कांग्रेस, आप और कम्युनिस्टों के हाथ पहले से ही रंगे हैं किसानों के खून से

 

जैसाकि अब जगजाहिर हो चूका है कि किसान आंदोलन के नाम पर ये जमावड़ा उन आढ़तियों का है, जो अब तक किसानों का शोषण कर रहे थे, लेकिन ये लोग जिन लोगों के हाथ खेल रहे हैं, वह आंदोलन शुरू पर ही सामने आ गया।
फिर जिन पार्टियों कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और कम्युनिस्टों के हाथ पहले ही किसानों के खून में रंगे हैं, उनके कंधे बैठ देश में अराजकता फैलाना इनकी मंशा को भी स्पष्ट करता है। ज्ञात हो, जब दिल्ली के जंतर मंतर पर आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन के दौरान, अप्रैल 2015 को अरविन्द केजरीवाल के भाषण के दौरान एक गजेंद्र सिंह नाम का किसान पेड़ पर लटक कर आत्महत्या कर रहा था,(देखिए चित्र) केजरीवाल ने अपना भाषण जारी रखा, जो यह भी सिद्ध करता है कि कांग्रेस और कम्युनिस्टों की तरह यह पार्टी भी हमदर्दी की नौटंकी कर रही है। 

नए कृषि कानून का कांग्रेस समेेत लेफ्ट पार्टियां भी विरोध कर रही हैं, साथ ही किसानों को सरकार के खिलाफ उकसाने के हरसंभव कोशिश भी कर रही हैं। इन पार्टियों का इतिहास किसानों पर अत्याचार करने का रहा है। 1998 में मध्य प्रदेश की कांग्रेसी दिग्विजय सिंह सरकार ने आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस फायरिंग का आदेश दिया था, जिसमें 22 किसानों की मौत हो गई थी तो 2006 में पश्चिम बंगाल के सिंगूर और नंदीग्राम में वामपंथी बुद्धदेव सरकार ने अपनी जमीन के लिए लड़ रहे किसानों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था, जिसमें 14 किसानों की मौत हो गई थी।
किसानों पर अत्याचार करने में कांग्रेस का कोई सानी नहीं है। यह 1998 की बात है, जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कार्यकाल में मुलताई हत्याकांड को अंजाम दिया गया था, जिसमें पुलिस फायरिंग में 22 किसान मारे गए थे। फायरिंग का आदेश तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ही दिया था। 

मुलताई गोली कांड

बैतूल जिले की मुलताई तहसील में 1998 में ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से खराब हुए गेहूं की फसलों पर किसान 5000 रुपए प्रति एकड़ की दर से मुआवजा मांग रहे थे। यहां तीन साल से लगातार न तो कांग्रेस के एजेंडे में मुआवजा दिए जाने की बात थी और न ही दिग्विजय सिंह सरकार ने किसानों की मांग पर कोई गौर किया। इस वजह से प्रदेश में मुलताई ब्लॉक के लगभग 2500 किसानों ने मिलकर आंदोलन की चेतावनी दी।

मुलताई थाने के रिकॉर्ड अनुसार इस घटना में 22 किसानों की मौत हुई और 150-200 घायल हो गए।सरकार का गफलतभरा बयान

मुलताई गोलीकांड में भी पहले सरकार यह कहकर मुकर गई थी कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई है। बाद में स्वीकारना पड़ा कि पुलिस फायरिंग हुई थी और आंदोलन में मौजूद किसानों की मौत हुई थी।

प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने घटना के बाद इसे जलियांवाला बाग कहते हुए तत्कालीन कलेक्टर और एसपी पर केस दर्ज करने की मांग की थी।

कांग्रेस सरकार की नीति 

लगभग हफ्तेभर से चल रहे इस आंदोलन को लेकर कांग्रेस सरकार ने कोई गंभीरता नहीं बरती। किसानों ने 12 जनवरी 1998 को तहसील मुख्यालय घेरने की चेतावनी दी तो भारी पुलिस बल लगा दिया गया। आसपास के गांवों से किसानों को मुलताई नहीं पहुंचने देने के लिए रास्ते ब्लॉक कर दिए तो विवाद भड़क गया। पथराव शुरू होते ही पुलिस ने फायरिंग शुरू की।

 

जब कम्युनिस्टों ने रंगे किसानों के खून से हाथ  

2006 में पश्चिम बंगाल सरकार ने कार फैक्ट्री के लिए हुगली जिले के सिंगूर में 5 गांव से किसानों की जमीन लेने का फैसला लिया। 18 मई 2006 को टाटा ग्रुप ने ऐलान किया कि वह पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के सिंगूर में करीब 997 एकड़ जमीन पर लखटकिया कार फैक्ट्री बनाएंगे। पश्चिम बंगाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सिंगूर के पांच गांव गोपालनगर, सिंघेरभेरी, बेराबेरी, खासेरभेरी और बाजेमेलिया के 9 हजार से अधिक किसानों से लगभग 997 एकड़ जमीन लेने की योजना तैयार की।

राज्य सरकार ने इसके लिए 6 हजार किसानों को जमीन देने के लिए राजी कर लिया, लेकिन शेष किसानों ने जमीन देने से मना कर दिया। हालांकि, सरकार ने उनसे जबरन जमीन पर कब्जा ले लिया. जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में 14 किसान मारे गए।

नंदीग्राम : अधिकरण के नाम पर किसानों का संघर्ष 

सिंगूर के अलावा नंदीग्राम शहर भी किसानों के साथ हुई बर्बरता के लिए जाना जाता है। नवंबर 2007 में पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में इंडोनेशिया की एक कंपनी सालिम ग्रुप के स्पेशल इकॉनोमिक जोन के लिए जमीन अधिग्रहण के विवाद में पुलिस के साथ हुए संघर्ष में 14 किसानों की जान चली गई।

‘इंडिया फर्स्ट’ से साभार

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