झारखण्ड के रामगढ़ का टूटी झरना शिवमंदिर
अशोक प्रवृद्ध
भारतीय पौराणिक इतिहास की सबसे महत्?वपूर्ण कथा गंगावतरण, जिसके द्वारा भारतवर्ष की धरती पवित्र हुई, में इक्ष्वाकु वंशीय दिलीप के पुत्र भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने गंगा की धारा को देवलोक से भूलोक में गिरते समय अपनी जटा में सम्भालने के लिए हामी भर दी । तब ब्रह्मा के कमंडल से गंगा देवलोक से छोड़ी गईं और शंकर जी की जटा में गिरते ही विलीन हो गईं। पुन: भगीरथ के बहुत अनुनय-विनय करने पर शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिव की जटाओं से छूटकर गंगा हिमालय में ब्रह्मा के द्वारा निर्मित बिन्दुसर सरोवर में गिरी, उसी समय इनकी सात धाराएँ हो गईं। आगे-आगे भागीरथ दिव्य रथ पर चल रहे थे, पीछे-पीछे सातवीं धारा गंगा की चल रही थी। लब्बोलुआब यह है कि गंगावतरण की कथा में शिव ने गंगा की धारा को पृथ्वी में गिरते समय अपनी जटाओं में समेट ली और पुन: उनके द्वारा मुक्त किये जाने पर ही गंगा को शिव की जटाओं से बाहर निकलने का पथ मिल सका।
गंगावतरण की यह पौराणिक कथा तो त्रेता युग की है, परन्तु वर्तमान कलयुग में भी झारखण्ड प्रांत के रामगढ़ के एक रहस्यमयी शिवमंदिर में शिव को प्रतिक्षण अदृश्य जलस्रोत के द्वारा जल से अभिषिक्त करने का अद्भुत नजारा साक्षात् दृश्यमान है । लोक मान्यतानुसार झारखण्ड प्रांत के रामगढ़ में स्थित इस प्राचीन शिवमंदिर में शिव को यह जलाभिषेक कोई और नहीं वरन स्वयं माँ गंगा ही अपनी हथेलियों से करती हैं। हैरतंगेज बात तो यह है कि मंदिर में मौजूद शिवलिंग पर स्वत: अर्थात अपने-आप वर्ष के बारहों महीने और चौबीसों घंटे जलाभिषेक होता रहता है। यह पूजा सदियों से चली आ रही है । इस धारा में शिव भीगते रहते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। परन्तु यह आज भी रहस्यमय बना हुआ कि आखिर जल कहाँ से आता है ? अर्थात शिव को प्रतिक्षण जलाभिषिक्त करने वाली इस पानी का स्त्रोत कहाँ है? सूखा हो या बरसात, सर्दी हो या गर्मी, गंगा की नाभि से जल का बहना कभी भी बंद नहीं होता।
झारखण्ड के रामगढ़ जिला मुख्यालय अर्थात रामगढ़ केंटोन्मेंट से लगभग आठ किलोमीटर दूर जंगल में अवस्थित इस प्राचीन शिवमंदिर को स्थानीय लोग टूटी झरना के नाम से जानते और पुकारते हैं । दरअसल टूटी झरना के मंदिर में शिवलिंग के ऊपर माँ गंगा की एक प्रतिमा स्थापित है जिसके नाभि से अपने-आप पानी की धारा उसकी हथेलियों से होता हुआ शिवलिंग पर प्रतिक्षण गिरता रहता है और शिव को जल से अभिषिक्त करता रहता है । प्रकृति के इस अद्भुत चमत्कार को देख सनातन वैदिकों का मन भी स्वत: ही स्वयम्भू को नमन करने को मचल उठता है । शिव की शक्ति और गंगा की भक्ति की यह एक अनूठी तस्वीर है। कलियुग में भगवान का ये रूप और उनका चमत्कार नास्तिक को भी आस्तिक बना देता है।
झारखण्ड की राजधानी रांची से पैंतालिस किलोमीटर दूर स्थित रामगढ़ जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर जंगल में अवस्थित टूटी झरना के इस महादेव मंदिर को कब और किसने बनवाई पता नहीं , परन्तु वर्तमान में इसकी ऐतिहासिकता आंग्ल काल से जुडी हुई है । मंदिर की इतिहास के अनुसार, यह सन 1925 की बात है । जब अंग्रेज इस इलाके से रेलवे लाइन बिछाने का कार्य कर रहे थे ।
