बौद्धिकता की आड़ में हिंदुत्व का होता शिकार

हितेश शंकर

हिंदुत्व को कठघरे में खड़ा करना, उसमें अपराधबोध पैदा करना और फिर उस अपराधबोध की आड़ में तुष्टीकरण के खेल को खुलेआम चलाना-यह पैंतरा अपनाने वाले हिंदुत्व के पीछे पड़े हुए हैं

 
अभीथोड़े दिन पहले राहुल गांधी हिंदू और हिंदुत्व के बीच अंतर बता रहे थे और अब तक कांग्रेस सोशल मीडिया पर इस संबंध में एक पूरी श्रृंखला चला रही है। इस मुहिम में पी. चिदंबरम, सलमान खुर्शीद, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह जैसे सभी कांग्रेसी दिग्गज ताल ठोक रहे हैं।

इस बीच यह खुलासा हुआ है कि सितंबर 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए विस्फोट में तत्कालीन महाराष्ट्र एटीएस ने उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार समेत संघ के चार पदाधिकारियों का नाम लेने के लिए गवाहों पर दबाव बनाया था।

 मामले की जांच कर रही एनआईए की अदालत में अब तक 20 गवाहों का परीक्षण हुआ है जिसमें 15 गवाह मुकर चुके हैं। बीते दिनों पंद्रहवें साक्षी ने गवाही के दौरान बताया कि तत्कालीन महाराष्ट्र एटीएस के अतिरिक्त आयुक्त परमबीर सिंह ने उस पर योगी आदित्यनाथ और संघ के नेताओं का नाम लेने को कहा था। इन गवाहों की गवाही के आधार पर भोपाल से वर्तमान लोकसभा सदस्य साध्वी प्रज्ञा भारती, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित समेत कई लोगों को वर्षों तक जेल में रखकर प्रताड़ित किया गया था।

राहुल गांधी का हिंदू और हिंदुत्व में फर्क बताने का अभियान चलाना और मालेगांव विस्फोट मामले में गवाहों पर हिंदू नेताओं का नाम लेने का दबाव बनाना, क्या ये दोनों अलग-अलग बातें हैं या इसके पीछे हमें कांग्रेस की उस छटपटाहट को देखना चाहिए जो किसी भी तरह इस देश में हिंदुत्व को न सिर्फ लांछित करना चाहती है बल्कि उसे अपराधी की तरह कठघरे में खड़ा करना चाहती है। हिंदुत्व कठघरे में होगा तो वही सिलसिला चलेगा कि हिंदुओं पर अन्याय होता रहे किन्तु उस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने वाला कोई न हो।

यह कोई आज का विचार नहीं है, कांग्रेस का यह सतत विचार है। इसे समझने के लिए थोड़ा और पीछे चलें। याद कीजिए, आज जो राहुल गांधी कर रहे हैं, वही अपने समय में सोनिया गांधी ने भी किया था।

सोनिया सरकार के जमाने में इसने विकराल रूप धारण कर लिया जब उनके सुशील कुमार शिंदे और पी. चिदंबरम जैसे गृह मंत्रियों तथा उनके मातहत काम करने वाली पुलिस और जांच एजेंसियों ने इस्लामिक आतंकवाद को सही ठहराने और उस पर पर्दा डालने की नीयत से ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ के काल्पनिक विचार को जमीन पर उतारने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधना शुरू कर दिया।

थोड़ा और पीछे, यानी स्वतंत्रता के बाद नेहरू काल में चलते हैं। गांधी हत्या के बाद संघ पर आरोप लगाने वाली कांग्रेस का समाज से कटाव और तुष्टीकरण के लिए झुकाव जवाहरलाल नेहरू के समय भी ऐसा ही तो था!

मनोहर मलगांवकर की पुस्तक है ‘द मैन हू किल्ड गांधी’। इसमें जिक्र है कि एल.बी. भोपतकर से बातचीत में तत्कालीन विधि मंत्री डॉ. भीमराव आंबेडकर ने स्वयं बताया था कि कहीं कोई सबूत नहीं होने के बाद भी नेहरू किसी भी कीमत पर सावरकर को इस गांधी हत्याकांड से जोड़ना चाहते थे।

इस हठ का कारण? जवाहरलाल नेहरू की आंखों पर चढ़े साम्यवादी चश्मे से जो अक्स उभरता था, उसे भारत का चिरंतन मन अवरुद्ध करता था। इसी कारणवश उन्हें प्रखर सांस्कृतिक विचारक सावरकर और सांस्कृतिक चेतना जगाने में जुटा संघ, फूटी आंखों नहीं सुहाते थे। यदि ऐसा नहीं था तो आखिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकरण में संघ को हर आरोप से बेदाग ठहराए जाने के बाद भी इस पर प्रतिबंध लगा क्यों रहता?

