भारत एक हिंदू राष्ट्र है:स्वामी त्रिदण्डी

hindu-rashtra-1स्वामी त्रिदण्डी जी महाराज अखिल भारत हिंदू महासभा के मार्गदर्शक मंडल के महासचिव हैं। उनका भारत के धर्म, संस्कृति और महासभा की नीतियों के विषय में चिंतन बहुत स्पष्ट है। उनके साथ हमारी चलभाष पर बातचीत हुई तो उन्होंने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि इस देश में हिंदू को आज भी एक संप्रदाय के रूप में देखा जाता है, जबकि हिंदू एक सम्प्रदाय नही है, अपितु भारत की राष्ट्रीयता से जुड़ा हुआ एक पावन शब्द है। हमारी भाषा एक, धर्म एक, इतिहास एक, संस्कृति एक और पहचान (भारतीय) एक है, इसलिए हम सब हिंदू राष्ट्र हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग पाकिस्तान को एक राष्ट्र मानते हैं या यूरोपियन देशों की स्थानीय विभिन्नताओं को उपेक्षित कर उन्हें एक राष्ट्र मानते हैं, उनको यह विचार करना चाहिए कि इन सबसे पहले भारत एक राष्ट्र है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है।

स्वामी जी महाराज ने कहा कि भारत को हिंदू राष्ट्र मानने या न मानने का हम किसी का समर्थन नही करते, क्योंकि भारत को हिंदू राष्ट्र मानने का चिंतन हिंदू महासभा का है। इस चिंतन को आधार बनाकर जिन लोगों ने अपनी विचारधारा का भवन खड़ा किया है वे सभी हिंदू महासभा के चिंतन से प्रभावित हैं। इसलिए हम ये तो कह सकते हैं कि वो लोग हमारी विचारधारा  का समर्थन कर रहे हैं तो इसलिए वह धन्यवाद के पात्र हैं, पर यह नही कह सकते कि हम उनकी बात का समर्थन करते हैं।

उन्होंने ‘उगता भारत’ को बताया कि राजनीति के जिन प्रकाण्ड पंडितों की दृष्टि में पाकिस्तान एक राष्ट्र है उनकी दृष्टि में लगभग नब्बे करोड़ हिंदू राष्ट्र इसलिए नही हैं चूंकि उन्हें भारत में विखण्डन उत्पन्न करके साम्प्रदायिक मतों की दरकार रहती है। इसलिए यहां हिंदू मुस्लिम सिख और ईसाई की बातें की जाती हैं और जब इससे भी काम नही चलता तो देश में जातीय वर्गीकरण किया जाता है, जिससे देश में साम्प्रदायिक सदभाव नही बन पाता।

स्वामी ने कहा कि हिंदू महासभा एक साम्प्रदायिक दल नही है। हां, इसे एक प्रखर राष्ट्रवादी संगठन अवश्य कहा जा सकता है।

इस संगठन को साम्प्रदायिक संगठन कहकर कांग्रेस तथा कम्युनिस्टों ने बदनाम किया। इन दलों को मुस्लिम मतों की इच्छा रही और इनकी वह इच्छा इसी आरोप से पूरी हुई कि महासभा एक साम्प्रदायिक संगठन है।

अन्यथा हिंदू महासभा की प्रत्येक विषय पर अपनी मौलिक और स्पष्ट सोच है और स्पष्ट नीतियां हैं।

बात यदि मुस्लिमों की ही की जाए तो महासभा किसी भी आधार पर साम्प्रदायिक तुष्टिकरण या किसी सम्प्रदाय के मौलिक अधिकारों की विरोधी नही है, मौलिक अधिकार सभी के समान हों, तथा विकास के अवसर सभी को सुलभ हों, लेकिन देश में समान नागरिक संहिता लागू हो। साम्प्रदायिक पहचानों को देश के कामन सिविल कोड के आड़े नही आने दिया जाना चाहिए।

स्वामी जी महाराज का कहना है कि ईसाई मिशनरियों ने स्वतंत्र भारत के पहले बारह वर्षों में ही अपनी संख्या में 42 हजार की बढ़ोतरी कर ली थी। अब यह संख्या लाखों में है। ये सारी मिशनरियां भारत को नष्ट करने के लिए काम कर रही हैं। धर्म निरपेक्षता का अर्थ ये कर दिया गया है कि तुम (हिंदू) चुप रहो और हमें अपना काम करने दो। जो दल या व्यक्ति इन राष्ट्रघाती कृत्यों का पर्दाफाश करने का प्रयास करता है वही यहां साम्प्रदायिक कहा और माना जाता है। जबकि पंथनिरपेक्ष भारत का तात्पर्य है कि राज्य का अपना कोई पंथ नही होगा, अपना कोई चर्च नही होगा। सीधी सी बात है कि राज्य सभी नागरिकों के मध्य समानता का व्यवहार करेगा। अत: ऐसी परिस्थितियों में भारत में इसी विचार धारा को अपनाकर राज्य को सभी नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए और समान नागरिक संहिता को यथाशीघ्र लागू करने की पहल मोदी सरकार को करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि मोदी को देश की जनता के समान नागरिक संहिता को यथाशीघ्र लागू कराके देश की साम्प्रदायिक विसंगतियों को दूर करने की शर्त पर वोट दिया है। हमें उनसे अपेक्षा है कि वे जनभावनाओं का सम्मान करते हुए देश में समान नागरिक संहिता को यथाशीघ्र लागू कराएंगे।

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