क्या है दलित मुस्लिम एकता की जमीनी सच्चाई

 

पाकिस्तान से समाचार मिला। सरकार द्वारा विभिन्न संस्थानों में नौकरियों हेतु विज्ञापन निकाला गया हैं। उन विज्ञापनों में सफाई कर्मचारी का स्थान आरक्षित किया गया हैं। आप अचंभित हो रहे होंगे कि पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क है। उसमें आरक्षण का क्या काम। क्यूंकि आपने तो सुना होगा कि इस्लाम में कोई भेदभाव नहीं हैं। पर जनाब आपको जानकार अचरज होगा कि पाकिस्तान में भी आरक्षण लागु है। इस आरक्षण का लाभ केवल और केवल वहां के गैर मुसलमानों को मिलता है। जिसमें दलित हिन्दू, ईसाई समुदाय के लोग आते हैं। इन सभी के लिए पाकिस्तान की सरकार ने यह नियम बनाया है कि सफाई करने, शौचलय साफ़ करने, झाड़ू लगाने जैसे कार्य उनके मुल्क में कोई मुसलमान नहीं करेगा। यह काम केवल और केवल गैर मुसलमानों से कराया जायेगा। अब पाकिस्तान में रहने वाले अधिकांश निर्धन हिन्दू या तो दलित है अथवा धर्मांतरित वाल्मीकि समुदाय से सम्बंधित ईसाई हैं। जो 1947 में पाकिस्तान में रुक गए थे। अब पाठक सोच रहे होंगे कि वे क्यों रुके। उन्हें तो डॉ बाबा साहिब अम्बेडकर का कहना मानकर भारत आ जाना चाहिए था। अब यह इतिहास आपको जानना बेहद आवश्यक है।

भारत के विभाजन के समय दलित समाज के दो अहम नेता थे डॉ बाबा साहिब अम्बेडकर और दूसरे थे जोगेंद्र नाथ मंडल। जोगेंद्र नाथ मंडल ने बाबा साहेब का तब साथ दिया था जब 1945-46 में संविधान-निर्माण समिति के लिए चुनाव में बाबासाहेब बंबई से चुनाव हार गए तब जोगेंद्र नाथ मंडल ने उन्होंने अविभाजित बंगाल से जितवाया था।

दलित-मुस्लिम गठजोड़ और जय भीम-जय मीम का नारा देने वाले आपको कभी जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम लेते नहीं दिखेंगे । क्योंकि इसके पीछे एक बड़ा कारण है, वह हैं इसका परिणाम। मंडल ने पूर्वी अविभाजित भारत की सियासत में दलितों का नेतृत्व किया । इतिहास मे पहली बार दलित-मुस्लिम गठजोड़ का प्रयोग जोगेंद्र नाथ मंडल ने ही किया था। डॉ अंबेडकर से उलट उनका इस नए गठबंधन पर अटूट विश्वास था। मुस्लिम लीग के अहम नेता के तौर पर उभरे जोगेंद्र नाथ मंडल ने भारत विभाजन के वक्त अपने दलित अनुयायियों को पाकिस्तान के पक्ष मे वोट करने का आदेश दिया था। सिलहट वर्तमान में बांग्लादेश में है। वहां हिन्दुओं और मुसलमानों की आबादी लगभग समान थी। मंडल के कहने पर दलित हिन्दुओं ने मुसलमानों का पक्ष लिया और सिलहट पाकिस्तान का भाग बन गया। इस प्रकार से मुस्लिम लीग मण्डल के सहयोग से भारत का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने मे सफल हुआ। यहाँ तक कि जब बंगाल में भयंकर दंगे हुए तो मंडल ने बंगाल में घुम घुमकर दलित हिन्दुओं को मुसलमानों के विरुद्ध हथियार उठाने से मना किया। अपने कृत्यों से वह तत्कालीन बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी के खासमखास बन गए। मंडल का कहना था कि मुसलमान भी दलित हिन्दुओं के समान शोषित और पीड़ित हैं।

1947 में बांग्लादेश इलाके के लाखों सवर्ण हिन्दू भारत में आकर बस गए। जबकि मण्डल का कहना मानकर लाखों दलित हिन्दू मुस्लिम एकता के नारे का समर्थन करते हुए पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में ही बस गए। विभाजन के बाद मुस्लिम लीग ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ का मान रखते हुए मंडल को पाकिस्तान का पहला कानून मंत्री बनाया था। वे पाकिस्तान के संविधान लिखने वाली कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे। जोगेंद्र नाथ मंडल ने वैसे ही पाकिस्तान का संविधान रचा है जैसे बाबासाहेब ने भारत का संविधान।

पर छल अधिक दिनों तक नहीं छुप सकता। अब मुस्लिम लीग को दलित-मुस्लिम एकता का ढोंग करने की कोई आवश्यकता नहीं थी । उनके लिए हर गैर-मुस्लिम काफिर के समान था चाहे वह सवर्ण हो चाहे वह दलित हो। पूर्वी पाकिस्तान में धीरे धीरे मण्डल की अहमियत खत्म होती गई। उनके कहे पर रुकें दलित हिन्दुओं पर मज़हबी अत्याचार आरम्भ हो गए। 1950 में पूर्वी पाकिस्तान में अनेक दलित हिन्दुओं को मार दिया गया। दलित हिन्दुओं का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। न उनसे कोई व्यापारिक सम्बन्ध रखता था। न ही कोई उनकी सहायता करना चाहता था। 30% दलित हिन्दू जनसँख्या का भविष्य अन्धकारमय हो गया। यह देख मण्डल ने दुखी होकर जिन्ना को कई पत्र लिखे। उनके भाव कुछ इस प्रकार से थे –

मंडल लिखते है-

“मुस्लिम लोग हिंदू वकीलों,डॉक्टरों, दुकानदारों और कारोबारियों आदि का बहिष्कार करने लगे। जिसकी वजह से इन लोगों को जीविका की तलाश में पश्चिम बंगाल जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। गैर-मुस्लिमों के संग नौकरियों में अक्सर भेदभाव होता है। लोग हिंदुओं के साथ खान-पान भी पसंद नहीं करते।
पूर्वी बंगाल के हिंदुओं (दलित-सवर्ण सभी ) के घरों को आधिकारिक प्रक्रिया पूरा किए बगैर कब्जा कर लिया गया। हिंदू मकान मालिकों को मुस्लिम किरायेदारों ने किराया देना काफी पहले बंद कर दिया। ऐसे भेदभाव भरे माहौल में हिन्दू कैसे जीवन यापन करे।”

जोगेन्द्र नाथ मंडल ने कार्यवाही हेतु बार- बार चिट्ठीयां लिखी। पर इस्लामिक सरकार को न तो कुछ करना था, न किया। आखिर उसे समझ आ गया कि उसने किस पर भरोसा करने की मूर्खता कर दी है। ऐसे माहौल में जोगेंद्र नाथ मंडल भी भेदभाव का स्वयं शिकार हुए। उनकी मानसिक अवस्था संतोषजनक तो दूर बल्कि हताशाजनक हो गई। उन्हें अपना भविष्य पूरी तरह अंधकारपूर्ण में दिखने लगा। तत्कालीन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अपना त्याग पत्र देकर 1950 में बेइज्जत होकर जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आया। भारत के पश्चिम बंगाल के बनगांव में वो गुमनामी की जिन्दगी जीता रहा। अपने किये पर 18 साल पछताते हुए आखिर 5 अक्टूबर 1968 को उसने गुमनामी में ही अंतिम साँसे ली।
मण्डल तो वापस आ गया लेकिन उनके गरीब अनुयायी वहीं रह गये। अनेक भाग कर भारत आ गए। अनेक बेईज्जत हुए। अनेक मुसलमान बन गये। अनेकों ने द्वितीय दर्जे का जीवन जीते हुए अपमान का घुट पिया। मुसलमानों ने उनसे मैला उठवाने जैसे कामों में लगाया। आखिर भूखे पेट उन्हें यह स्वीकार करना पड़ा। 1971 के पश्चात बांग्लादेश बन गया मगर मैला उठवाने का कार्य आज भी पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों अर्थात दलित हिन्दुओं और वालमीकि समाज के धर्मान्तरित ईसाईयों से करवाया जाता हैं। इसके साथ साथ उन्हें कभी उच्च शिक्षा प्रपात करने नहीं दिया जाता, उनकी कभी ऊँची नौकरियां नहीं लगती। क्यूंकि पाकिस्तानी मुसलमानों का मानना है कि अगर ये लोग पढ़ लिख गए तो फिर कभी मैला नहीं उठाएंगे। एक मुसलमान के लिए तो ऐसा काम करना हराम हैं।
यह है दलित-मुस्लिम एकता की जमीनी हकीकत। भारत में भी जो तथाकथित जातिगत राजनीती करने वाले नेता जय भीम-जय मीम का नारा लगा रहे हैं। उनके समर्थक इस लेख को पढ़कर अपने भविष्य, अपनी आने वाली पीढ़ियों के साथ क्या होगा। इसका आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं। स्वतंत्र भारत में दलित समाज की स्थिति और पाकिस्तान-बंगलादेश में दलित समाज की स्थिति भविष्य का आईना हैं।*।*

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