प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणविद् डॉ संजीव कुमारी की पुस्तक ‘झड़ते पत्ते’ को मिला ‘श्रेष्ठ कृति पुरस्कार’

★ उन्हीं की दूसरी पुस्तक “तिसाया जोहड़ ” को भी प्रकाशन हेतु मिला साहित्य अकादमी से अनुदान
★दोहरी सफलता से परिवार औऱ लोगों मे हर्ष व्याप्त, बधाइयों का ढ़ेर
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राकेश छोकर / नई दिल्ली
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अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणविद् डॉक्टर संजीव कुमारी की पर्यावरण सतसई ” झड़ते पत्ते” साहित्य अकादमी हरियाणा के द्वारा श्रेष्ठ कृति के रूप में सम्मान हेतु चयनित की गई है। यही नहीं उनकी दूसरी प्रकाशाधीन पुस्तक ” तिसाया जोहड़ ” को भी अनुदान प्रदान किया गया है। उनको मिले दोहरे सम्मान से चहुँ औऱ हर्ष व्याप्त है ।
उनकी पर्यावरण सतसई पर आधारित ‘झड़ते पत्ते’ नामक पुस्तक को हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला के द्वारा वर्ष 2018 के हिंदी श्रेष्ठ कृति योजना के अंतर्गत 31,000 रुपए का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। विदित हो कि इस पुस्तक का विमोचन महामहिम राज्यपाल हरियाणा सत्यदेव नारायण आर्य ने राजभवन चंडीगढ़ में किया था। यह हरियाणा के सामान्य ज्ञान में बतौर प्रशन आती है। यह पुस्तक चर्चाओं में रही है क्योंकि यह अपने आप में पूरे भारतवर्ष में एक अलग तरह की पुस्तक है , जिसमें पर्यावरण संरक्षण पर 707 दोहे लिखे गए हैं।

इसी कारण से यह इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज होने का खिताब हासिल कर चुकी हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए पांडुलिपियों को अनुदान भी दिया जाता है। डॉक्टर संजीव कुमारी की हरियाणवी में लिखी एक और पुस्तक ‘तिसाया जोहड़’ को भी वर्ष 2018 की अनुदान योजना में चुना गया है। यह पुस्तक हरियाणवीं में पर्यावरण संरक्षण पर लिखी गई है। इसमें 10000-20000 रुपए तक की राशि अनुदान में दी जाती है।
इससे पहले भी महिला व बाल विकास विभाग हरियाणा सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2016 पर नारी शक्ति पुरस्कार, गीतामहोत्सव नवंबर 2017 में महामहिम राज्यपाल हरियाणा व मार्च 2018 में मुख्यमंत्री हरियाणा द्वारा सम्मानित हो चुकी हैं। ‘हरियाणा के लोकगीत’ हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला द्वारा 2014 में, ‘हरियाणा: लोकगीतों के झरोखे’ से 2019 में हरियाणा ग्रंथ अकादमी पंचकूला द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं। बरगद के नीचे की मिट्टी को खाद की तरह प्रयोग कर शोध करने वाली विश्व की पहली शोधकर्ता हैं औऱ हरियाणा सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए सात प्रशस्ति पत्र प्राप्त हुए हैं । जैविक खेती पर अंर्तराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 25 शोधपत्र प्रस्तुत व प्रकाशित करा चुकी हैं।

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