हिमालय की ऊंचाई नापने वाले पहले व्यक्ति थे राधानाथ सिकदर

(Ama Dablam Peak – view from Cho La pass, Sagarmatha National park, Everest region, Nepal. Ama Dablam (6858 m) is one of the most spectacular mountains in the world and a true alpinists dream)

अजेष्ठ त्रिपाठी

जब आप आज किसी बच्चे से भी पूछते है कि विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत का नाम बताओ ; बच्चा छूटते ही बोलेगा – माउंट एवरेस्ट । हम में से अधिकांश लोगों को यह पता है कि भारत का पहला सटीक मानचित्र विलियम लैंबटन और जॉर्ज एवरेस्ट ने बनाया था और जॉर्ज एवरेस्ट ने ही सर्वप्रथम त्रिकोणमिति के सरल तकनीकों का उपयोग करके एवरेस्ट की ऊंचाई को मापा था, जिसके कारण दुनिया के सर्वोच्च शिखर का नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर माउंट एवरेस्ट रखा गया था। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एवरेस्ट की ऊंचाई को मापने वाले पहले शख्स जॉर्ज एवरेस्ट नहीं थे वो एक भारतीय महान गणितज्ञ थे – ”राधानाथ सिकदर” ।

सर्वप्रथम एवरेस्ट की ऊंचाई की सटीक गणना करने वाले भारतीय राधानाथ सिकदर एक बंगाली गणितज्ञ थे, जिन्होंने सर्वप्रथम हिमालय में स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई की गणना की थी और बताया था कि यह समुद्र तल से ऊपर स्थित सबसे ऊंची चोटी है।

1831 में भारत के सर्वेयर जनरल जॉर्ज एवरेस्ट एक ऐसे युवा गणितज्ञ की तलाश कर रहे थे, जिसे गोलीय त्रिकोणमिति में प्रवीणता हासिल हो। तब दिल्ली के हिन्दू कॉलेज के गणित के शिक्षक टाइटलर ने अपने छात्र राधानाथ के नाम की सिफारिश जॉर्ज एवरेस्ट के सामने की थी। उस समय राधानाथ सिकदर की उम्र केवल 19 वर्ष थी। राधानाथ ने 1831 में प्रति माह 30 रुपये वेतन पर भारतीय सर्वेक्षण विभाग में ”गणक” (कम्प्यूटर) के रूप में काम करना प्रारंभ किया था।जल्द ही राधानाथ सिकदर को देहरादून के पास सिरोंज भेजा गया, जहां उन्होंने भूगर्भीय सर्वेक्षण में उत्कृष्टता हासिल की। जॉर्ज एवरेस्ट, राधानाथ सिकदर के काम से इतने प्रभावित थे कि जब सिकदर भारतीय सर्वेक्षण विभाग को छोड़कर डिप्टी कलेक्टर बनना चाहते थे, तो एवरेस्ट ने हस्तक्षेप किया और घोषणा की कि कोई भी सरकारी अधिकारी अपने बॉस की मंजूरी के बिना दूसरे विभाग में नौकरी नहीं कर सकता है। 1843 में जॉर्ज एवरेस्ट भारत के सर्वेयर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हो गए और कर्नल एंड्रयू स्कॉट वॉ को उनके स्थान पर नियुक्त किया गया।

लगभग 20 साल तक उत्तर भारत में काम करने के बाद 1851 में सिकदर को मुख्य गणक के रूप में कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्होंने भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अलावा मौसम विज्ञान विभाग के अधीक्षक के रूप में भी काम किया।कर्नल एंड्रयू स्कॉट वॉ के आदेश पर सिकदर ने दार्जिलिंग के पास बर्फ से ढके हुए पहाड़ों को मापना शुरू किया। चोटी ङ्गङ्क के बारे में छह अलग-अलग स्थानों से आंकड़े इक करने के बाद सिकदर ने यह निष्कर्ष निकाला कि चोटी ङ्गङ्क दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है।

1862 में सिकदर भारतीय सर्वेक्षण विभाग की नौकरी से सेवानिवृत्त हुए और उसके बाद वह ”जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन” (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में गणित के शिक्षक के रूप में काम करने लगे। 17 मई, 1870 को चन्दन नगर के गोंडापाड़ा गांव में उनका निधन हो गया।

राधानाथ का जन्म 1813 में अक्टूबर के महीने को कोलकाता (पहले कलकत्ता) के जोड़ासांको में हुआ था, उनके पिता का नाम तितुराम सिकदर था, राधानाथ को पढऩे-लिखने का खूब शौक था, लेकिन उनके घर की माली हालत ठीक नहीं थी, ऐसे में उनके पास एक ही विकल्प था कि किसी तरह स्कॉलरशिप हासिल कर लें। चूंकि वह मेधावी थे, तो उन्हें आसानी से स्कॉलरशिप भी मिल गयी। राधानाथ के छोटे भाई श्रीनाथ का दिमाग भी राधानाथ की तरह ही तेज था और उन्होंने भी प्रतिभा के बूते स्कॉलरशिप ले ली थी। अपने स्कॉलरशिप के पैसे से राधानाथ किताबें खरीदते और श्रीनाथ को मिलने वाली स्कॉलरशिप से घर का चूल्हा जलता। इस तरह स्कॉलरशिप के पैसे से ही पढ़ाई और पेट की आग भी बुझने लगी। सन् 1824 में राधानाथ सिकदर ने हिन्दू स्कूल (संप्रति प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय) में एडिमशन ले लिया। उनका प्रिय विषय गणित था, इसलिए गणित विषय लेकर ही वह पढऩे लगे। हिन्दू स्कूल में उन्हें प्रोफेसर जॉन टाइटलर नाम का एक टीचर मिला और टाइटलर को एक प्रतिभाशाली शागिर्द। दोनों में खूब बनती थी। राधानाथ कितने विद्वान थे, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दू स्कूल में पढ़ते हुए ही उन्होंने कॉमन टांजेंट बनाने का नया तरीका ईजाद कर, वहां के टीचरों को आश्चर्यचकित कर दिया था. हालांकि, आश्चर्यचकित करने वाला एक बड़ा वाकया अभी होना बाकी था।