यह क्या है। जिस बात से किसी का कोई संबंध न हो, उस बात से उसे जोड़ देना और उसे सामाजिक रूप से प्रताड़ित करना और अपनी राजनीतिक नैया खेते रहना….

नेहरू काल की उस सोच की निरंतरता आज भी मिलती है। हिंदू या सनातन विचार को दूषित करने के प्रयास आज भी जारी हैं। यही नेहरू कर रहे थे और सोनिया भी उसी राह पर थीं। राहुल भी वही राजनीति करना चाहते हैं।

एक प्रश्न और है। मुंबई हमले में कसाब पकड़ा गया था, उसके हाथ में कलावा था। पकड़ा गया व्यक्ति पाकिस्तानी मुसलमान था और चाह हिंदुत्व को लांछित करने की थी।

यूपीए राज में ‘हिंदू आतंकवाद’ की पैकेजिंग इस तरह कर दी गई थी कि आने वाले समय में इसके रंग के गहराने का अंदेशा होने लगा था। वह तो उनकी बदनसीबी थी कि अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया, वर्ना तो मुंबई हमले को हिंदू आतंकवाद से जोड़ ही दिया गया होता।

क्या हिन्दू समाज और संगठनों पर उन्मादी होने का झूठा ‘लेबल’ लगाने का काम कांग्रेस पार्टी तब नहीं कर रही थी? ‘भगवा आतंकवाद’ का हौवा खड़ा करने की तरकीब लेकर सबसे पहले राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह आए। इस शब्द को बार-बार दोहराने और जांच तथा विमर्श को धीरे-धीरे एक खास दिशा में धकेलने का काम खुद राहुल गांधी, पी. चिदम्बरम, सुशील शिंदे आदि ने किया। कांग्रेस ने तो इस मुद्दे पर अजीज बर्नी से पूरी किताब लिखवा मारी थी! इतना ही नहीं, बाद में कपिल सिब्बल द्वारा झूठ पर टिकी इस किताब के लेखक को अल्पसंख्यक मंत्रालय में सलाहकार के पद से भी नवाजा गया!

जरा सोचिए, कसाब के जिंदा पकड़े जाने के बाद भी अजीज बर्नी यह किताब लिखते हैं-
मुंबई हमला:आरएसएस की साजिश। और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह इसका विमोचन करते हैं। दिग्विजय के लिए ओसामा बिन लादेन और हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों के लिए भी ‘जी’ बिना संबोधन पूरा नहीं होता। इन महाशय को नफरत का पाठ पढ़ाने वाला जाकिर नायक ‘शांतिदूत’ नजर आता है, उन्हें हिंदुत्व से खतरा दिखाई देता है। जिनको औरंगजेब सूफी दिखाई देता है, जिनको अकबर महान दिखाई देता है, उन्हें हिंदुत्व से डर लगता है या वे हिंदुत्व से लोगों को डराना चाहते हैं।

परंतु षड्यंत्र की परतें उघड़ीं। मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश मारिया की आत्मकथा (लैट मी से इट नाउ) से यह बात साफ हो जाती है कि हाथ में कलावा बांधे कसाब और उसी की तरह हिन्दू पहचान ओढ़े मुस्लिम आतंकियों के पास फर्जी पहचान पत्र इसलिए थे, क्योंकि इस्लामी हमले को हिन्दू दिखाना ही उद्देश्य था!

हिंदुत्व को कठघरे में खड़ा करना, उसमें अपराधबोध पैदा करना और फिर उस अपराधबोध की आड़ में तुष्टीकरण के खेल को खुलेआम चलाना-यह पैंतरा अपनाने वाले हिंदुत्व के पीछे पड़े हुए हैं।

हिंदुत्व इन सबके निशाने पर है।
हिंदुत्व के प्रति राजनीतिक दुराग्रह का अध्ययन होना चाहिए और हिंदुत्व एवं संघ पर हमलावर इस्लामी आतंकी संगठन, ईसाई चर्च, नक्सल के परस्पर गठजोड़ पर अकादमिक स्तर पर अध्ययन होना चाहिए, इंटेलीजेंस के स्तर पर अध्ययन होना चाहिए। इनके आपसी रिश्ते, लेन-देन और मंशाओं को उजागर करना समय की जरूरत है।

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