इस्लामी जिहाद या अरबी जिहाद?

अब से कुछ साल पहले तक हम गर्व से कहते थे कि मुजाहिद्दीन और तालिबान के साथ-साथ लड़ने वालों में दुनिया के कई देशों के मुसलमान युवक लगे हुए हैं लेकिन भारत का कोई भी मुस्लिम जवान इन सिरफिरों के चक्कर में नहीं फंसा है। हम मानते थे कि भारत का मुसलमान आंतरिक मामलों में कितना ही नाराज़ हो लेकिन वह इतना परिपक्व है कि बाहरी ताकतों का खिलौना बनना पसंद नहीं करता। वह पक्का देशभक्त है और भारत के खिलाफ आतंक फैलाने वालों के साथ कभी हाथ नहीं मिला सकता।

अब जबकि इराक और सीरिया में चल रहे इस्लामी युद्ध में से एक भारतीय नौजवान आरिफ मजीद को पकड़ा गया है तो यह सवाल उठने लगा है कि क्या भारत के मुसलमानों के दिल में भी इस्लामी राज्य के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा है? क्या वे भी मज़हब के नाम पर अपने मुल्क को भुला दे रहे हैं? आरिफ मजीद की गिरफ्तारी से अभी कई नए तथ्य सामने आने बाकी हैं लेकिन यह तो एकदम स्पष्ट है कि मजीद और उसके तीनों साथी किसी भारत-विरोधी तालिबानी या आतंकी गुट में शामिल नहीं हुए हैं। वे सिर्फ मज़हब के नाम पर बहक गए हैं। 20-22 साल की कच्ची उम्र और कच्ची अक्ल वाले इन लड़कों ने इंटरनेट पर जिहादी मसाला देखा और उसे चबाए बिना निगल गए। उन्होंने सोचा कि इस्लामी सल्तनत वाले लोग इस्लाम की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं तो चलें, हम भी लड़ें। लेकिन वहां जाकर हमारे इन लड़कों को असलियत का पता चल गया होगा। वह इस्लाम की नहीं, सत्ता की लड़ाई है।

अरबों के आपसी झगड़े हैं। कबीले एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं। उनके लिए इस्लाम से ज्यादा कीमती तो तेल है। कुर्द इलाकों के तेल पर कब्जे की लड़ाई को इस्लामी जिहाद का नाम दिया जा रहा है। यदि इस तथाकथित जिहाद का इस्लाम से कुछ लेना-देना होता तो ये जिहादी सीरिया और इराक के मुसलमानों का कत्ल क्यों करते, मस्जिदों को क्यों ढहाते, खानकाहों को क्यों जलाते?

लेकिन हमारे लिए चिंता का विषय यही है कि ‘इस्लामी राज्य’ ने अब भारत को अपना निशाना बनाने की घोषणा की है। वह पाकिस्तान में अपने पंख फैलाना चाहता है। यह दोनों देशों के लिए खतरनाक होगा। हमारे भारतीय नौजवान यदि इसी योजना के तहत इस जिहाद के रंगरुट बने हैं तो भारत सरकार को कठोरतम कार्रवाई करनी होगी। वैसे भारत के मुसलमान इन अरबी उठाइगीरों को अपने मुंह लगाने वाले नहीं हैं, यह गृहमंत्री राजनाथसिंह ने भी बड़े विश्वास के साथ कहा है। जरुरी यह है कि भारत सरकार ‘इंटरनेट’ पर कुछ ऐसा प्रतिबंध लगाए कि आतंकवाद संबंधी सभी सामग्री उस पर से नदारद हो जाए और मुस्लिम परिवारों के बुजुर्ग अपने नौजवानों पर कड़ी नजर रखें, जैसे कि आरिफ मजीद के वालिद ने रखी है। हमारे मुसलमानों को इस्लामी जिहाद और अरबी जिहाद में फर्क करना चाहिए।

Comment: