श्री शिरोमणि चंद्र जैन
त्रिफला एक वस्तु नही एक रसायन है। अपने प्रयोग का उल्लेख श्री शिरोमणि जी अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर लिख रहे हैं। यह प्रसंग पाठकों के लाभार्थ हमने जैन जगत पत्र से सभागार उदृत कर रहे हैं। मैं कोई वैद्य नही किंतु त्रिफला का सेवन करते करते बारह वर्ष का एक सुदीर्घ काल दिनांक 31 मार्च को समाप्त हो जाएगा। अत: इसके सेवन की विधि व सुपरिणाम दूसरे के लाभार्थ लिख रहा हूं।
यह बहुत सारे रोगों की रामवाण औषधि साबित हुई है यह मेरा अनुभव है
पिता मुंशी मुकटलल जी राजस्थान की एक रियासत में एकाउंटेंट जनरल थे। उन्होंने उर्दू, फारसी, हिंदी की पुस्तकों का अध्ययन कर करें। औषधी का निर्माण कर अपने जीवन काल में मनुष्य जाति का कल्याण किया था। वे दवाईयां एक पैसे तोले से लेकर सौ रूपये तौले तक की होती थी जो भी घर पर ही तैयार की जाती थी उन्हीं की प्रेरणा से जब में सोलह वर्ष का था तब में एक वर्ष तक त्रिफला का कायदे से सेवन किया उसका परिणाम यह हुआ कि आज मैं 71 वर्ष का हूं आज तक अपने तन में सुस्ती नही आई।
जब मैं 60 वर्ष का हुआ तो मन में यह विचार आया कि वृद्घावस्था आ जाने से अब शरीर में दुर्बलता, बीमारियों का आक्रमण एवं अनेक प्रकार की अस्वस्थता प्रारंभ होगी। अत: कोई सस्ती तथा लाभकारी औषधि का सेवन किया जाए जिससे शरीर निरोग एवं स्वस्थ रहे और जीवन के अंतिम वर्षों में किसी के सहारे नही रहना पड़े एवं डा. की महंगी दवाईयों का सेवन नही करना पड़े। इस विचार से सोचकर पिताजी द्वारा बचपन में बताई गयी दवा त्रिफला की याद करके मैंने लेना आरंभ कर दिया जिसे दिनांक 31 मार्च को लेते लेते बारह वर्ष पूर्ण हो गये।
पिताजी द्वारा उनकी एक कापी में सन 1914 में लिखे अनुसार ले रहा हूं और वही नीचे सविस्तार लिख रहा हूं।
हरड पीली का चूर्ण 10 ग्राम
बहेड़े का चूर्ण उससे दुगुना 20 ग्राम
आंवले का चूर्ण उससे चौगुना 40 ग्राम
इस प्रकार इन सबका अनुपात 1:2:4
यह चूर्ण तीनों फलों की गुठली निकालकर मिला देना चाहिए और कार्क लगाकर बरसाती हवा से बचाकर रखना चाहिए। चार मास पश्चात बना चूर्ण काम में नही पीना चाहिए, इसीलिए बाजार में बंद शीशियों में मिलने वाली त्रिफला का उपयोग नही करना चाहिए।
त्रिफला की सेवन विधि यह है कि प्रात:काल खाली पेट निरला कोठे केवल एक बार ताजा पानी के साथ लेवें। लेने के बाद एक घंटे तक चाय, दूध नाश्ता सही लें। इस नियम का कठोरता से पालन करना आवश्यक है। त्रिफला लेने से रोजाना एक या दो पतली टट्टी लावेगी यह ध्यान रहे।
त्रिफला की मात्रा बड़ी सरल है-स्त्री, पुरूष बालिका जितनी उम्र हो उतनी रत्ती दवा लेनी चाहिए। तोला, माशा, रत्ती का हिसाब प्राय: सब जानते हैं।
वर्ष की निम्न भांति 6 ऋतुएं होने से प्रत्येक दो दो मास की ऋतु में त्रिफला लेते समय निम्न भांति एक एक वस्तु से मिलाकर लेना चाहिए।
16.7-15-9 श्रावण भादों में -सेंधा नमक
16.9-15-11 कुआर कार्तिक में – शक्कर
16.11-15-1 अगहन पौश में-सौंठ का चूर्ण
16.1-15-3 माघ फाल्गुन में-लेड़ी पीपल का चूर्ण
16.3-15-5 चैत्र, वैसाख में-शहद
