पाइथागोरस प्रमेय नहीं बौधायन प्रमेय कहिए

सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी प्रखंड के बनगाँव में उत्सवी माहौल है।कोरोना-संक्रमण के नये वैरिएंट ओमिक्रोन के फैलाव की आशंकाओं के बीच ग्रामीण भगवान बौधायन की जयंती 31 दिसम्बर को मनाने जा रहे हैं।भगवान के तौर पर इस गाँव में नित्य पूजनीय बौधायन असल में महर्षि अथवा गणितज्ञ है।इन्होंने रेखागणित का सूत्रपात किया है पर दुर्भाग्य से बौधायन रचित प्रमेय के सिद्धांतों को आज दुनियाँ यूनानी गणितज्ञ पाइथागोरस के नाम से जानती हैं।बौधायन की जयंती प्रतिवर्ष पौष कृष्ण द्वादशी को मनाई जाती है।इनके विषय में कई प्रकार की किंवदंतियाँ फैली हुई है।जिसके कारण सदियों से मिथिला के लोग इस महान गणितज्ञ की पूजा ईश्वर रूप में करते आ रहे है।
महर्षि बौधायन ने 200 से अधिक ग्रंथों की रचना की थी। साथ ही उन्होंने शुल्बसूत्र के माध्यम से गणित के कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए। एक श्लोक द्वारा बताया गया है कि आयत में कर्ण का वर्ग आधार तथा लंब के वर्गों के योग से बराबर होता है।विद्वानों का मानना है कि बौधायन के प्रमेय सिद्धांतों को ही यूनानी गणितज्ञ पाइथागोरस ने विस्तार दिया था। बाद में इसी के आधार पर आर्यभट्ट ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में खोज की। इस संबंध में बात करते हुए दरभंगा इंजीनियरिंग कॉलेज के वरीय प्रोफेसर अविनाश मिश्रा कहते है कि
पाइथागोरस थ्योरम असल में शुल्बसूत्र है जिसे महर्षि बौधायन ने प्रतिपादित किया है।पाइथागोरस का तो जन्म ही ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में हुआ है जबकि भारत में ईसा पूर्व 15वीं शताब्दी में ही इसका प्रयोग हो रहा था।भारत के इस वैदिक गणितीय ज्ञान का बीज ऋग्वेद में मौजूद है और बौधायन ने इसी के आधार पर शुल्बसूत्रों की रचना की है जो आधुनिक रेखागणित का आधार है।इन्होंने पुष्टि करते हुए बताया कि ग्रंथों में जो तथ्य वर्णित है वो बतलाता है कि बौधायन का जन्म मिथिला क्षेत्र के सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी प्रखंड के वनगाँव में हुआ था। ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे।मिथिला चूंकि ज्ञान धरा रही है और वैदिक युग में यहाँ वेदों का मंथन कर उपनिषद, न्यायशास्त्र,स्मृतिग्रन्थ आदि की रचना ऋषि-महर्षियों ने की है।इसी दौर में महर्षि बौधायन ने भी रेखागणित या ज्यामिति के सूत्रों को लिखा।ग्रंथों में ज्यामिति को ही शुल्व सूत्र कहा गया है।असल में वैदिक यज्ञों में हवन कुंडों का निर्माण गणितीय आधार पर होती थी जिसकी संरचना के लिए रेखागणित की आवश्यकता पड़ती है।बौधायन ने इसी को आधार बनाकर शुल्बसूत्रों को रचा।प्रो.झा कहते है कि उस दौर में शुल्बसूत्र की कितनी महत्ता रही है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई अन्य महर्षियों ने भी ऐसे ग्रथों की रचना की है।महर्षि या गणितज्ञ बौधायन के पश्चात मानव, कात्यायन, मैत्रायण और आपस्तम्ब महर्षि ने भी शुल्बसूत्रों के सिद्धांत लिखे हैं। ।इस क्षेत्र में बौधायन की महत्ता इसलिए अधिक है क्योंकि उन्होंने शुल्ब सूत्रों की खोज सबसे पहले की।
इस संबंध में बात करने पर लनामिविवि दरभंगा के गणित विभागाध्यक्ष डॉ हरिश्चंद्र झा बताते है कि विश्व के प्रथम ग्रंथ ऋग्वेद में समस्त वैदिक गणित का सूत्र मौजूद है।इसी के ज्ञान को मिथिला के बौधायन सरीखे अन्य महर्षियों ने आगे बढ़ाया है।आज हमारे गणितीय ज्ञान को दुनियाँ दूसरे नामों से इसलिए जानती है क्योंकि हम खुद इस तथ्य से बेखबर बने हुए है।आजतक महर्षि बौधायन के सिद्धांतों को सिलेबस में शामिल नहीं किया गया।यह अफसोसजनक है कि जहाँ के गणितज्ञ ने रेखागणित का प्रादुर्भाव किया उसी जगह के विद्यार्थी उस ज्ञान को विदेशी विद्वान की देन समझकर पढ़ रहे हैं।इसके लिए यहाँ के विद्वानों को पहल करनी होगी और इस दिशा में अनुसंधान को बढ़ावा देना होगा तभी महर्षि बौद्धायन जैसे प्राचीन गणितज्ञ के साथ न्याय होगा तथा कई अन्य अनसुलझे पहलू भी उजागर होगें।
