राष्ट्र के वृत्त की परिधि का केन्द्र है हिंन्दुत्व
समाचार है कि मुजफ्फरनगर और सहारनपुर दंगों की आड़ में अलकायदा ने भारतीय मुसलमानों से जिहाद में सम्मिलित होकर अपनी सक्रिय भूमिका सुनिश्चित करने की भावुक अपील की है। भारत में इस आतंकी संगठन का प्रमुख असीम उमर है। जिसके विषय में सुरक्षा एजेंसी का मानना है कि उसके तार पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जुड़े हैं। उसने अपने संगठन की पत्रिका में लेख लिखा है कि भारत के मुसलमानों को जिहाद का एक भाग बनना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अभी पिछले दिनों जब अमेरिका गये थे तो उन्होंने वहां के राष्ट्रपति ओबामा के साथ अपनी बातचीत में कहा था कि भारत के मुसलमानों की देशभक्ति असंदिग्ध है। मोदी के विषय में यह सच है कि वे जो कुछ बोलते हैं, उसको अवसर के अनुकूल करके बोलते हैं। उन्होंने भारतीय मुसलमानों के विषय में सही समय पर सधा सधाया बयान दिया, जिससे देश की एकता और अखण्डता को नष्ट करने के षडय़ंत्रों में लगी शक्तियों को करण्ट का झटका लगा। हम देख रहे हैं कि पी.एम. नरेन्द्र मोदी के उक्त बयान का सकारात्मक परिणाम आया है।
पर यह भी सच है कि इस देश में पहले से ही कई आतंकी संगठन चल रहे हैं। जिनकी ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए, अच्छा हो कि राष्ट्रभक्त मुसलमान भी सरकार के कार्यों में अपना सक्रिय सहयोग दें। सरकार को अटल सरकार के समय लिये गये पोटा कानून के निर्माण संबंधी निर्णय की समीक्षा करनी चाहिए। बात किसी समुदाय को अपमानित करने की नही है, बात देश को सम्मानित करने की है और देश तभी सम्मानित होगा जब ‘सबका साथ और सबका विकास’ के प्रधानमंत्री के आदर्श नारे की परिधि में ‘आतंक में जिसका हाथ, उसका विनाश’ को भी सम्मिलित कर लिया जाए। इसके लिए विपक्ष भी यदि अपना अपेक्षित सहयोग दे तो आतंकवाद के विरूद्घ एक कारगर रणनीति बनायी जा सकती है। जब अटल सरकार पोटा लायी थी तो उस समय जिन आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी की गयी थी, उनमें पंजाब से बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, जम्मू कश्मीर से लश्कर ए-तैयबा या सवांए-अहले-हदीस, जैश-ए-मौहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान, हरकत उल मुजाहिद्दीन/हरकत उल अंसार। हरकत उल जेहादी-ए-इस्लामी, हिजबुल मुजाहिद्दीन/हिजबुल मुजाहिद्दीन सीर पंजाब रेजीमेंट, अल उमर मुजाहिदीन और जम्मू कश्मीर इस्लामी फ्रंट सम्मिलित थे। इसी प्रकार उत्तर पूर्वी राज्यों में सक्रिय जिन आतंकी संगठनों को उस सूची में रखा गया था, उनके नाम थे-यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) नेशनल डेमोक्रेटिक फं्रट ऑफ बोडोलैण्ड, पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी कांगली पाक, काललीमाक कम्युनिस्ट पार्टी,कांगलेई याओल कानवा लुप, मणीपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट, ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा जबकि दक्षिणी भारत में सक्रिय आतंकी संगठनों में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिलईलम का नाम उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र में सक्रिय आतंकी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) व दीनदार ए अंजुमन और नक्सली संगठनों में पीपुल्स वार ग्रुप माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के नाम सम्मिलित थे।
