भारत का वैदिक हिंदू धर्म कभी संपूर्ण भूमंडल के लोगों का धर्म हुआ करता था। तब धर्म की नैतिक शक्ति से सामाजिक व्यवस्था से ही चला करती थी। कालांतर में जब संसार की वैदिक व्यवस्था में किन्ही कारणों से घुन लगने लगा और विभिन्न राष्ट्रीयताओं का जन्म हुआ तो अनेकों संप्रदाय, मत, पंथ, मजहब भी संसार में बड़ी तेजी से पैदा हुए।
भारत के वैदिक धर्म के मानने वाले लोगों के भीतर एक भाव बना रहा कि हम तो सारे संसार में सबसे अधिक हैं, इसलिए इस धर्म के मानने वाले लोगों ने नए पैदा होने वाले संप्रदायों और मजहबों के इरादों को गंभीरता से नहीं लिया। ‘सद्गुण विकृति’ का शिकार भारत का वैदिक हिन्दू समाज आज भी अपनी इस परंपरागत मूर्खता का शिकार है। उसे यह भ्रम है कि हम संसार में बहुत हैं, जबकि अब वह संसार में अल्पसंख्यक हो चुका है। उसे यह पता नहीं है कि अभी इस्लाम को मानने वाले लोगों ने कुछ समय पूर्व जिस देश को 56 वां इस्लामिक देश घोषित किया था, उसके ये सारे के सारे 56 देश कभी इसी भारत के अंग हुआ करते थे।
आंखें बंद कर ‘कबूतरी धर्म’ निभाते हुए हिंदू समाज दीर्घकाल से अपने विनाश का स्वयं ही कारण बनता रहा है। हिंदू समाज की इसी अज्ञानता के चलते अब एक दैनिक समाचार पत्र में समाचार छपा है कि ”प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के मुताबिक भारत में ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले तीन चौथाई (74%) हिंदू अकेले दक्षिण भारतीय राज्यों से हैं।” भारतवर्ष में बड़ी तेजी से हिंदू धर्मावलंबियों का धर्मांतरण कर उन्हें बड़ी गहरी षड़यंत्र भरी सोच के तहत ईसाई बनाया जा रहा है। कई राजनीतिक पार्टी और राजनीतिज्ञ ईसाई मिशनरियों के इस षड़यंत्र में सहयोगी हो रहे हैं। शत्रु हमारे घर के भीतर बैठा है और हमारी नाक के नीचे रहकर विनाश की योजनाएं बना रहा है। सबसे अधिक दु:ख की बात यह है कि जब हिंदू अपने विरुद्ध रचे जा रहे इस षड्यंत्र के विरुद्ध आवाज उठाता है तो उसे यह कहकर मौन कर दिया जाता है कि कोई भी व्यक्ति किस मजहब को अपनाता है या किस पूजा पद्धति को स्वीकार करता है ? – यह उसका अपना मामला है। इस पर किसी को शोर मचाने की आवश्यकता नहीं है। हिंदू के विरुद्ध दी जाने वाली इस दलील के चलते लोग शांत हो जाते हैं और उधर दुश्मन बड़ी संख्या में लोगों को भेड़ो की भाँति उठा – उठाकर अपने खेमे में सम्मिलित करने के अपने काम में सफल होता जाता है।
धर्मांतरण को लेकर जारी सियासत के बीच ”प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center)” के ताजा सर्वे में सामने आया है कि भारत में सर्वाधिक धर्मांतरण हिंदुओं का हो रहा है। हिंदू को भेड़ों की तरह मूंडा जा रहा है और अधिकांश राजनीतिक दल इस खेल को समझ कर भी इस की ओर से पीठ फेरे बैठे हैं। इन्हें सत्ता की तिकड़म तो याद रहती है और वे सारी जुगाड़बाजियां भी ये जानते हैं कि सत्ता कैसे प्राप्त की जा सकती है ? परंतु इस देश का मौलिक स्वरूप कैसे बचे ? – इस ओर इनका तनिक भी ध्यान नहीं है। ऐसे में यदि इनको देश का गद्दार कहा जाए तो गलती नहीं होगी। देश के राजनीतिक दलों की इस प्रकार की बेरुखी का क्रिश्चियन समुदाय को सर्वाधिक लाभ मिला है। सर्वे में सम्मिलित 0.4 प्रतिशत लोग पहले हिंदू थे जो धर्म परिवर्तित कर क्रिश्चियन बन गए। जबकि सिर्फ 0.1 प्रतिशत लोग पहले क्रिश्चियन थे।
भारत में हिंदू धर्म को पहुंचाई जा रही इस अपरिमित हानि के पीछे देश की सेकुलर राजनीति का बदरंग चेहरा छुपा हुआ है। इसके चलते वोटों की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल हिंदू नाम के जीव को धरती से विलुप्त करने में बड़ी अहम भूमिका निभा रहे हैं । भारत की ‘सामासिक संस्कृति’ के संरक्षण, प्रचार और प्रसार की जिस भावना की संविधान इनसे अपेक्षा करता है उसकी धज्जियां उड़ाने में ये सेकुलर राजनीतिक दल अग्रणी भूमिका में हैं। यही कारण है कि भारत में धर्मांतरण कर ईसाई बनाने के जिस बड़े काम को अंग्रेज अपने शासनकाल में नहीं कर पाए उसे देश के काले अंग्रेजों ने करके दिखा दिया। देश को जब 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी तो ईसाई समुदाय की कुल जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या के आधा प्रतिशत थी , जो अब बढ़कर लगभग 5% हो गई है । कहने का अभिप्राय है कि अंग्रेज अपने शासनकाल में भारत के धर्म को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा पाए। जबकि भारत के काले अंग्रेजों ने इसे बहुत बड़ी क्षति पहुंचा दी है।
