सबके बस में नहीं है पाना

अधिकार और आनंद एक साथ

– डॉ.  दीपक आचार्य

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आनंद हृदय से प्राप्त होते हैं और अधिकारों का संबंध शरीर से होता है। यह कतई जरूरी नहीं है कि जो व्यक्ति जितना अधिक अधिकार सम्पन्न है उसे उतने ही अधिक पैमाने पर आनंद की प्राप्ति हो ही। यह भी जरूरी नहीं है कि जिन्हें अधिकार प्राप्त हैं वे सदैव आनंद में ही रहते हैं। आनंद और अधिकार का मेल तभी संभव है कि जब अधिकारों के साथ समाजोन्मुखी दृष्टि हो ओर दंभ-अहंकार गौण हों अन्यथा बड़े से बड़े अधिकार सम्पन्न लोग दिखावा तो कुछ भी कर सकते हैं लेकिन आनंद पाने adhikar_picतक के लिए तरस जाते हैं।

इन लोगों का अपना अहंकार तथा आस-पास का आभामण्डल और  परिवेश ही इतना धुंध भरा हो जाता है कि इसे ही उन्हें अपना आनंद मानकर संतोष कर लेना पड़ता है। इससे ज्यादा आनंद उन्हें प्राप्त हो ही नहीं पाता बल्कि हमेशा अपने स्वा और गोरखधंधों में इतने लिप्त रहतेहैंं कि ये अपने आपको मशीन बना लेते हैं जिसमें उत्पादकता का ग्राफ तो बढ़ा हुआ दिखता है पर आनंद के लिहाज से कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता।

एक आम इंसान जितना आनंद अपने पूरे जीवन में बिना किन्हीं अधिकारों और भोग-विलासिता के संसाधनों के प्राप्त कर लेता है उसका दसवाँ हिस्सा भी वे लोग प्राप्त नहीं कर पाते हैं जिन्हें बड़ा आदमी और अधिकार सम्पन्न पॉवरफुल कहा जाता है। बल्कि यों कहें कि जो जितना अधिक अधिकार सम्पन्न हो जाता है वह दूसरों के आनंद और शांति, सुकून और आत्मतोष को छिनने की ज्यादा ताकत पा लेता है।

हमारा इतिहास, पौराणिक गाथाएं इस बात की साक्षी हैं कि अधिकार सम्पन्न चंद मर्यादाहीन और स्वच्छंद लोगों ने हमेशा औरों की शांति और आनंद को लीलने का काम किया है। समय हमेशा बदलता है। कल, आज और कल को परिभाषित करने वाला समय का चक्र इतनी तेजी से घूमता रहता है कि वर्तमान देखते ही देखते भूत हो जाता है, भूत देखते ही देखते गुमनामी के अँधेरों में कहीं खो जाता है और भविष्य का गर्भ जाने कब प्रकट होकर वर्तमान हो जाता है।

संसार की इस हकीकत और काल की गति से जो लोग वाकिफ होते हैं उनके लिए अधिकार और आनंद दोनों अपने हाथ में रहते हैंऔर वे दोनों का पूरा उपयोग करते हैं लेकिन जो लोग यथार्थ और सत्य से नावाकिफ होते हैं उनके लिए अधिकार होने के बावजूद आनंद पाना अपने बस में नहीं होता।

हम हमारे आस-पास के लोगों को देख लें या दूर कहीं के, सभी तरफ पुरुषार्थ या भाग्य से अधिकार पा चुके लोगों की संख्या काफी है लेकिन इनमें से कितनों के पास सब कुछ होते हुए भी आनंद है, इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। अधिकार सम्पन्न कर्म बली, कुर्सी बली, बाहुबली तथा बुद्धि बली से लेकर भाग्य बली या सभी प्रकार के बलातिबलों से सम्पन्न लोगों के लिए दूसरों की निगाह में जरूर अपने आपको शीर्ष पर प्रतिष्ठित देख सकते हैं लेकिन आनंद और आत्म आनंदसे कोसों दूर ही रहते हैं।

अधिकार और आनंद को एक साथ पाने का माद्दा वे ही बिरले विकसित कर सकते हैं जो वास्तव में जमीन से जुड़े हुए हैं, जिन्हें मनुष्य के रूप में जन्म लेने के महत्त्व का पता है, जिन लोगों के लिए अपने चेहरे की बजाय सामने समाज और देश दिखता जो खुद के लिए नहीं बल्कि औरों के लिए जीने और मरने के लिए ही पैदा हुआ है।

हममें से खूब सारे लोग ऎसे हैं जो अधिकारों से सम्पन्न होते हुए भी आनंद से वंचित हैं और दूसरों को भी वंचित करने में दिन-रात एक कर रहे हैं। हम वास्तव में आनंद पाना चाहें तो हमें अपने अधिकारों का उपयोग समाज और देश के नवनिर्माण के लिए करने की आदत डालें, समाज के गरीब से गरीब अंतिम आदमी को देखें, समाज के हिताहितों को जानें और अपने भीतर से अहंकार के साथ ही मुफतिया भोग-विलास की मानसिकता को छोड़ें, अपने भीतर के इंसान को जगाएँ और पुरखों तथा इतिहास से प्रेरणा लेकर आदमी के रूप में जीने का अभ्यास डालें।

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