जब कांग्रेस की मनमोहन सरकार 2004 में आयी तो उसने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के पोटा को निरस्त कर दिया और धीरे-धीरे आतंकवाद को देश में जिस प्रकार एक राष्ट्रीय समस्या मानने का मार्ग प्रशस्त हो रहा था, कांग्रेस के इस निर्णय से उस प्रयास को भारी धक्का लगा। यह दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य है कि हम स्वतंत्रता के बीते 67 वर्षों में अपनी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के शत्रुओं को भी नही पहचान पाये हैं। दुखपूर्ण तथ्य ये भी है कि राजनीति ही राष्ट्रनीति बनकर हमें आतंकवाद के विरूद्घ कठोर होने की प्रेरणा देती है तो राजनीति ही वोटों के लालच में आतंकवाद और आतंकवादी संगठनों को दूध पिलाती है। इसलिए कई लोग जब देशद्रोहियों के और राजनीति के अपवित्र गठबंधन को देखते हैं तो वे राजनीतिज्ञों को भी ‘देशद्रोही’ कहने से नही चूकते हैं।
हम भारतीय लोग राजनीति में राष्ट्रनीति नही खोज पा रहे हैं। यहां अनैतिक हठबंधन (गठबंधन नही) बनाये जाते हैं जो राजनीति को भी दबाव समूहों की भांति कार्य करने की स्थिति तक हम गिरा देते हैं। राजनीति अपना मार्ग भूल जाती है और उन अपवित्र मार्गों के बीहड़ों में जा भटकती है, जिन्हें देखकर लोग राजनीति पर देशद्रोही और राष्ट्रद्रोही होने के आरोप लगाते हैं। देश में राजनीति और राष्ट्रीय मूल्यों की स्थापना के लिए 67 वर्ष का समय बहुत होता है, पर हमने ये समय लगता है व्यर्थ की बातों में ही व्यतीत कर दिया है। हमने शासन को उच्चता नही दी, राजनीतिज्ञों को राष्ट्र के प्रति समर्पण नही दिया, और नागरिकों को मर्यादित आचरण नही दिया। इसलिए सर्वत्र अशांति है। शांति के पुजारी देश में अशांति को अस्तित्व उसकी उपलब्धि नही कही जा सकती। निश्चित रूप से हमने 67 वर्ष में बहुत कुछ खोया है। स्वातंत्रय वीर सावरकर ने जिस भारत का सपना संजोया था उसकी झलक ‘क्रांतिकारी चि_ियां’- पृष्ठ 96 पर मिलती हैं। वह लिखते हैं-‘‘हम ऐसे सर्वन्यायी राज्य में विश्वास करते हैं, जिसमें मनुष्य मात्र का भरोसा हो सके और जिसके समस्त पुरूष और स्त्रियां नागरिक हों, और वे इस पृथ्वी सूर्य और प्रकाश से उत्तम फल प्राप्त करने के लिए मिलकर परिश्रम करते हुए फलों का समान रूप से उपयोग करें, क्योंकि यही सब मिलकर वास्तविक मातृभूमि या पितृभूमि कहलाती है। अन्य भिन्नताएं यद्यपि अनिवार्य हैं तथापि वे अस्वाभाविक हैं। राजनीति शास्त्र का उद्देश्य ऐसा मानवी राज्य है या होना चाहिए जिसमें सभी राष्ट्र अपना राजनीतिक अस्तित्व अपनी पूर्णता के लिए मिला देते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे सूक्ष्मपिण्ड इंद्रिय मय शरीर की रचना में, इंद्रिमय शरीर पारिवारिक समूह में तथा पारिवारिक समूह संघ में तथा संघ राष्ट्र राज्यों में मिल जाते हैं।’’
स्वतंत्र भारत इस सर्वन्यायी राज्य की स्थापना को अपना लक्ष्य घोषित नही कर सका। यह एक कड़वा सच है, जिसे हम सबको स्वीकार करना चाहिए। हमने सर्वन्यायी राज्य के स्थान पर एक ऐसे राज्य की स्थापना कर डाली जिसमें पग-पग पर तुष्टिकरण होता दीखता है, तुष्टीकरण के माध्यम से एक बड़े वर्ग के अधिकारों का हनन करके उन्हें कथित अल्पसंख्यक वर्ग को देने के लिए हर राजनीतिक दल उतावला दिखता है। यह तो एक अन्यायपरक स्थिति है और यह स्थिति किसी राज्य का अंतिम लक्ष्य नही हो सकती। अंतिम लक्ष्य है मानवतावाद का विकास और विस्तार, जिसे राष्ट्रवासियों के रोम-रोम में बसा दिया जाए। उस मानवतावाद में ‘पहले मैं…., पहले मैं…’ का शोर नही होता है, अपितु ‘पहले आप.. पहले आप…’ का स्वर्णिम भोर होता है। भारत की संस्कृति में शिष्टाचार में ‘पहले आप’ कहने की परंपरा का गहरा राज है, जिसे उजाडऩे की ओर हमने कीर्तिमान स्थापित कर दिये हैं। इसलिए सर्वत्र अलगाववाद की बयार बह रही है, आतंकवाद का ज्वार चढ़ रहा है।
