शायद यह भारत-पाक का नया अध्याय?

पेशावर के नर-संहार ने पाकिस्तान की जनता को जगा दिया है, इसमें जरा भी शक नहीं है। पाकिस्तान में शायद ही कोई आम आदमी होगा, जिसका दिल न दहल गया हो। लगता है, पाकिस्तान की जनता अब पूरी तरह से आतंकवाद के खिलाफ हो गई है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने पहली बार यह कहा है कि तालिबान, तालिबान हैं। उनमें अच्छा-बुरा कोई नहीं है। नरम-गरम कोई नहीं है। जब तक पूरी तरह से आतंकवादियों को उखाड़ नहीं दिया जाएगा, उनकी सरकार चैन से नहीं बैठेगी। पाकिस्तान के सेनापति जनरल राहील शरीफ तालिबान के उन्मूलन के लिए और भी ज्यादा कटिबद्ध दिखे। वे काबुल चले गए और उन्होंने राष्ट्रपति अशरफ गनी से भी मदद मांगी। नवाज़ शरीफ ने सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया, उसमें इमरान खान जैसे तालिबान प्रेमी नेताओं ने भाग लिया। सभी दलों ने एक सप्ताह में ऐसी रणनीति बनाने का संकल्प किया, जो आतंकवाद का सफाया कर सके।

लेकिन मेरी समझ में एक बात नहीं आई। मियां नवाज या अन्य किसी नेता ने भारत-विरोधी आतंकवाद को खत्म करने की बात नहीं कही। मियां नवाज़ ने यह तो कहा कि अफगानिस्तान और पूरे दक्षिण एशिया से आतंकवाद को खत्म होना है लेकिन उनके होठों पर भारत का नाम क्यों नहीं आया? इसका मतलब क्या है? क्या यह नहीं कि पाकिस्तान की फौज और सरकार ने भारत के विरुद्ध चल रहे आतंकवाद को अब तक ठीक माना है और उसकी पीठ ठोकी है? अब वह अचानक उसके मुंह पर चांटा कैसे रसीद करे? पाकिस्तान की यह दुविधा उसकी अपनी समस्या है। जब तक पाकिस्तान हर प्रकार के आतंकवाद का विरोध नहीं करेगा, आतंकवाद उस पर बूमेरेंग (पलटवार) होता रहेगा।

भारत की जनता ने पेशावर के हत्याकांड पर पाकिस्तान की जनता के साथ उसके दुख को पूरी शिद्दत साझा किया है। शायद दोनों देशों के इतिहास में परस्पर गहन सहानुभूति का यह पहला मौका है। करोड़ों भारतीय बच्चों ने अपने पाकिस्तानी भाइयों के लिए मौन रखा है, भारत के संसद ने गहरी शोक-संवेदना व्यक्त की है और प्रधानमंत्री मोदी ने भी गहरी इंसानियत का परिचय दिया है। मुझे विश्वास है कि यह घटना दोनों देशों के इतिहास में अब नया अध्याय शुरु करेगी।

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