नई किस्म आ गई है

ये मोबाइल वाले पागल

– डॉ. दीपक आचार्य

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सनकियों और पागलों की मौजूदगी हमारे यहाँ हमेशा रही है। छोटे से लेकर बड़े कहे जाने वाले हों या दुनिया का कोई सा कोना हो, इन लोगों का वजूद हर युग में अपने आपको सिद्ध करता रहा है। युग के हिसाब से इनकी सनक और पागलपन के तौर-तरीकों और उपकरणों में बदलाव जरूर आता-जाता रहता है।

वर्तमान युग में भी ऎसे सनकी और पागलों की हर क्षेत्र में कोई कमी नहीं है। पिछले कुछ वर्ष से हमारे यहाँ पागलों की नई प्रजाति का अवतरण हो चुका है जिनके लिए मोबाइल ही उनका अपना ऎसा उपकरण है जिसके जरिये इनकी सनक और पागलपन की हदों को जाना-पहचाना और भुगता जा सकता है।

अपने यहाँ भी ऎसे लोगों की भरमार है। आमतौर पर मोबाइल का उपयोग बहुत जरूरी सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए किया जाना चाहिए लेकिन इन मोबाइल वाले पागलों को देखें तो बोलने-सुनने से ज्यादा इनके मोबाइल टाईमपास के लिए काम आ रहे हैं।

इन लोगों को लगता है कि वे गलती से इस धरा पर आ गए हैं और अब जैसे-तैसे टाईमपास तो करना ही पड़ेगा। इनके लिए ये गेम्स, चेटिंग, एसएमएस करने, फिल्मी गाने और भजन सुनने, पिक्चर और क्लीपिंग्स देखने से लेकर ऎसे फालतू कामों में आ रहे हैं जिनका इनकी रोजमर्रा की जिन्दगी से कोई ताल्लुक नहीं है बल्कि ये अमूल्य समय और मानवी ऊर्जा को बरबाद ही कर रहे हैं।

इन सनकियों के लिए ये मोबाइल मनोरंजन और टाईमपास का खिलौना ही बन चला है। बन्दरों के हाथ उस्तरे वाली कहावत में अब लगता है कि युगानुकूल परिवर्तन कर उस्तरे की जगह मोबाइल कहा जाना चाहिए। मोबाइल वाले पागलों की सनक से जमाने भर के लोग परेशान हैं।

ये पागल और सनकी लोग किसी एकान्त में जाकर या अपने घर में बैठकर कुछ भी करें, किसी को क्या आपत्ति है जैसा कि दूसरी किस्मों के पागल करते रहते हैं और अपनी मस्ती में रमे रहते हैं। पर इन मोबाइल वाले पागलों को बसों, रेलों, दफ्तरों, दुकानों, धर्मशालाओं, होटलों, घरों, सार्वजनिक स्थलों आदि सभी स्थानों पर अपनी सनक दिखाते हुए देखा जा सकता है।

बेवक्त संसार में आ चुुके ये लोग तेज आवाज में मोबाइल चलाकर गाने-भजन और फिल्म देखने-सुनने लगते हैं और क्षेत्र भर में ध्वनि प्रदूषण फैलाते हुए औरों का आनंद एवं चैन भंग करते रहते हैं। इनके दिमाग में सनक और उन्माद ऎसा हावी रहता है कि इन्हें मजा भी तभी आता है जब फूल वोल्युम मेंं सुनें और सुनाएं।

आमतौर पर यह माना जाता है कि जो जितनी अधिक आवाज करता है, बेवजह बोलता है और ऊँची आवाज में बोलता है या तेज आवाज में सुनने का आदि होता है, वह इंसान उतना ही घटिया श्रेणी का होता है और यह पूर्वजन्म में कोई पशु ही रहा होगा। यह निश्चित माना जाता है कि ज्यादा और तेज आवाज में बोलने वाला अपनी वृत्तियों और सोच के हिसाब से निम्न और नीच होता है।

जो जितना अधिक श्रेष्ठ इंसान होता है वह धीमे और शालीनता से बातचीत करता है और बिना कारण के उसकी बोली कण्ठ से बाहर निकल ही नहीं पाती। ऎसे में आजकल तेज आवाज में मोबाइल चलाकर शोरगुल फैला रहे मोबाइल वाले पागलों की हर तरफ भरमार होती जा रही है।

यह सीधा संकेत है कि इंसानियत का ग्राफ घट रहा है और सनकियों, पागलों और टाईमपास लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। यहाँ तक कि आपसी बातचीत में भी ये लोग इतना जोर-जोर से बोलते हैं कि दूर-दूर तक सुनाई दे। जबकि मोबाइल पर जितना धीरे बोला जाएगा, उतना सामने वाले को साफ सुनाई देगा। लेकिन अपने यहाँ फोन का चोगा कान पर लगाकर कानफोडू आवाज निकालने की पुरानी आदत पड़ी हुई है।

कई लोग दिन भर मोबाइल कानों पर लगाये घूमते हुए बातचीत में ऎसे व्यस्त रहते हैं जैसे कि गश्ती दल में शामिल हों। कई ऎसे हैं जो कानों में ईयर फोन लगाए घण्टों पागलों की तरह जाने क्या-क्या सुनते रहने के आदी हो गए हैं।

कई तो वाहन चलाते वक्त, पूजा-पाठ करते समय, शौचालय में बैठे हुए भी मोबाइल को पकड़े रहने के आदी हो गए हैं। इन लोगों के लिए दुनिया के सारे संबंध एक तरफ हो जाएं तो कोई दिक्कत नहीं, मोबाइल से अटूट रिश्ता मरते दम तक बना रहना चाहिए। हे ईश्वर… इन मोबाइल वाले पागलों और सनकियों को सद्बुद्धि दे …..।

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