महर्षि बौधायन से जुड़ी कड़ी की तलाश में आगे बढ़ने पर ज्ञात होता है कि सीतामढ़ी के बाजपट्टी – बनगाँव को पुरातत्व विभाग ने भी महर्षि बौधायन की जन्मस्थली मान ली है और उसके आलोक में इसे पर्यटन क्षेत्र का भी दर्जा दिया जा चुका है।वैसे यहाँ बने मंदिर का निर्माण वर्ष 1958 में हुआ है जिसका उद्घाटन प्रसिद्ध संत देवराहा बाबा ने किया है।इस बौधायन मंदिर का संचालन आयोध्या का सार्वभौम दार्शनिक आश्रम करता है और उसी के माध्यम से प्रतिवर्ष पौष कृष्ण द्वादशी को बौधायन की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर वेदमंत्रों का स्वर कई दिनों तक गूंजता रहता है।विशेष पूजा होती है और लोग भगवान बौधायन से आशीष प्राप्त करते हैं।
पर्यटन विभाग के द्वारा मंदिर के सौदर्यीकरण का भी प्रयास चल रहा है।इसके तहत पर्यटक ,साधुओं के लिए धर्मशाला, बौधायन तालाब का घाट निर्माण, मंदिर का सौंदर्यीकरण, शौचालय, स्नान घर, परिक्रमा पथ का निर्माण हो रहा है।
स्थानीय लोगों की आस्था जिस कदर से महर्षि बौधायन के प्रति बलवती है उसे देखकर सहज ही यह यकीं हो जाता है कि बनगाँव का बौधायन मंदिर परिसर सिद्धस्थल है। यहाँ रोजाना सैकड़ों स्त्री-पुरूष, बच्चे-बूढ़े मंदिर में पूजा करते हैं।इस संबंध में स्थानीय हिन्दुस्तान अखबार के पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता अंजनी कुमार सिंह का कहना है कि वे वर्ष 2002 से ही भगवान बौधायन को गणितज्ञ बौधायन के रूप मान्यता दिलाने का अभियान चला रहे हैं और उसी का परिणाम है कि यहाँ के युवा आज इन्हें प्रमेय प्रणेता के तौर पर जानते हैं। बौधायन के गणितज्ञ के बदले भगवान के रूप में पूजित होने के पीछे प्रचलित किंदवंतियों का बड़ा हाथ रहा है।लोगों का मानना है बौधायन ईश्वर के पुत्र है।इस संबंध में प्रचलित कथा के मुताबिक बौधायन के माता-पिता निःसंतान थे।इन्होंने भगवान की तपस्या कर ब्रहमज्ञानी पुत्र माँगा।जिसके फलस्वरूप बौधायन का जन्म हुआ और जिन्होंने अपने ज्ञान से तत्कालीन विश्व को चमत्कृत कर दिया।इनको कई सिद्धियाँ भी प्राप्त थी जिसके बल पर ये लोगों की समस्याओं को दूर करते थे।आज भी विद्यार्थियों के बीच यह आस्था बरकरार है कि सच्चे मन से बौधायन भगवान की आराधना करने पर परीक्षा में सफलता मिलती है।
पत्रकार अंजनी कुमार सिंह बताते है यहाँ के लोग इनके गणितज्ञीय स्वरूप से अंजान थे पर जब मैंने इस संबंध में कई प्राचीन पुस्तकों का अध्ययन कर तथ्यों को उजागर किया तब लोग जागरूक हुए है।इस दिशा में और कार्य किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि महर्षि बौधायन की योगदान गणित के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी है।पत्रकार अंजनी बतलाते है कि महर्षि बौधायन की जीवनी लेखक पलटलाल( सियाराम) वकील ने श्री सूर्यनारायण झा अभिनव विद्यापति प्रेस लहेरियासराय से 1960 में प्रकाशित पुस्तक बोधायनाख्यान में चर्चा की है कि भारत विभाजन से पूर्व बौधायन रचित दर्शन और आध्यात्म से जुड़ी कई पुस्तकें लाहौर के मेहाचंद लक्ष्मण दास संस्कृत पुस्तकालय में मौजूद थी।जो बँटवारे के बाद वहीं रह गई।इसलिए जब इनके ऊपर विस्तृत अनुसंधान होगा तो अनेक अनछुए पहलू सामने आएंगे।
महर्षि बौधायन के ज्ञान को फिर से उनके नाम पर पेटेंट कराने का अभियान चला रहे स्वयंसेवी संस्था डॉ प्रभात दास फाउण्डेशन के सचिव मुकेश कुमार झा बताते है कि विश्व को शून्य से परिचित करानेवाला भारत गणितीय ज्ञान की नर्सरी रहा है। हमारे यहाँ पूरी दुनियाँ से लोग गणित सीखने आते थे।भारत गणित का रिसर्च सेन्टर हुआ करता था।इसलिए इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि पाइथागोरस का सिद्धांत महर्षि बौधायन का शुल्बसूत्र है।इस बात के पुख्ता प्रमाण भी मौजूद है।जिसके आधार पर हमारे कई शोधार्थी कार्य कर रहे है।जल्द ही इस दिशा में एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा।जिसमें ख्यातिलब्ध गणितज्ञ मंथन करेंगे।तत्पश्चात इस संबंध में सरकार को भी सूचित किया जाएगा और विश्व पटल पर आवाज बुलंद की जाएगी।

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