कार्य जोरों पर था, तब पानी के लिए खुदाई करने के दौरान उन्हें जमीन के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा। कौतूहलवश अंग्रेजों ने उस स्थान की पूरी खुदाई करवाई, जिससे इस शिवमंदिर का अस्तित्व लोगों के समक्ष प्रकट हुआ अर्थात जमीन में दबा यह मंदिर पूरी तरह से नजऱ में आया। स्थल की पूरी साफ़-सफाई की गई और देखा गया तो मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिवलिंग मिला और शिवलिंग के ठीक ऊपर माँ गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली। प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिवलिंग पर गिरता है। मंदिर का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि माँ गंगा की मूर्ति में कही भी कोई दूसरा सुराख नहीं है। अपने आप शिवलिंग पर गिर रहे जल को देखकर एक बार अंग्रेज भी आश्चर्यचकित हो गए थे। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि मंदिर के चमत्कार को देखकर अंग्रेज काल में अंग्रेजों की आंखें फटी की फटी रह गई थी। 1925 में मंदिर के अस्तित्व में आने के बाद से आज तक मंदिर के अन्दर गंगा की प्रतिमा से स्वंय पानी निकल शिव को अभिषिक्त करना अपने आप में एक कौतुहल का विषय बना हुआ है। प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि आखिर यह पानी अपने आप कहाँ से आ रहा है? यह बात अभी तक रहस्य बनी हुई है। श्रद्धालु शिवभक्तों का कहना है कि भगवान शंकर के शिवलिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं अदृश्य रूप से स्वयं माँ गंगा करती हैं। यहाँ मंदिर के निकट लगाये गए दो हैंडपंप भी रहस्यों से घिरे हुए हैं, जिसमें लोगों को पानी लेने के लिए हैंडपंप चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है । कारण यह है कि हैंडपंप में से अपने-आप सदैव पानी नीचे गिरता रहता है। वहीं मंदिर के पास से ही एक नदी गुजरती है जो सूखी हुई है लेकिन भीषण गर्मी में भी इन हैंडपंप से पानी लगातार निकलते रहना अचम्भे की बात बनी हुई है।
वर्तमान में इस मंदिर की कहानी और प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है और सालों भर शिवभक्त यहाँ पूजन-अर्चा हेतु आते रहते हैं । शिव और गंगा के चमत्कारी रूप के दर्शन करने के लिए यहाँ हमेशा श्रद्धालुओं को तांता लगा रहता है। शिवमास श्रावण मास में तो यहाँ प्रतिदिन शिवभक्त शिवोपासना हेतु आते हैं , परन्तु श्रावण के सभी सोमवार और महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव भक्तों की प्रचंड भीड़ यहाँ शिव को पूजा करने के लिए उमड़ पड़ती है और चतुर्दिक जय शिवशंकर , जय भोलेनाथ , बम बम भोले आदि शिव से सम्बंधित जय घोषों व नारों की अनुगूँज चहुंओर गुंजायमान हो उठती है । शिवभक्त मानते हैं कि यहाँ सच्चे दिल से मांगी गयी मुरादे सदैव पूरी होती है। श्रद्धालुओ का कहना हैं टूटी झरना मंदिर में जो कोई भक्त भगवान के इस अदभुत रूप के दर्शन कर लेता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। यहाँ शिवलिंग पर अभिषिक्त होती जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की परिपाटी है । शिवभक्त शिवलिंग पर गिरने वाले जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और फिर इसे अपने घर ले जाकर रखते भी हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस जल में इतनी चामत्कारिक शक्तियां समाहित हैं कि इसे ग्रहण करने के साथ ही मन शांत हो जाता है और दुखों से लडऩे की शक्ति मिल जाती है।