प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के मुताबिक भारत में ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले तीन चौथाई (74%) हिंदू अकेले दक्षिण भारतीय राज्यों से हैं। यही कारण है कि दक्षिण भारत के राज्यों में क्रिश्चियन आबादी में थोड़ी सी वृद्धि भी हुई है। सर्वे में सम्मिलित लोगों में से 6 प्रतिशत दक्षिण भारतीय लोगों ने बताया कि वे जन्म से क्रिश्चन थे। जबकि 7 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे इस वक्त क्रिश्चियन हैं।
अभी पिछले दिनों मैं अपने गांव के एक दलित भाई से मिला जो कि बैंक मैनेजर हैं। उन्होंने बातचीत के सिलसिले में मुझे बताया कि मैंने अपनी नौकरी के काल में सबसे अधिक लाभ मुसलमान और दलितों को पहुंचाया है । उनके मुंह से ऐसे शब्द सुनकर मुझे घोर आश्चर्य हुआ और साथ ही मैंने यह अनुमान लगाया कि ”जय भीम और जय मीम” का जुनून किस कदर हमारे दलित भाइयों के मन मस्तिष्क में चढ़ चुका है ? कम्युनिस्ट और मुसलमान मिलकर इन दलितों के दिमाग में यह बात सफलतापूर्वक स्थापित करते जा रहे हैं कि तुम हिंदू नहीं हो, बल्कि हिंदू तो इस देश की अगड़ी जातियां हैं जिन्होंने तुम्हें सदा उत्पीड़ित किया है । तुम्हें उस उत्पीड़ित करने वाले वर्ग के विरुद्ध अब मैदान में उतर आना चाहिए। मुसलमानों के साथ-साथ जहां-जहां ईसाई बहु संख्या में हैं वहां वे भी इसी खेल को खेल रहे हैं। जिससे हिंदू समाज के लिए दलित भाइयों का विद्रोहात्मक दृष्टिकोण बहुत ही चिंता का विषय बन चुका है । हिंदू समाज के शत्रु लोग हिंदुओं को जातीय संघर्ष में धकेल देना चाहते हैं। दलित मुस्लिम उत्पीड़न का बहुत अधिक संख्या में शिकार होकर भी ”जय भीम और जय मीम” के नारे में फंस कर अपने ही लोगों के विरुद्ध लामबंद होता जा रहा है। उधर अगड़ी जातियां भी जातीय अहंकार में अपने दलित भाइयों को गले लगाने को तैयार नहीं हैं। मेरे गांव के उपरोक्त दलित भाई के ऊपर भी इसी प्रकार का हिंदूद्रोही विचार हावी प्रभावी हो चुका था।
अब उपरोक्त सर्वे के अनुसार धर्म परिवर्तन करने वालों में लगभग आधे अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। सर्वे के अनुसार ऐसे हिंदू जो धर्म परिवर्तन कर क्रिश्चियन बन गए, उनमें लगभग आधी आबादी (48 प्रतिशत) अनुसूचित जाति के लोगों की है ।
जबकि 14% एसटी, जबकि 26% ओबीसी वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि हिंदू धर्म छोड़ क्रिश्चियन में परिवर्तित होने वाले 45% लोगों ने कहा कि भारत में खासकर अनुसूचित जातियों के साथ भेदभाव की बड़ी समस्या है और धर्मांतरण के पीछे यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है।
वास्तव में देश में इस समय हिंदू समाज के भीतर व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए एक जनान्दोलन की आवश्यकता है । इतना ही नहीं जो लोग दलित समाज के लोगों को भड़काकर हिंदू समाज के विरोध में लाने का काम कर रहे हैं ,उनके विरुद्ध भी शासकीय स्तर पर कठोर कार्यवाही की जानी अपेक्षित है। इस समय देश की सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि दलित समाज किसी भी दृष्टिकोण से और किसी भी कीमत पर हिंदू समाज से टूटने न पाए। वोटों की राजनीति के फेर में यदि दलित – मुस्लिम – ईसाई आदि का गठजोड़ हुआ तो यह बिना संघर्ष ही देश को तोड़ने और नए-नए पाकिस्तान बनाने का एक आधार बन जाएगा। इसलिए सरकारों को जागने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त जो राजनीतिक दल इस समय सेकुलर गैंग में सम्मिलित होकर भारत के मौलिक सामाजिक स्वरूप को बिगाड़ने का कार्य कर रहे हैं उनकी राजनीतिक मान्यता भी समाप्त की जानी चाहिए। ध्यान रहे कि राजनीति, राजनीतिक दल और देश के राजनीतिज्ञ देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए पैदा होते हैं , देश के सामाजिक परिवेश को अथवा सामाजिक समरसता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए पैदा होते हैं और देश के धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए पैदा होते हैं। यदि यह भाव राजनीतिक दलों ,राजनीतिज्ञों और राजनीति में नहीं है तो फिर इनका सबका होना निरर्थक है। इन निरर्थक संस्थानों, पार्टियों और लोगों की भीड़ के बीच हिंदू को यह समझ लेना चाहिए कि उसका अस्तित्व इस समय गहरे संकट में है। बात यही है कि – ”बचके रहना रे बाबा, तुझपे नजर है …।”

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

 

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