16.5-15-7 ज्येष्ठ आषाढ़ में – गुड़
शहद को छोड़कर उपरोक्त वस्तुएं आपको औषधि की खुराक का अंदाजन छठा भाग जितनी मिला लेवें। सेंधा नमक लेडी पीपल कम मिलावें। दूसरी वस्तुएं अधिक मात्रा में भी मिला सकते हैं।
त्रिफला के सेवन से मुझे एवं मेरे 100-150 अन्य मित्रों, रिश्तेदारों को इंदौर और बाहर गांवों में रहने वालों को आश्चर्यकारक लाभ हुआ है। मुझे स्वयं को सन 1977 का जब त्रिफला लेते हुए 8 वर्ष हो रहे तो शरीर में कायाकल्प का अहसास हुआ। सन 19.6 में जब बंबई अस्पताल में कूल्हे की हड्डी एक्सीडेंट में टूट जाने से मेरी जो पैथोलोजीकल रिपोर्ट वहां ली गयी उसके परिणाम में भली भांति प्रकट हो जाता है कि शाकाहारियों के होमियोग्लोविन दस से बारह हो सकता है किंतु मेरा सोलह था तथा आरवीसी अच्छे से अच्छे तंदुरूस्त आदमी का चौदह लाख होता है जबकि मेरा आरबीसी 55 लाख था।
मैं पूर्णतया निरोग हूं। रोजना दस मील साईकिल आठ मील पैदल भी चलता हूं साईकिल से अथवा पैदल चलने से बिलकुल थकावट महसूस नही होती। शरीर में कहीं दर्द की कोई शिकायत नही है। शरीर में जवान आदमी जैसी स्फूर्ति बराबर बनी हुई है। खाने पीने का कोई परहेज पालन नही करता हूं। शाकाहारी भोजन करता हूं।
त्रिफला को लेने का बारह वर्ष का विधान है शरीर में कैसी भी पुरानी बीमारी हो स्थाई तौर पर दूर हो जाती है। यह लंबा इलाज जरूर है लेकिन मेरे सभी साथियों को शत प्रतिशत लाभदायक साबित हुआ है। मेरे पिताजी ने सन 1964 में त्रिफला की बावत जो कविता के रूप में लिखी है जिसमें विधि मात्रा और बारह वर्ष तक लेने के लाभ दर्शाए हैं, यह पाठकगण नोट कर लें।
1. दो तोला हर्ड बड़ी मंगावे। तासु दुगुन बहेड़ा लावे।।
असैर चतुर्गुण मेरे भ्राता। लाय आंवला परम पुनीता।।
कूंट छाण या विधि सूं खाय। ताके रोग सर्व कट जाए।।
विधि: श्रावण भादों सेंधा नमक। कार्तिक क्वार खांड सूं फंक।।
आगण पूस सोंठ के साथ। पीपल माघ फागुन विख्यात।।
शहद चैत बैसाख बताओ। जेठ असाड गुड से खाओ।
मात्रा:आयुष्क वर्ष प्रमाण। खाय रत्तीन सूं।।
ठीक यही परमाणु जितने वर्ष उतनी रत्ती।।
लाभ:प्रथम वर्ष तन सुस्ती जाय। द्वितीय रोग सर्व मिट जाए।
तृतीय नैन बहु ज्योति अमावे। चौथे सुंदरताई आये।।
पंचम वर्ष बुद्घि अधिकाई। षष्ठम महाबली होई जाई।
कैश श्वेरा श्याम होते समय। शुदस्य तन तरूण होई पनि अष्टम।।
दिन में तारे तीखे नवम ही। नवम वर्ष फल अस्तुत कहीं।।
दशम शारदा कंठ विराजै। अंधकार हिरदै का भाजै।
जो एकादश द्वादश खाय। ताकौ वचन सिद्घ हो जाए।।
डॉम्क्टर के मतानुसार मेरी आयु 74 वर्ष की है किंतु 40 वर्ष की आयु जैसे निरोग मालुम होता है। त्रिफला 8 वर्ष तक लेने पर शरीर में कायाकल्प हुआ ऐसे जान पड़ा और ऊपर लिखे अनुसार 8 वर्ष तक लेने पर सिद्घजन तरूण होई पुनि अष्टम यह बंबई अस्पताल, बंबई की पैथोलार्जिक रिपोर्ट से सिद्घ होता है।
यदि पाठकगण रोगी या निरोगी इस कौड़ियों की कीमत की दवा को, किंतु अमृततुल्य औषधि का सेवन करेंगे तो निश्चय ही उन्हें सब प्रकार से लाभ होगा, ऐसा मैं अपने अनुभव के आधार पर लिख रहा हूं।

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