हमने ऊपर जितने भी संगठनों के नाम दिये हैं, ये सारे के सारे ही देश में ‘पहले मैं’ की अपसंस्कृति के प्रसारक हैं। ये अधिकारों के साथ साथ कत्र्तव्यों की ओर कोई ध्यान नही देते हैं और राज्य से ही नही अपितु देशवासियों से भी छीनकर खाने की अपसंस्कृति में विश्वास रखते हैं। यही राक्षसी वृत्ति है और इसी वृत्ति से जनसाधारण की रक्षा कराने के लिए राज्य की स्थापना प्राचीन काल में की गयी थी। तब हर व्यक्ति का और हर संवेदनशील हृदय का उद्देश्य ऐसी घातक सोच वाले लोगों को राष्ट्र और समाज का शत्रु माना जाना हमारा एक राष्ट्रीय संस्कार होता था। इसीलिए राम और लक्ष्मण को ऋषियों के यज्ञ कार्यों में विघ्न डालने वाले दुष्टों के संहार के लिए उनके पिता ने विश्वामित्र जी के साथ सहज रूप में ही भेज दिया था। जबकि आज इसके विपरीत हो रहा है, आज का राजनीतिज्ञ अपनी राजनीति को चमकाने के लिए ‘गुण्डों’ को पालता है। सारी व्यवस्था शीर्षासन कर गयी है, और हम हैं कि कहे जा रहे हैं कि देश उन्नति कर रहा है।
देश की राजनीति दिशाविहीन हुई तो देश ही दिशाविहीन हो गया है, देश की राजनीति विकृत हुई तो सारा देश विकृतियों से ग्रस्त हो गया और देश की राजनीति विसंगतियों में उलझी तो देश भी विसंगतियों में उलझ गया। क्या ही अच्छा हो कि ‘स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत’ के सफाई अभियान को मोदी जी ऊपर से आरंभ करें और राजनीति को स्वच्छ और स्वस्थ करते हुए देश के अंतिम व्यक्ति की ओर बढ़ें। हमारा विश्वास है कि ‘राजनीति के स्वच्छता अभियान’ में उन्हें जितने अनुपात में सफलता मिलती जाएगी, देश में उतनी ही जागृति आत्मविश्वास और पवित्रता आती जाएगी। एक समय आएगा कि जब सारा देश चमक उठेगा और उन्हें बाहर अर्थात जनसाधारण के मध्य अधिककार्य करने की आवश्यकता नही रहेगी। इसका कारण ये है कि राजनीति नाम की बगुली में ही राष्ट्र के प्राण निवास करते हैं। आतंकवाद की आश्रय स्थली राजनीति है। सारे नाग और राष्ट्रघाती लोगों को भोजन पानी राजनीति के संरक्षण में मिलता है। इसीलिए मानवतावाद और संवेदना शून्य राजनीति इस देश का दुर्भाग्य बन चुकी है।
1949 में सावरकर जी ने हिंदू महासभा के अध्यक्षीय भाषण में कहा था-‘हम ऐसा राज्य चाहते हैं जिसे विशुद्घ हिंदी राज्य रहने दिया जाए और वह मतदान लोकसेवाओं, कार्यालयों, कराधानों में धर्म अथवा जाति के आधार पर किसी प्रकार का पक्षपात या भेद न करे। किसी भी व्यक्ति को हिन्दू या मुसलमान ईसाई या पारसी के रूप में न पहचाना जाए।’’ सावरकर का हिंदुत्व सचमुच कितना विनम्र है। हमारा मानना है कि ऐसा विनम्र हिंदुत्व ही इस देश की वह कुंजी है जो सारी समस्याओं का एक मात्र समाधान रखकर चलती है। मोदी ने अमेरिका में जाकर बोला है कि भारत के मुसलमान की देशभक्ति असंदिग्ध है, हमारा मानना है कि सावरकर के इस विनम्र हिंदुत्व के प्रति निष्ठा भी हर राष्ट्रवादी मुसलमान की असंदिग्ध है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में हम इस हिन्दुत्व को अपनी राजनीति का आधार नही बना पाये इसलिए राष्ट्र वृत्त को बिना केन्द्र के ही घुमाने का प्रयास कर रहे हैं। अब भी समय है यदि परिधि का केन्द्र अब भी चुन लिया गया तो सब तरह के आतंकवाद और जिहादों का विनाश स्वयं हो जाएगा। भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू नही है, अपितु जो व्यक्ति इस देश को अपना देश मानकर इसे पितृभू और पुण्यभू मानता है, वह स्वभावत: हिन्दू है। हमारे वृत्त की परिधि का केन्द्र हिन्दू है।