योगी आदित्यनाथ को इन गुनाहों की सजा मिलनी ही चाहिए

🙏बुरा मानो या भला🙏

————मनोज चतुर्वेदी

आजकल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कुछ जयचन्दों, ज्ञानचंदो और रायचन्दो द्वारा उत्तरप्रदेश के मुखिया बाबा योगिआदित्यनाथ पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने जातिवादी राजनीति को बढ़ावा दिया। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या पूर्ववर्ती सरकारों ने जातिवादी राजनीति को प्रश्रय नहीं दिया? सच तो यह है कि “केवल मुस्लिम बेटियां ही हमारी बेटियां हैं” कहने वालों ने न केवल जातिवादी बल्कि वर्ग विशेष के तुष्टिकरण की राजनीति और परिवारवाद को भी खूब खाद-पानी दिया।

दरअसल योगी सरकार का गुनाह यह है कि योगी सरकार ने किसी आजम खान, शफीकुर्रहमान बर्क या एसटी हसन को अपनी बग़ल में नहीं बैठाया। किसी निहत्थे रामभक्त पर गोली नहीं चलवाईं। गौकशी का कभी समर्थन नहीं किया। जालीदार टोपी पहनकर मुख्यमंत्री आवास में रोज़ा अफ्तारी नहीं कराई। मुख़्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे गुंडों-माफियाओं को सर पर नहीं बैठाया या यूं कहिये कि गुंडावादी मानसिकता को पनपने नहीं दिया। मंदिरों से लाउडस्पीकर नहीं उतरने दिए। मजहबी स्वतंत्रता की आड़ में फलती-फूलती धींगामुश्ती पर लगाम कस दी। कब्रिस्तानों की दीवारें नहीं करवाईं। सैफई महोत्सव जैसे आयोजन नहीं किये जिसमें कोई सलमान खान आकर ठुमके लगाए। मुजफ्फरनगर जैसे दंगे नहीं होने दिए। मौबलिंचिंग की आड़ में सरकारी खजाना नहीं लुटाया। बहु-बेटियों के बलात्कार को “लड़कों की मामूली ग़लती” नहीं माना। किसी मुग़ल बादशाह की शान में कसीदे नहीं गढ़े। उर्दू टीचरों की भर्तियां नहीं निकालीं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में किसी को भौंकने की आज़ादी नहीं दी। भगवा रंग को अपनाया। तिलक को कट्टरता और टोपी को सेक्युलरिज्म का प्रतीक नहीं बनने दिया। श्रीराम को अपना आराध्य माना। ईद पर सेवईयां भले ही नहीं खाईं हों लेकिन दीपावली पर मिठाईयां जरूर बटवाई। उपद्रवियों और आतंकियों की मौत पर विधवा विलाप नहीं किया। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे नहीं लगवाए, कट्टरपंथ की कमर तोड़ दी।

संक्षेप में कहें तो मुख्यमंत्री योगिआदित्यनाथ का सबसे बड़ा गुनाह यह है कि उन्होंने हिन्दू समाज को उनका खोया हुआ आत्मविश्वास और आत्मसम्मान लौटा दिया।
हिंदुओं को उनका खोया हुआ स्वाभिमान लौटा दिया। गूंगे-बहरे कमज़ोर गुलामों की तरह जीने वाले हिंदुओं को बोलने और सुनने की ताक़त दे दी। उन्हें उनके ही देश में गुलामों और निर्वासितों की जिंदगी जीने को मजबूर करने वालों को उनकी सही औक़ात बता दी। गर्व से कहो हम हिन्दू हैं के नारे को संजीवनी प्रदान कर दी,जो न जाने कब का मर चुका था।

शायद 2022 में कुछ जयचन्दों और मानसिक गुलामों द्वारा इन्हीं गुनाहों की सज़ा माननीय योगी जी को सुनाई जाने की कोशिश की जाएगी। और यह सही भी है योगिआदित्यनाथ को उनके इन पापों की सज़ा मिलनी ही चाहिए। वरना यह कैसे साबित होगा कि अहसान फरामोश और कायर हिन्दू (सभी नहीं) हजारों साल तक ग़ुलाम क्यों बना रहा।

🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है।

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