जब सर्वे ऑफ इंडिया में उन्हें नियुक्ति मिली तो उन्हें कम्प्यूटर का पद मिला , जी हां, कंप्यूटर!
उस वक्त तक कम्प्यूटर का ईजाद नहीं हुआ था ,इसलिए कम्प्यूटर का काम आदमी ही किया करता था और ऐसे काम करने वालों को कम्प्यूटर कहा जाता था। सर्वे ऑफ इंडिया में उन्होंने लंबे समय तक काम किया। इस बीच सर जॉर्ज एवरेस्ट रिटायर हो गए और उनकी जगह एन्ड्रू स्कॉट वा (सन् 1843 में) सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया बनकर भारत आए। जॉर्ज एवरेस्ट और स्कॉट वा के बीच गुरू-शिष्य का रिश्ता माना जाता था। बहरहाल, राधानाथ के काम से ‘स्कॉट वा’ भी काफी खुश हुए और सन् 1849 में पदोन्नत कर उन्हें चीफ कम्प्यूटर बना दिया। और साल 1852 के आसपास का वक्त रहा होगा,एक रोज सुबह सवेरे सर्वे जनरल ऑफ इंडिया के डॉयरेक्टर ‘एंड्रयू स्कॉट वा’ अपने दफ्तर में थे। उनके साथ दूसरे कर्मचारी भी दफ्तर पहुंच कर काम में व्यस्त हो चले थे। उसी वक्त एक शख्स तूफान की तरफ ‘स्कॉट’ के कमरे में दाखिल होता है और खुशी से चींखते हुए कहता है, ‘सर, मैंने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का पता लगा लिया है!’ यह सुनकर स्कॉट हक्के-बक्के रह जाते हैं। वह शख्स आगे बताता है कि सबसे ऊंची चोटी 29002 फीट है। कालांतर में ‘सर्वे ऑफ इंडिया’ के पूर्व डॉयरेक्टर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर उक्त पर्वत का नाम ‘माउंट एवरेस्ट’ रखा गया जिसका नाम उस सर्वेक्षक और उसकी गणना करने वाले के नाम पर माउंट सिकदर होना चाहिए था ।।

विशेष – उन दिनों ऊंचाई मापने के लिए थियोडोलाइट ही सबसे अच्छा जरिया हुआ करती थी, सो राधानाथ सिकदर ने भी इसी मशीन की मदद ली, करीब 450 किलोग्राम वजन की इस मशीन को उठाने के लिए एक दर्जन लोगों की जरूरत पड़ती थी। 39 वर्षीय सिकदर ने करीब 800 किलोमीटर दूर से थियोडोलाइट मशीन लगाकर ‘पीक &1’ को नापा। उन्होंने काफी माथापच्ची की और सन् 1852 में इस नतीजे पर पहुंचे कि ‘पीक &1’ की ऊंचाई 29002 फीट है, जो विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है। सिकदर ने स्कॉट वा को उनके दफ्तर में पहुंचकर यह अहम जानकारी दी, लेकिन स्कॉट ने उसे तुरंत सार्वजनिक नहीं किया, बल्कि दो-तीन स्रोतों से इसकी पुष्टि करना मुनासिब समझा। कई स्रोतों से मिली जानकारी ने स्कॉट वा को तसल्ली दी और सिकदर की नापी सही साबित हुई। 1856 में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि ‘पीक &1’ दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है। लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती है –

‘पीक &1’ की ऊंचाई तो माप ली गयी, लेकिन उसका नाम क्या रखा जाए, यह किसी को समझ नहीं आ रहा था. उसी वक्त स्कॉट को खयाल आया कि अपने गुरु एवरेस्ट को गुरुदक्षिणा देने का यह सबसे सही वक्त है। उन्होंने तुंरत एवरेस्ट के नाम पर ‘पीक &1’ का नामकरण माउंट एवरेस्ट कर दिया। और इस तरह दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को मापनेवाले राधानाथ सिकदर इतिहास में हाशिए पर धकेल दिए गए।

सिकदर की गणितीय प्रतिभा को मान्यता देते हुए जर्मन दार्शनिक सोसायटी ने 1864 में उन्हें पत्राचार सदस्य के रूप में नियुक्त किया था, जो उन दिनों एक बहुत ही दुर्लभ सम्मान था । भारतीय डाक विभाग ने 27 जून, 2004 को चेन्नई में भारतीय त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण पर आधारित एक डाक टिकट जारी किया था, जिसमें भारतीय त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण में महत्पूर्ण भूमिका निभाने वाले दो भारतीय राधानाथ सिकदर और नैन सिंह के चित्र अंकित थे।

हम भारतीय हैं और हमे भुला देने की बीमारी , जब हम अपनी गौरवशाली परम्परा को भुला देने को आतुर है तो सिकदर जी जैसे सरस्वती पुत्रों को कौन याद रखे क्यों?

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