खून नहीं वो पानी है

जो देश के काम न आए

– डॉ. दीपक आचार्य

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समाज और देश बुजुर्गों के अनुभवों और युवाओं के ज्ञान तथा ताकत के बूते चलता है और इसीलिए कहा जाता है कि युवा शक्ति समुदाय और देश की रीढ़ है। इस युवा पीढ़ी पर दोहरे-तिहरे दायित्व स्वतः ही आ जाते हैं। इनमें अपने आगे और पीछे वाली दोनों पीढ़ियों का ख्याल रखते हुए अपने तथा समुदाय के सम सामयिक विकास और उत्थान का गुरुतर दायित्व है।  अपने इर्द-गिर्द रहने वाली तमाम पीढ़ियों की संरक्षा और विकास के साथ स्थायित्व का जिम्मा भी युवाओं की शक्ति पर निर्भर करता है।  यों देखा जाए तो देश की सारी व्यवस्था का दायित्व युवाओं के कंधों पर ही होता है।  आज युवाओं को सामथ्र्यवान और युवा समझने की जरूरत है। हमारी जिस बुजुर्ग पीढ़ी को मार्गदर्शक और संरक्षक की भूमिका में होना चाहिए, वह ही अपने आपको युवा मानते हुए सांसारिक मैदान में मुख्य भूमिका में है, और यही हमारे युवाओं के अवसाद तथा विषम हालातों के लिए जिindia1म्मेदार है। स्वैच्छिक रूप से अधिकाराें का परित्याग करते हुए आने वाली पीढ़ियों को सहर्ष दायित्व सौंपकर मार्गदर्शक बनते रहने की परंपरा हमारे देश और समाज में जब तक जीवित रही, तब तक युवाओं ने पूरी बेहतरी के साथ देश को संभाला, समाज को आगे बढ़ाया। आज इसी परंपरा को पुनः जीवित करने की जरूरत है।  हमारे अनुभवी वृद्धों को चाहिए कि वे जिम्मेदारियां युवाओं के कंधों पर डालने के लिए बिना किसी पूर्वाग्रह या दुराग्रह के आगे आएं और युवाओं की ताकत को कम न आँकें।  दुनिया का कोई सा कर्म क्यों न हो, उसकी पूर्णता युवाओं से होकर ही होती है। जिस देश का युवा सबल, सशक्त और ऊर्जावान होता है, उस देश में समस्याओं का नामों निशान नहीं रहता। आज हमारी युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा विषमताओं के दौर से गुजर रही है। इन युवाओं के पास असीम ऊर्जा, अपार शक्ति और बहुआयामी सामथ्र्य है लेकिन इसका हम उपयोग नहीं करना चाहते या उन्हें अवसर देना नही चाहते। युवाओं पर भरोसा करते हुए आज यह जरूरी हो चला है कि उन्हें मुख्य धाराओं से जोड़ें और हम सभी लोग जो बुजुर्ग हो चुके हैं, वे उन्हें आशीर्वाददाता और मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाएं। आज का युवा दिशा और दशा दोनों तलाश रहा है। युवाओं के महाज्वार को सिर्फ दिशा दिखाने भर की जरूरत है। आज के युवा की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वे असंतुलन की अवस्था में जीने को विवश है। हमारी भौतिकता भरी आंधी में उसके संस्कारों का ह्रास हो रहा है। आज मानसिक और शारीरिक सौष्ठव के मामले में युवाओं का असंतुलन कुछ ज्यादा ही बढ़ चला है। एक तरफा असामान्य वृद्धि देखी जा रही है। बौद्धिक और शारीरिक दोनेां दृष्टि से समानुपाती व्यक्तित्व समाज और देश के लिए प्रभावी ओर ऎतिहासिक भूमिकाओं में रहता आया है। हममें से कितने ही लोग मानसिक रूप से आसमानी ऊँचाई छूने लगे हैं लेकिन शरीर और बल की बात आती है तो वही ढाक के पात। दूसरी ओर जहां शरीर बलिष्ठ है वहां मन-मस्तिष्क की स्थिति कुछ और। आज हमारी युवा पीढ़ी इतनी सारी समस्याओं से जूझ रही है कि उसकी वाणी का ओज और शरीर का तेज कहीं न कहीं अपेक्षाकृत न्यूनावस्था के दौर से गुजर रहा है। जिस ओजस्वी युवा की आवश्यकता सुभाषचन्द्र बोस और स्वामी विवेकानंद को थी, उस युवा को आगे आने और समाज तथा देश के लिए सर्वस्व समर्पण की भावना से काम करने की जरूरत है।  युवाओं को आज राष्ट्रीय चिंतन, समाजोन्मुखी कल्याण, सेवा व्रत और संस्कारों पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है।  विराट ऊर्जा सम्पन्न हमारी युवा पीढ़ी को सुस्पष्ट दिशा और दशा देना उन सभी लोगों का कत्र्तव्य जिन्होंने इस पीढ़ी को अपने सामने पल्लवित और पुष्पित होते देखा है।  आज सुभाषचन्द्र बोस द्वारा चाहे गए उस लहू की आवश्यकता है जो सारी सीमाओं और संकीर्णताओं से परे हो। उस लहू की जरूरत है जो लोभ-लालच,भोग-विलास और ऎश्वर्य या स्वार्थों के आगे कभी ठण्डा नहीं पड़े।  लहू सारी संकीर्णताओं से परे है। वह जाति-पांति, वर्ग-सम्प्रदाय और सारी  संकुचित मानसिकता से परे है और जो लहू देश तथा समाज के काम आ सके, वस्तुतः उसी लहू से इतिहास लिखा जा सकता है। आज उस ताकत की जरूरत है जो वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः को साकार करे।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयन्ती पर शुभकामनाएं ……

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