐसी टिप्पणी नहीं की, जिससे मुङो बुरा लगे। कुल मिलाकर पाकिस्तानी नेताओं और विद्वानों का कहना था कि अगर हिन्दुस्तान की जनता ने मोदी को स्वीकार किया है, तो हम उन्हें मान्य क्यों न करें? उन्हें यह विश्वास है कि मोदी जैसा नेता कठोर फैसले कर सकता है और उन्हें अपनी जनता से मनवा भी सकता है। अब पाकिस्तानियों के मन से यह भय निकल गया है कि भारत उसके टुकडे कर सकता है या बंदूक के जोर से उसके ‘आजाद कश्मीर’ को छीन सकता है या अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसे दबा सकता है। दोनों देश परमाणु-शक्ति संपन्न हैं। इसलिए अब पाकिस्तान को नकली शक्ति-संतुलन की जरूरत नहीं है। अब पाकिस्तान हर मुद्दे पर भारत के साथ आत्म-विश्वास के साथ बात कर सकता है।

लगभग हर पाकिस्तानी ने मुझसे कहा कि अब ‘निरदर मोडी’ साहब को जल्दी से जल्दी पाकिस्तान आना चाहिए। जुलाई-अगस्त में ही आ जाएं। मैंने पूछा कि कुछ मुद्दों पर समझौता हो जाए, तो आने का अच्छा बहाना बन जाएगा। इस पर उनका कहना था कि सद्भावना-यात्रा के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं है। नवाज शरीफ भारत गए, इससे दोनों तरफ सद्भावना बनी या नहीं? कुछ प्रमुख प्रतिपक्षी नेताओं ने मुझसे कहा कि भारत यात्रा से मियां नवाज की छवि पाकिस्तान में खराब हुई है, खासतौर से आपकी विदेश सचिव द्वारा पढे हुए बयान से। उस बयान में जिन मुद्दों का जिक्र किया गया था, उनके बारे में हमारे भारतीय व पाकिस्तानी नेताओं ने मुझे बताया कि कोई चर्चा ही नहीं हुई। तो फिर, उस बयान को बार-बार क्यों पीटते रहना?

कश्मीर के सवाल को हल करने की बात भी हर जगह उठी। पाकिस्तानी कश्मीर के सबसे बडे नेता 90 वर्षीय सरदार कय्यूम और उनके बेटे ‘पूर्व प्रधानमंत्री’ सरदार अतीक से भी बात हुई। कई पूर्व सेनापतियों और गुप्तचर विभाग (आईएसआई) के प्रमुखों से भी विचार-विमर्श हुआ। सबकी राय पहली बार मैंने एक जैसी देखी। सभी ने कहा कि कश्मीर मसले का हल युद्ध या हिंसा से नहीं हो सकता। बातचीत से ही होगा। कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि आप लोग कश्मीर में जनमत-संग्रह के विरुद्ध क्यों हैं? मैंने संयुक्त राष्ट्र दस्तावेजों को उद्धृत करके कई कारण बताए, लेकिन मैंने यह भी पूछा कि क्या पाकिस्तान कश्मीरियों को ‘तीसरा विकल्प’ देने को तैयार है? यानी भारत या पाकिस्तान में मिलने के अलावा, क्या वह ‘आजाद’ भी हो सकता है? मैंने बताया कि हर पाक प्रधानमंत्री ने कश्मीर को ‘तीसरा विकल्प’ देने का विरोध किया है। कश्मीर के दोनों हिस्सों को हम दोनों देश ज्यादा से ज्यादा आजादी दें, लेकिन उन्हें अलग करने की बात करेंगे, तो सबसे ज्यादा नुकसान कश्मीर का ही होगा। पूरे दक्षिण एशिया का हमें महासंघ बनाना है, न कि उसके नए-नए टुकडे खडे करने हैं।

पाकिस्तान के कश्मीरी नेताओं तथा अन्य लोगों ने भी मुङो सुझाव दिए कि दोनों कश्मीर की सीमाएं खोलने, वीजा प्रक्रिया को सरल बनाने, व्यापार और आवाजाही बढमने के प्रयत्न नए सिरे से शुरू किए जाएं। ‘मुजाहिदीन-ए-अव्वल’ सरदार कय्यूम की इच्छा थी कि वह सडम्क मार्ग से एक बार श्रीनगर जरूर जाएं। कुछ कश्मीरी नेताओं ने कहा कि कश्मीर का हल होता रहेगा। पहले आप ऊपर बताए काम शुरू करवाएं।

भारत-पाक व्यापार बढने पर लगभग हर व्यक्ति ने जोर दिया। मैंने जब पूछा कि पाकिस्तान ने अभी तक भारत को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा क्यों नहीं दिया, तो उन्होंने कहा कि उर्दू में इसका अर्थ होता है- ‘सबसे पसंदीदा राष्ट्र!’ भला, भारत को आज यह नाम कैसे दिया जा सकता है? नाम बदलने पर तो समझौता हो गया है, लेकिन कुछ बडे उद्योगपतियों और किसान नेताओं ने मुङो बताया कि यदि हम पाकिस्तान का बाजार भारतीय माल के लिए पूरी तरह खोल देंगे, तो हमारे कारखाने बंद हो जाएंगे और हमारे किसान भूखे मर जाएंगे। इस पर मैंने कहा कि ऐसा हो जाए, यह हम बिल्कुल नहीं चाहते। दोनों देशों के विशेषज्ञ बात करें और उचित फैसले करें।

एक सज्जन ने कहा कि भारत के साथ न तो व्यापार खोला जाए और न ही उसे पाकिस्तान से होकर मध्य एशिया तक जाने का रास्ता दिया जाए, क्योंकि भारत का सस्ता माल पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगा और पाकिस्तानी जमीन पर भारतीय एजेंट जासूसी करेंगे। इससे पाकिस्तान की सुरक्षा खतरे में पड जाएगी। मेरा कहना था कि इसका एकदम उल्टा होगा। यदि भारत को पाकिस्तान से अत्यधिक लाभ होगा, तो भारत पाकिस्तान को सदा खुश रखने की कोशिश करेगा। पाकिस्तान जब चाहेगा, भारत का हुक्का-पानी बंद कर देगा।

पाकिस्तान के कई नेताओं और विदेश मंत्रालय के उच्च अफसरों ने कहा कि मोदीजी चाहें, तो सरक्रीक और सियाचिन का मामला मिनटों में हल कर सकते हैं। उनका कहना था कि आतंकवादी घटनाओं के कारण दोनों देशों का आपसी व्यवहार बंद नहीं होना चाहिए। आतंकवादी लोगों ने भारत से ज्यादा पाकिस्तान को तंग कर रखा है। उन पर किसी का वश नहीं है। हमने उन्हें खत्म करने के लिए फौजी अभियान चला रखा है। इस पर मैंने कहा कि क्या आपने अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई के पत्र पर ध्यान दिया है? उन्होंने मियां नवाज शरीफ को लिखा है कि आप सिर्फ पाक-विरोधी आतंकवादियों को ही खत्म न करें, जो अफगानिस्तान, भारत और चीन के खिलाफ हैं, उनका भी सफाया करें।

कुछ विशेषज्ञों ने माना कि अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद अराजकता फैली, तो दक्षिण एशिया में भी सीरिया-इराक जैसी स्थिति बन सकती है। मेरा सुझाव था कि अफगानिस्तान में भारत-पाक प्रतिस्पर्धा की बजाय सहयोग का ढांचा क्यों नहीं बने? इस प्रश्न पर पाकिस्तान के अनेक नीति-निर्माता भौंचक रह गए, लेकिन उन्होंने माना कि ऐसा हो जाए, तो दक्षिण एशिया की शक्ल ही बदल जाएगी। कुछ मित्रों का कहना था कि मोदी साहब आएं और इन सब मुद्दों पर बात करें, तो दोनों देशों के बीच संबंधों का नया अध्याय शुरू हो सकता है।

लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार व अंतर्राष्‍ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

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